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परिवार यानी प्यार, विश्वास और जुड़ाव

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-कुमुद शर्मा
 
पड़ोस में नया परिवार आया। माता-पिता, दो बच्चे और बच्चों की दादी मां। ऐसा लगता था कि उनके आने से जैसे उत्साह व खुशी आसपास के पड़ोसियों के जीवन में आ गई।
 
शाम होते ही कॉरिडोर/ कार रखने की जगह में चहल-पहल आ जाती। अधिक जगह तो नहीं थी, पर बैडमिंटन का गेम शुरू हो जाता। आवाज तो सुना करती थी, पर लगा कि मौका लगे तो मैं भी देखूं कि चल क्या रहा है। शाम को पूरा परिवार बाहर बैठता। 14-15 वर्ष की लड़की और पिता बैडमिंटन शुरू करते। 
 
खेल तो महज खुश होने का, एक्सरसाइज का बहाना था। बिना किसी रुल (नियम) के रैकेट और शटल के बीच बेटी और पिता का खेल चलता जिसमें बेटी का पलड़ा कुछ कम भारी रहता। वह तरह-तरह के प्रयास कर किसी तरह शटल पिता के पास भेजती। उस प्रयास में हंसी के फव्वारे चलते और पिता भी उसका जवाब देते। 
 
पिता में अभ्यास से अधिक धैर्य व उल्लास था इसलिए खेल चलता रहता। इसके बाद बच्चों की दादी मां व युवा मां हाथ आजमाते। अनवरत खेल और हंसी के ठहाके लगते। परिवार का छोटा सा बच्चा बड़ी ही तत्परता से शटल जमीन पर गिरने पर खिलाड़ियों को लाकर देता। उसकी भूमिका थी शटल उठाकर देना, इसके लिए वह मुस्तैद रहता।
 
हमारे घर में जब कभी शटल आकर गिरती तो छोटा बच्चा अपनी पूरी जिम्मेदारी के साथ दौड़कर आता व कहता कि 'आंटी, शटल दे दीजिए।' जब तक हम अपने गलियारे में ढूंढते, वह भी चारों ओर दौड़कर साथ देता व कहता कि जल्दी कीजिए। फिर खेल शुरू होता। जिस दिन पिता टूर पर जाते, तो सन्नाटा नजर आता।
 
एक दिन मेरे पास निमंत्रण आया 'मदर्स डे' का। मेरी नजर में तो हर दिन भारतीय परिवारों में मदर्स डे/ फादर्स डे होता है। निमंत्रण पर पड़ोस में गई। परिवार के जितने नाते-रिश्तेदार थे, उनके बच्चे मिलकर आयोजन कर रहे थे। छोटे बच्चों की मम्मियां और उन बच्चों के पिता की मां भी बैठी हुई थीं। बच्चों ने ठंडा पेय और नाश्ता लाकर दिया। इसके साथ ही साथ मनोरंजन कार्यक्रम चल रहा था। बच्चों के बाद उनके पिताजी ने स्टेज संभाला और मां, चाची व मामी के साथ मिलकर डांस शुरू हुआ।
 
थोड़ी देर बाद अंताक्षरी शुरू हुई। हर बच्चा, बुजुर्ग उल्लास से भाग ले रहे थे। कहीं कोई चुप्पी की जगह नहीं। बच्चों की बचत से ही दावत और भेंट दी जा रही थी। चमत्कृत कर रहा था आपसी प्रेम और प्रगाढ़ संबंध, जो अधिकांश परिवारों में जीवंतता के साथ आजकल मुश्किल से ही दिखता है। 
 
'हमें जीवन में आखिर क्या चाहिए?' इसका पूरा उत्तर इस आयोजन में था। सिर्फ प्यार, विश्वास व जुड़ाव कितना आनंद दे सकता है, इसकी अनुभूति को महसूस किया जा सकता है। इससे मिली खुशी व प्रसन्नता की अभिव्यक्ति के लिए शब्दकोश के शब्द मेरे लिए अपर्याप्त हैं। बस, ईश्वर से कामना है कि परिवार में बड़े-बूढ़ों का स्थान-मान बना रहे। उनका जुड़ाव परिवार के सभी सदस्यों के साथ वैसा ही गहरा बना रहे, जैसा कि मेरा अनुभव था। 
 
मैंने उस दिन 'मदर्स डे' पर अनूठा अनुभव भी पाया था। जीवन के उतार-चढ़ाव में परिवार का सहारा, जुड़ाव संबंध ही हमें संभाले रखता है। मेरी कामना है कि सदा पड़ोस में देखा हुआ दृश्य हर परिवार में बना रहे।

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