1. श्रीकृष्ण और मार्गशीर्ष मास का महत्व: इस मास का महत्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता के विभूति योग (अध्याय 10) में बताया है।
"मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः।" (मैं मासों में मार्गशीर्ष हूं और ऋतुओं में वसंत।)
कथा का सार:
जब अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि वह सृष्टि के सभी तत्वों में से सबसे महत्वपूर्ण और उत्कृष्ट रूप में कहां विद्यमान हैं, तो श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया कि सभी मासों (महीनों) में, वह स्वयं मार्गशीर्ष हैं।
यह कथन मार्गशीर्ष मास की दिव्यता और पवित्रता को स्थापित करता है। मार्गशीर्ष मास में ही भगवान ने सृष्टि की शुरुआत की थी। इसी कारण इसे देवताओं का महीना भी कहा जाता है। मार्गशीर्ष अमावस्या इस दिव्य महीने की सबसे महत्वपूर्ण तिथि होती है। इस दिन व्रत, स्नान, और दान करने से सीधे भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
2. सत्ययुग के समान फल देने वाली अमावस्या: हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, मार्गशीर्ष अमावस्या को अत्यंत पुण्य फलदायक माना गया है, क्योंकि इस दिन किए गए पुण्यकर्म सत्ययुग में किए गए पुण्य के समान माने जाते हैं।
कथा का सार:
प्राचीन काल में, ऋषि-मुनियों ने बताया कि कलियुग में जब धर्म का प्रभाव कम होगा, तब भी कुछ विशेष तिथियां ऐसी होंगी जो भक्तों को अत्यधिक पुण्य प्रदान करेंगी। मार्गशीर्ष अमावस्या उन्हीं तिथियों में से एक है। मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने और दान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं।
यह दिन विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो पितृ दोष से पीड़ित हैं। अमावस्या पर किए गए पितृ तर्पण से पितर तुरंत तृप्त होते हैं और अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। कहा जाता है कि इस दिन के व्रत, पूजा और कर्मकांड से व्यक्ति को आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है, ठीक वैसे ही जैसे सत्ययुग के लोग धर्म का पालन करके प्राप्त करते थे।
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