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11 May : वैशाख सतुवाई अमावस्या का महत्व, पूजा विधि, कथा, मंत्र, उपाय और शुभ मुहूर्त

हमें फॉलो करें 11 May  : वैशाख सतुवाई अमावस्या का महत्व, पूजा विधि, कथा, मंत्र, उपाय और शुभ मुहूर्त
वर्ष में 12 अमावस्याएं होती हैं। माह में एक अमावस्या बार ही आती है। 11 मई, मंगलवार को वैशाख अमावस्या है। इस अमावस्या को भौमवती अमावस्या और सतुवाई अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। 
 
वैशाख अमावस्या को क्या करें :
 
1. वैशाख अमावस्या पर पितरों की शांति, ग्रहदोष, कालसर्प दोष आदि से मुक्ति के लिए उपाय किए जाते हैं।
 
2. इस दिन हो सके तो उपवास रखना चाहिए।
 
3. इस दिन व्यक्ति में नकारात्मक सोच बढ़ जाती है। ऐसे में नकारात्मक शक्तियां उसे अपने प्रभाव में ले लेती है तो ऐसे में हनुमानजी का जप करते रहना चाहिए।
 
4. अमावस्या के दिन ऐसे लोगों पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है जो लोग अति भावुक होते हैं। अत: ऐसे लोगों को अपने मन पर कंट्रोल रखना चाहिए और पूजा पाठ आदि करना चाहिए।
 
5. इस दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। इसके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम हो सकते हैं।
 
अमावस्या पर पूजन के मुहूर्त-
 
अमावस्या की तिथि 10 मई 2021 सोमवार को रात 09 बजकर 57 मिनट पर बजे से आरंभ होकर 11 मई को मंगलवार की रात्रि में इस तिथि का समापन होगा।  

मंत्र-
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:'
'ॐ विष्णवे नम:', ॐ नारायणाय विद्महे आदि मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। 
 
वैशाख माह की पौराणिक कथा :
 
बहुत समय पहले धर्मवर्ण नाम के एक विप्र थे। वह बहुत ही धार्मिक प्रवृति के थे। एक बार उन्होंने किसी महात्मा के मुख से सुना कि घोर कलियुग में भगवान विष्णु के नाम स्मरण से ज्यादा पुण्य किसी भी कार्य में नहीं है। जो पुण्य यज्ञ करने से प्राप्त होता था उससे कहीं अधिक पुण्य फल नाम सुमिरन करने से मिल जाता है।
धर्मवर्ण ने इसे आत्मसात कर सन्यास लेकर भ्रमण करने निकल गए। एक दिन भ्रमण करते-करते वह पितृलोक जा पंहुचे। वहां धर्मवर्ण के पितर बहुत कष्ट में थे। 
 
पितरों ने उसे बताया कि उनकी ऐसी हालत धर्मवर्ण के सन्यास के कारण हुई है क्योंकि अब उनके लिए पिंडदान करने वाला कोई शेष नहीं है। यदि तुम वापस जाकर गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो, संतान उत्पन्न करो तो हमें राहत मिल सकती है। साथ ही वैशाख अमावस्या के दिन विधि-विधान से पिंडदान करें।

धर्मवर्ण ने उन्हें वचन दिया कि वह उनकी अपेक्षाओं को अवश्य पूर्ण करेगा। तत्पश्चात धर्मवर्ण अपने सांसारिक जीवन में वापस लौट आया और वैशाख अमावस्या पर विधि विधान से पिंडदान कर अपने पितरों को मुक्ति दिलाई।


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