*एरिका प्रीति की बचपन की सहेली है। स्कूल में भी साथ और दोनों के घर भी बिलकुल पास-पास। ट्यूशन, खाना-पीना, सब एक साथ। कॉलेज अलग रहे लेकिन फिर भी दोनों का साथ बना रहा। जॉब अलग शहरों में लगे तो फ़ोन पर संपर्क में रहे। एरिका की शादी हुई, तो प्रीति जॉब से छुट्टी ले कर अपनी ख़ास दोस्त की शादी में गई। एरिका लगभग हर रोज़ संपर्क में रही। वह प्रीति को घर के किस्से सुनाती, प्रीति उसे अपनी जॉब के। फिर प्रीति की शादी हुई। एरिका आ न सकी। पॉसिबल नहीं हुआ उसके लिए, कुछ मामूली हेल्थ इशू था।
प्रीति प्रेग्नेंट हुई, लेकिन दुर्भाग्यवश उसकी नन्हीं सी जान को बचा न सके। प्रीति और एरिका की रोज़ बात होती थी और एरिका पूछती थी कि प्रेगनेंसी के दौरान प्रीति ने कैसे ख्याल रखा और कहती थी की सब ठीक होगा। लेकिन अचानक एक दिन फिर एरिका ने फ़ोन नहीं उठाया। लगभग एक हफ्ते तक। एक हफ्ते बाद प्रीति को इन्स्टाग्राम से ज्ञात हुआ कि एरिका को बेटी हुई है। एरिका ने उसे बताया तक नहीं, सब कुछ जानते-बूझते। इतने समय से, रोज़ बात करने के बावजूद- नौ महीने भी। क्योंकि प्रीति का बच्चा नहीं बचा था। बताती तो अपशगुन जो हो जाता।
*रिया की शादी हुई। स्वाभिमानी है, किसी पर निर्भर नहीं होती और अपने निर्णय खुद लेना पसंद करती है, सही-गलत में अंतर समझती है, इसलिए शादी टूट गई। वो उस बारे में बात नहीं करती। उसके करीबी जानते हैं। उन्हीं करीबियों में से एक है गरिमा। बचपन से जानती है। रिया को कहती है कि जो हुआ अच्छा हुआ। लगभग रोज़ बात होती है। वैसे कोई रिया से उस बारे में बात नहीं करता, लेकिन कुछ समय से गरिमा पूछ रही है कि मेहंदी वाली कहां से ढूंढी थी। प्री-वेडिंग शूट कहां से करवाया था। तेरी शादी में कौनसा फोटोग्राफर था? नंबर दे दे। कैटरिंग में कितने पैसे लगे थे। शादी का कार्ड है क्या, देखना है कैसा था। सब कुछ जानते-बूझते। रिया को ताज्जुब हुआ, तो कारण पूछा। गरिमा ने बताया बहन की शादी है। अचानक दो हफ्ते बाद ठीक वैसा ही शादी का कार्ड गरिमा ने WhatsApp स्टेटस पर काउंटडाउन के रूप में डाला। #OneDayToGo. उसी की शादी का। रिया को नहीं बताया। रोज़ बात करने के बावजूद। क्योंकि रिया की शादी टूट गई थी। बताती तो अपशगुन जो हो जाता।
*रूही 8 साल से एक कंपनी में जॉब कर रही थी। इंटरनल पॉलिटिक्स के चलते, रूही से जब कहा गया कि या तो माफ़ी मांगो या इस्तीफ़ा दो, तो सही और सच के साथ चलने वाली रूही ने तुरंत इस्तीफ़ा दे दिया और स्वाभिमान के साथ बाहर निकली। जब गलती की ही नहीं, तो उस नौकरी के लिए झुक कर माफ़ी क्यों मांगना जहां परिश्रम के लिए सम्मान तो दूर, बस पक्षपात और धिक्कार मिले? उसके सहकर्मियों ने उसके इस कदम को सराहा। सभी ने हर रोज़ फ़ोन पर कहा कि उन्हें गर्व है उसके निर्णय पर, किसी ने तो आवाज़ उठाई।
रूही फिर नई नौकरी की तलाश में लगी रही। गर्व महसूस करने वाले सहकर्मियों और दोस्तों से भी निवेदन किया की अगर किसी वेकेंसी की जानकारी हो तो बताएं। एक सहेली थी उसकी काव्या। बचपन से साथ खेले-पढ़े और बड़े हुए। उसने भी रूही के इस निर्णय को सराहा और रेज्यूमे मांगा ताकि अगर कहीं मौका मिले तो मदद कर सके। कुछ दिनों बाद फेसबुक से पता चला कि रूही की ही कंपनी में काव्या रूही के ही पद पर आ गई। मौकापरस्त। सब कुछ जानते-बूझते ।यह भी पता चला, कि उसके और काव्या के रेज्यूमे में कोई ख़ास अंतर नहीं था। यूं कहें की कॉपी ही था। काव्या ने रूही को नहीं बताया। क्योंकि रूही की जॉब छूट चुकी थी। बताती तो अपशगुन जो हो जाता।
*ये सारे अलग-अलग किस्से पढ़े-लिखे, समझदार, हर कदम पर साथ रहने के दिखावे का आडम्बर करने वाले दोस्तों के हैं। ऐसी परिस्थितियों में हम दोस्तों को ज्यादा महत्त्व देते हैं क्योंकि हमें लगता है कि दोस्त हमारे करीब हैं और दर्द को समझेंगे। पर अधिकांश 'हादसे' दोस्ती में ही होते हैं। दोस्ती के नाम पर साथ होने का दिखावा करेंगे, सब पूछेंगे, बिन-मांगी सलाह देंगे, मदद मांगेंगे और काम भी भरपूर लेंगे। लेकिन खुद की ज़िन्दगी से जुड़ी एक बात नहीं कहेंगे। जानना सब है, ज्ञान हर बात पर देना है, लेकिन बताना कुछ नहीं, चाहे कोई खुशखबर ही क्यों न हो, अपशगुन जो हो जाएगा। लेकिन जीवन में सबक लेने के लिए हर एक 'फ्रेंड' ज़रूरी होता है!