Meaning of Bhagwan: अधिकतर लोग ब्रह्म, ईश्वर, परमात्मा, परमेश्वर, देवी, देवता और भगवान सभी शब्दों को एक ही अर्थ में लेते हैं या कि ईश्वर और भगवान को एक ही मानते हैं, जबकि हिंदू धर्म में सभी का अर्थ अलग अलग होता है। ईश्वर को आप भगवान नहीं कह सकते हैं और भगवान को परमेश्वर नहीं। आओ जानते हैं सभी का अर्थ।
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1. ब्रह्म : सच्चिदानंदस्वरूप जगत् का मूल तत्त्व। ब्रह्म शब्द बृह धातु से बना है जिसका अर्थ बढ़ना, फैलना, व्यास या विस्तृत होना। ब्रह्म परम तत्व है। वह जगत्कारणम् है। ब्रह्म वह तत्व है जिससे सारा विश्व उत्पन्न होता है, जिसमें वह अंत में लीन हो जाता है और जिसमें वह जीवित रहता है। हिंदू धर्म में ईश्वर, परमेश्वर या परमात्मा के लिए ब्रह्म शब्द का उपयोग किया जाता है। ब्रह्म को निकाराकर माना जाता है परंतु एक ही ब्रह्म दो प्रकार से आभाषित होता है- निर्गुण और सगुण।
2. ईश्वर : ये दो संस्कृत के शब्द ईश और वरच् (प्रत्यय) के जुड़ने से बना है। ईश का अर्थ प्रभु, स्वामी या नियंत्रण करने वाला है। वर का अर्थ सर्वोपरि है। ईश्वर का पांतजलि योगसूत्र, नैयारिक, वैशेषिक, मीमांसक, वेदांत, वैष्णव, शैव आदि भारतीय दर्शन में अलग अलग अर्थ बताया गया है। अधिकतर इसे ब्रह्म का सगुण और साकार रूप मानते हैं। सगुण यानी गुणों वाला। साकर यानी आकार वाला। 16 कलाओं से युक्त व्यक्ति ईश्वर होता है।
3. परमेश्वर: परमेश्वर का शाब्दिक अर्थ 'परम ईश्वर' है। इसके अन्य पर्याय है ईश्वर और परमात्मा। परम पुरुष।
3. परमात्मा : परम का अर्थ सर्वोच्च एवं आत्मा से अभिप्राय है चेतना, जिसे प्राण शक्ति भी कहा जाता है। यानी परम आत्मा। उपनिषदों के अनुसार यह आत्मा की ब्रह्म है और जब यह परम तत्व को जान लेती है तो ब्रह्म स्वरूप होकर परमात्मा हो जाती है।
4. भगवान : यह भग धातु से बना है, भग यानी प्रज्ञा के 6 अर्थ है:- 1-ऐश्वर्य 2-वीर्य 3-स्मृति 4-यश 5-ज्ञान और 6-वैराग्य ये 6 गुण जिसमें है वह भगवान हैं। भगवान शब्द का स्त्रीलिंग भगवती है। जैसे जैन कैवल्य ज्ञान को प्राप्त व्यक्ति को तीर्थंकर या अरिहंत कहते हैं। बौद्ध संबुद्ध कहते हैं वैसे ही हिंदू भगवान कहते हैं। भगवान का अर्थ है जितेंद्रिय। जैसे, धनवान का अर्थ होता है वह व्यक्ति जिसके पास धन हो या रथवान का अर्थ होता है वह व्यक्त जो रथ को चलाता हो उसी प्रकार जिसके पास सम्पूर्ण भग् हो। भग् का अर्थ होता है- ज्ञान और ऐश्वर्य
श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार, कुल छः प्रकार के एश्वर्य होते हैं- रूप, धन, ज्ञान, बल, प्रसिद्धि और वैराग्य। भगवान का संधि विच्छेद करने पर भग और वान दो शब्द निकलते हैं। भग सृष्टि का प्रतीक है और वहन करने वाली एक अदृश्य शक्ति को वान बताया है।
5. देवता : देवता का संबंध संस्कृत के दिव् धातु से है जिसका अर्थ दिव्य होना है। यानी दिव्यता। जिसमें दिव्यता है और जो अमर है वह देवता है। हिंदू धर्म में 33 कोटी देवता कहे गए हैं। इन्हें स्वर्ग में रहने वाले अमर प्राणी कहते हैं। इंद्र, वरुण, आदित्य, वायु, यम, मरुतगण, वसु, त्रिदेव, त्रिदेवी आदि सभी देवता हैं। देवता का ही स्त्रीलिंग देवी है।
साधारण मनुष्य से बढ़कर संत है, संत से बढ़कर सिद्ध है। सिद्ध से बढ़कर देवता है। देवताओं से बढ़कर भगवान है और भगवान से बढ़कर ब्रह्म है जिसे ईश्वर, परमात्मा या परमेश्वर कहते हैं।