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कावड़ यात्रा के इन नियमों के बिना नहीं मिलता पुण्य, पढ़िए पूरी जानकारी

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WD Feature Desk

, गुरुवार, 3 जुलाई 2025 (18:03 IST)
kawad yatra ke niyam,: कावड़ यात्रा हिंदू धर्म की सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण यात्राओं में से एक है। हर साल सावन के महीने में लाखों श्रद्धालु, जिन्हें कावड़िये कहा जाता है, गंगा नदी या अन्य पवित्र नदियों से जल भरकर, पैदल यात्रा करते हुए शिवलिंग पर अभिषेक करने के लिए शिव मंदिरों की ओर प्रस्थान करते हैं। यह यात्रा भगवान शिव के प्रति अटूट श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, लेकिन इस यात्रा का पूरा पुण्य प्राप्त करने के लिए कुछ विशेष नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। इन नियमों को जाने बिना यात्रा अधूरी मानी जा सकती है।

कावड़ यात्रा का महत्व:
कावड़ यात्रा का अपना एक गहरा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। मान्यता है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने कावड़ यात्रा की थी। त्रेता युग में, जब रावण ने भगवान शिव को लंका में स्थापित करने के लिए हरिद्वार से गंगाजल लाया था, तब से कावड़ यात्रा की परंपरा शुरू हुई। इसका एक प्रमुख कारण भगवान शिव को प्रसन्न करना और उनकी कृपा प्राप्त करना है। इस यात्रा को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी पाप धुल जाते हैं, ऐसी भी मान्यता है।
शारीरिक और मानसिक शुद्धि: पैदल यात्रा करने से शरीर और मन की शुद्धि होती है। यह एक प्रकार की तपस्या है जो शारीरिक सहनशीलता और मानसिक दृढ़ता को बढ़ाती है।
इच्छाओं की पूर्ति: भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी कावड़ यात्रा करते हैं। मान्यता है कि इस कठिन यात्रा से प्रसन्न होकर भगवान शिव भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करते हैं।
सामाजिक समरसता: यह यात्रा विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के लोगों को एक साथ लाती है, जिससे सामाजिक समरसता और भाईचारा बढ़ता है।

कावड़ यात्रा के नियम:
कावड़ यात्रा केवल जल भरने और मंदिर तक पहुंचने का नाम नहीं है, बल्कि यह एक अनुशासित और पवित्र प्रक्रिया है जिसके अपने विशिष्ट नियम हैं। इन नियमों का पालन करना यात्रा को सफल और पुण्यदायक बनाता है:
1. पवित्रता का विशेष ध्यान: कावड़ यात्रा के दौरान कावड़िये को शारीरिक और मानसिक रूप से पवित्र रहना होता है। इस दौरान तामसिक भोजन (मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज) का सेवन वर्जित होता है। सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए।
2. कावड़ को जमीन पर न रखें: यह सबसे महत्वपूर्ण नियमों में से एक है। यात्रा के दौरान कावड़ को सीधे जमीन पर नहीं रखा जाता। यदि विश्राम करना हो तो कावड़ को किसी पेड़ से या कावड़ स्टैंड पर टांगना चाहिए। मान्यता है कि कावड़ में गंगाजल होता है और उसे जमीन पर रखने से उसकी पवित्रता खंडित होती है।
3. नंगे पैर यात्रा: अधिकांश कावड़िये पूरी यात्रा नंगे पैर करते हैं। यह तपस्या का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। हालांकि, यदि स्वास्थ्य समस्या हो तो कुछ भक्त चप्पल पहन सकते हैं, लेकिन नंगे पैर यात्रा को अधिक पुण्यकारी माना जाता है।
4. शौच और स्नान के नियम: शौच या अन्य प्राकृतिक क्रियाओं के लिए यात्रा मार्ग से दूर जाना चाहिए और बाद में स्नान करके ही कावड़ को छूना चाहिए।
5. ब्रह्मचर्य का पालन: यात्रा के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य माना जाता है।
6. शांत और मौन रहें: यात्रा के दौरान ज्यादा बातचीत करने या विवादों में पड़ने से बचना चाहिए। भगवान शिव के नाम का जाप करते हुए या भजन गाते हुए आगे बढ़ना चाहिए।
7. किसी भी नशीले पदार्थ का सेवन नहीं: धूम्रपान, गुटखा या किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थ का सेवन सख्त वर्जित है।
8. सात्विक व्यवहार: किसी से झगड़ा न करें, क्रोध न करें, और सभी के प्रति विनम्रता का भाव रखें।
9. भक्तों की सेवा: रास्ते में मिलने वाले अन्य कावड़ियों की मदद करना और उनकी सेवा करना भी पुण्यकारी माना जाता है।
10. कावड़ का टूटना: यदि किसी कारणवश कावड़ टूट जाती है या जल छलक जाता है, तो उसे अशुभ माना जाता है। ऐसी स्थिति में पुनः गंगाजल लेने के लिए वापस जाना पड़ सकता है।
इन नियमों का पालन करके ही कावड़ यात्रा का संपूर्ण पुण्य प्राप्त होता है। यह सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि भक्ति, तपस्या और आत्म-नियंत्रण का एक प्रतीक है जो शिव भक्तों को आध्यात्मिक सुख और शांति प्रदान करता है। इस सावन में, यदि आप भी कावड़ यात्रा पर निकलने का सोच रहे हैं, तो इन नियमों को अवश्य ध्यान में रखें और अपनी यात्रा को सफल बनाएं.
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