बदलते समय के बदलते दौर में अब पिता की छवि बदल गई है। आज पिता अपने बच्चों के लिए न केवल प्रेरणास्रोत बने हैं बल्कि जीवन में ऐसा मूलमंत्र दे रहे हैं जिसे जपकर उनके बच्चे कामयाबी की नई इबारतें लिख रहे हैं। पिता...। यह शब्द सुनते ही जेहन में एक दृढ़ व्यक्तित्व की छवि उभरती है। ऐसा व्यक्ति जो हमारा सबसे बड़ा आदर्श होता है, मर्यादा जिसके रिश्ते की पहचान है।
किशोरावस्था की समस्याओं में मां की भूमिका बेटी के प्रति और पिता की भूमिका बेटे के प्रति ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। होता यूं है कि चूंकि लड़कियों में होने वाले परिवर्तनों के प्रति एक खास किस्म की संवेदनशीलता होती है, इसलिए लड़कों में होने वाले हार्मोनल परिवर्तनों को लेकर खासकर भारतीय समाज में गहरी उदासीनता है जबकि किशोर होते लड़कों को भी उतने ही मानसिक संबल और सहानुभूति की दरकार होती है, जितनी लड़कियों को और इस दौरान पिता की भूमिका लड़कों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।
हार्मोंस और शारीरिक परिवर्तनों के दौर से गुजर रहे बच्चे के मन में इस दौर में सेक्स को लेकर ढेरों सवाल होते हैं और दूसरी ओर पैरेंट्स का अनुशासन और हिदायतों का शिकंजा और ज्यादा कसता जाता है। अगर आपका बेटा किशोरावस्था की दहलीज पर है तो वह शारीरिक और मानसिक सामंजस्य कैसे स्थापित करे, यह उसके लिए ही नहीं बल्कि आपके लिए भी एक बड़ा सवाल होता है।
लड़कों में होने वाले हार्मोंनल परिवर्तन की वजह से उन्हें गुस्सा ज्यादा आता है और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है। थोड़े समय बाद दाढ़ी-मूँछ आना शुरू हो जाती है और आवाज में भी भारीपन आ जाता है जो कुछ समय बाद सही हो जाता है जिसका दूसरे बच्चे मजाक उड़ाते हैं। लड़कों को उनके शरीर में होने वाले परिवर्तनों के विषय में बताएं।
इस उम्र में अक्सर वे अपनी सेहत और साफ-सफाई की ओर से लापरवाह हो जाते हैं तो ऐसे समय में उन्हें अपनी शारीरिक सफाई का ध्यान रखने के लिए समझाएं। किशोरावस्था में बच्चों के मन में अनेक सवाल होते हैं। घर में टीवी और इंटरनेट एक ऐसा माध्यम है, जिनसे वे जो चाहें, वे सूचनाएं मिनटों में हासिल कर सकते हैं।
अक्सर इंटरनेट पर घंटों चेटिंग चलती है और लड़के पोर्न साइट्स देखते हैं। यदि आप उन्हें ऐसा करते देखते हैं तो प्यार से समझाएं और बताएं कि उनकी उम्र अच्छी शिक्षा हासिल करके करियर बनाने की है। इन बातों की ओर से वे अपना ध्यान हटाएं।
इस उम्र में बच्चों का पढ़ाई पर ध्यान कम लगता है। छोटी-छोटी बात पर गुस्सा होना, हाइपर एक्टिव होना, डिप्रेशन, ज्यादा सोचना इस तरह की समस्याएं होती हैं। गुस्से में वे अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख पाते। यदि उनका व्यवहार नियंत्रण से बाहर हो जाए तो मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग जरूरी हो जाती है।
उनके असामान्य व्यवहार को यदि गंभीरता से लिया जाए और शांति से हल निकाला जाए तो वे शांत और एकाग्रचित्त हो जाते हैं। इस उम्र में अक्सर लड़के थोड़े उच्छृंखल हो जाते हैं और उन्हें किसी की भी टोका-टोकी बुरी लगती है। ऐसे में पिता को उनसे संवाद करने की पहल करनी चाहिए। पिता को चाहिए कि बच्चे की समस्याएँ सुनें, उसके दोस्त बनें और उसे इस उलझनभरे दिनों में सुलझा हुआ माहौल दें।
किशोर उम्र के बच्चों की सबसे बड़ी समस्या है उनकी पहचान का संकट। पहले से ही पहचान के संकट से जूझते बच्चे को सख्ती और अनुशासन पसंद नहीं आता है। अपने और बच्चों के बीच थोड़ी दूरी भी बनाकर रखें। बच्चों की हर छोटी-बड़ी बात की जासूसी नहीं करें।
फोन पर यदि वह आपको देखकर अचानक चुप हो जाए तो समझ जाएं कि उसे प्रायवेसी चाहिए। उसकी प्राइवेसी की कद्र करें। यदि वह अपने लिए अलग चीजों की मांग करता है, तो उसे पूरा करने का प्रयास करें। बच्चे का मानसिक संबल बनें। उनके साथ कलह न करें तो बच्चे प्यार से धीरे-धीरे आपकी समस्याओं को समझने का प्रयास करेंगे।
इस उम्र के बच्चे, शारीरिक, मानसिक और हारमोनल परिवर्तन के दौर से गुजर रहे होते हैं। उनका मूड तेजी से बदलता है। किसी के दुःख से वे परेशान हो उठते हैं और किसी भी सीमा तक उनकी मदद करने को तैयार रहते हैं। कुछ बच्चे बहिर्मुखी हो जाते हैं तो कुछ अंतर्मुखी हो जाते हैं। भावनात्मक परिवर्तन के दौर में उनका मार्गदर्शन करें।
इस उम्र में बच्चे एक-दूसरे के प्रति जल्दी आकर्षित हो जाते हैं। इस उम्र में आकर्षण होना स्वाभाविक है जो समय के साथ धीरे-धीरे कम हो जाता है। अगर मामला भावनात्मक जुड़ाव का हो तो पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता जिसका बच्चे की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ता है। बच्चे को इन तमाम सचाइयों से प्यार से रूबरू कराएं।