आश्विन महीने में अधिक मास 18 सितंबर से शुरू हो गया है और 16 अक्टूबर तक चलेगा। इसे मलमास और पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं। इस माह में धर्म, कर्म, व्रत, पूजा, ध्यान, योग, साधना और आहर संयम का बहुत ही महत्व है। आओ जानते हैं कि अधिकमास में आका आहार कैसे होना चाहिए।
क्या नहीं खाएं?
इस पुरुषोत्तम माह में किसी भी प्रकार का व्यसन नहीं करें और मांसाहार से दूर रहें। अत: पुरुषोत्तम मास में इन चीजों का खान-पान वर्जित कहा गया है। फूल गोभी, पत्ता गोभी, शहद, चावल का मांड़, उड़द, राईं, मसूर, गाजर, मूली, प्याज, लहसुन, बैंगन, चना, बासी अन्न, तेल, नशीले पदार्थ आदि नहीं खाने चाहिए। बाहर से आने वाले/ बनने वाले भोजन का सेवन न करें।
क्या खाएं?
इस माह में भोजन में गेहूं, चावल, जौ, मटर, मूंग, तिल, बथुआ, चौलाई, ककड़ी, केला, आंवला, दूध, दही, घी, आम, हर्रे (हरड़), पीपल, जीरा, सौंठ, सेंधा नमक, इमली, पान-सुपारी, कटहल, शहतूत, मैथी आदि खाने का विधान है। इससे सेहत बनती है। यदि बन सके तो एक समय का ही भोजन करें और दूसरे समय केवल गाय का दूध पीना चाहिए (भैंस/बकरी का नहीं)।
अधिक मास में सुबह आप संपूर्ण आहार लें जैसे दाल, रोटी, चावल, दही और उपरोक्त में से कोई सब्जी आदि और रात को हल्का भोजन ही करें। हो सकते तो गाय दूध पीकर ही सो जाएं या थोड़ा-सा दलिया ले सकते हैं।
शहतूत का रसे पीना का यह आखिरी माह होता है। सर्दियों में शहतूत का रस नहीं पीते है। यह रस आपके शरीर के भीतर के किसी भी प्रकार के छाले और गर्मी को हटा देता है। सब्जी या दाल में राईं की जगह जीरे के उपयोग करें। राईं गरम होती है और जीरा ठंडा। तेल की जगह घी से सब्जी या दाल का बघार लगाएं। यदि आपका पेट खराब हो रहा है तो बाल हरण के चूसे और अंत में चबाकर खा जाएं। जौ की तासीर भी ठंडी होती है। इसका पानी मूत्राशय के रोग में लाभदायक होता है।