गीता पाठ से भगवान का सानिध्य मिलता है। जीवन की बड़ी से बड़ी परेशानी व्यक्ति को कर्तव्य पथ से विचलित नहीं कर पाती। गीता का अभ्यासी संसार का सच जान लेने के बाद पथभ्रष्ट नहीं होता।
यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत है हमारे दिव्य ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता के अनमोल विचार -
* मैं समस्त प्राणियों के ह्रदय में विद्यमान हूं।
* मैं सभी प्राणियों को एकसमान रूप से देखता हूं। मेरे लिए ना कोई कम प्रिय है ना ज्यादा, लेकिन जो मनुष्य मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते हैं। वो मेरे भीतर रहते हैं और मैं उनके जीवन में आता हूं।
* जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है, जितना कि मृत होने वाले के लिए जन्म लेना। इसलिए जो अपरिहार्य है उस पर शोक मत करो।
* जो मुझसे प्रेम करते है और मुझसे जुड़े हुए है, मैं उन्हें हमेशा ज्ञान देता हूं।
* श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार नरक के 3 द्वार हैं- क्रोध, वासना और लालच।
* क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है और जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है। जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।
* किसी भी काम को नहीं करने से अच्छा है, कोई काम कर ही लिया जाएं।
* सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता तीनों लोक में कहीं भी नहीं है।
* जो मनुष्य अपने मन को नियंत्रण में नहीं रख सकता वह शत्रु के समान कार्य करता है।
* तुम मुझमे समर्पित हो जाओ मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा।