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पेड़-पौधों के बीच भी होती है दुश्मनी!

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देहरादून। क्या आप इस बात पर विश्वास करते हैं कि पेड़-पौधों में भी दुश्मनी भावना होती है। पेड़-पौधों के बीच भी ऐसी वैमनस्यता हो सकती है जैसी कि इंसानों में होती है।

उत्तराखंड और दूसरे हिमालयी क्षेत्रों में ऐसे पौधों और बीजों की पहचान की गई है जो कि दूसरे पौधों, वनस्पतियों को  पनपने नहीं देती हैं। यह भी संभव है कि दशकों क्या सदियों तक इनकी यह खूबी बनी रहे।   
 
इस क्षेत्र में ऐसी वनस्पतियों की पहचान कर ली गई है और इन वनस्पतियों में तीन विदेशी उपज हैं और एक देसी उपज है। आश्चर्य की बात यह है कि ये वनस्पतियां साल के जंगलों में जड़ें जमाए हैं और इन वनस्पतियों के जहरीले रसायनों की वजह से साल के पेड़ों की गुणवत्ता घट रही है। इनकी पहचान के बाद इन वनस्पतियों को जंगल से हटाने की मुहिम चलाई जा रही है।
 
वैज्ञानिकों का कहना है कि साल के वृक्ष वैसे तो पूरे देश में हैं, लेकिन हिमालयी क्षेत्र में साल के जंगलों की अधिकता से इनकी अहमियत अधिक है। साल से इमारती लकड़ी और रसायन निकाले जाते हैं और इनसे बहुत सारी व्यावसायिक गतिविधियां भी जुड़ी हैं। विदित हो कि कई वर्षों से इस वृक्ष की गुणवत्ता और पैदाइश में आ रही कमी ने वन विज्ञानियों को परेशानी में डाल दिया था, लेकिन अब पता लगा लिया है कि साल के पेड़ों को नुकसान किन कारणों से हो रहा है? 
 
वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) के एक ताजा शोध में साल को नुकसान पहुंचाने वाली चार वनस्पतियों को चिह्नित कर लिया गया है। रिपोर्ट में बताया गया कि शत्रु वनस्पतियों में एक आर्डिशिया देसी है और लैंटाना, यूपीटोरियम, एजीलेटम विदेशी आक्रांता वनस्पतियों की श्रेणी में आती हैं। खरपतवार की शक्ल में पाई जाने वाली की ये तीनों वनस्पतियां पश्चिमी देशों से आई हैं। शत्रु वनस्पतियां एलीलो नामक रसायन छोड़ती हैं, जिसके चलते दूसरे पौधों के बीज पनप नहीं पाते हैं।
 
ये पौधों के पत्तों, जड़ों को नुकसान पहुंचता है और इनका विकास बाधित हो जाता है। विज्ञानियों ने इन चार के अलावा 10 और वनस्पतियों पर परीक्षण किया था, लेकिन वे साल के पेड़ों के लिए नुकसानदेह नहीं पाई गई हैं। फिर भी इन्हें नष्ट करके संभावित नुकसान से बजा जा सकता है।

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