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Ram Mandir : श्री राम जन्मभूमि, मंदिर और ट्रस्ट की 5 प्रमुख बातें

हमें फॉलो करें Ram Mandir : श्री राम जन्मभूमि, मंदिर और ट्रस्ट की 5 प्रमुख बातें
, सोमवार, 14 जून 2021 (13:14 IST)
ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने रामजन्मभूमि पर संतों के निर्देश से एक भव्य मंदिर के साथ ही कूप, सरोवर, महल आदि बनवाए। विक्रमादित्य के बाद के राजाओं ने समय-समय पर इस मंदिर की देख-रेख की। अंतत: 1527-28 में अयोध्या में स्थित भव्य मंदिर को तोड़ दिया गया और उसकी जगह बाबरी ढांचा खड़ा किया गया। फिर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हुआ। आओ जानते हैं मंदिर निर्माण के बारे में कुछ खास।
 
 
1. जन्मभूमि विवाद : कुछ लोग मानते हैं कि यह विवाद 1813 का नहीं है जब पहली बार हिन्दू संगठनों ने दावा किया कि यह भूमि हमारी है। यह विवाद तब का भी नहीं है जब 1853 में इस स्थान के आसपास पहली बार सांप्रदायिक दंगे हुए। यह विवाद तब का भी नहीं है जब 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी और मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की अनुमति दी गई थी। यह विवा तब का भी नहीं है जब फरवरी 1885 में महंत रघुबर दास ने फैजाबाद के उप-जज के सामने याचिका दायर कर मंदिर बनाने की इजाजत मांगी, लेकिन उन्हें अनुमति नहीं मिली। कुछ लोग मानते हैं कि यह विवाद 1949 का भी नहीं है जबकि बाबरी ढांचे के गुम्बद तले कुछ लोगों ने मूर्ति स्थापित कर दी थी। यह विवाद तब का (1992) का भी नहीं है जबकि भारी भीड़ ने विवादित ढांचा ध्वस्त कर दिया था। वस्तुत: यह विवाद 1528 ईस्वी का है, जब एक मंदिर को तोड़कर बाबरी ढांचे का निर्माण कराया गया था।
 
2. उच्चतम न्यायालय फैसला : उच्चतम न्यायालय की 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने 9 नवंबर 2019 को अयोध्या मामले में फैसला सुनाते हुए विवादित स्थल पर राम मंदिर का निर्माण कराने और मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए किसी प्रमुख स्थान पर 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया था। 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश पारित कर अयोध्या की 2.77 एकड़ विवादित भूमि को 3 हिस्सों में बांट दिया। एक हिस्सा रामलला के पक्षकारों को मिला। दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को, जबकि तीसरा हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को मिला। उच्चतम न्यायालय ने 2011 में हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। इस बहुचर्चित मामले की सुप्रीम कोर्ट में 6 अगस्त से 16 अक्टूबर 2019 तक लगातार सुनवाई हुई और फिर फैसला दिया। उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में पूरी 2.77 एकड़ विवादित भूमि रामलला को दी। केन्द्र और उत्तरप्रदेश सरकार को मस्जिद के निर्माण के लिए किसी प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ जमीन मुसलमानों के देने का भी निर्देश दिया।
 
3. ट्रस्ट की स्थापन : 5 फरवरी, 2020 को प्रधानमंत्री ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिये 15 सदस्यीय न्यास की घोषणा संसद में की। 19 फरवरी 2020 को राम मंदिर ट्रस्ट ने पदाधिकारियों की नियुक्ति की। सदस्यों में वरिष्ठ अधिवक्ता के. परासरण, जगदगुरु शंकराचार्य, ज्योतिष पीठाधीश्वर स्वामी वासुदेवानंद सरस्वतीजी महाराज (इलाहाबाद), जगद्गुरु माधवाचार्य स्वामी विश्व प्रसन्नतीर्थजी महाराज (उडुपी के पेजावर मठ से), युगपुरुष परमानंदजी महाराज (हरिद्वार), स्वामी गोविंददेव गिरिजी महाराज (पुणे) और विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र (अयोध्या) शामिल हैं। राम जन्मभूमि न्यास के प्रमुख महंत नृत्य गोपाल दास राम मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष बने। विहिप नेता चंपत राय राम मंदिर ट्रस्ट को महामंत्री होंगे, जबकि महंत गोविंद गिरि को कोषाध्यक्ष बनाया गया। इसके अतिरिक्त मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेन्द्र मिश्रा हैं। ट्रस्ट के प्रतिनिधि अनिल मिश्रा।
 
4. मंदिर निर्माण की घोषणा : 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखे जाने के बाद मंदिर का निर्माण शुरू हो गया। मंदिर 360 फुट लंबा और 235 फुट चौड़ा होगा। मंदिर के शिखर की ऊंचाई 161 फुट होगी। मंदिर निर्माण में 36 से 40 माह लग सकते हैं। मंदिर निर्माण को लेकर ऑनलाइन माध्यम से धन संग्रह किया गया।
 
5. मंदिर का स्वरूप : मार्च में राम मंदिर परिसर का विस्तार 70 एकड़ से बढ़ाकर 107 एकड़ करने की योजना के तहत 'राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र' ने राम जन्मभूमि परिसर के पास 7285 वर्गफुट जमीन खरीदी थी। शहर में भव्य मंदिर का निर्माण कर रहे ट्रस्ट ने 7285 वर्गफुट जमीन की खरीद के लिए 1373 रुपए प्रति वर्गफुट की दर से एक करोड़ रुपए का भुगतान किया है। न्यासी अनिल मिश्रा ने कहा, हमने यह जमीन खरीदी है, क्योंकि राम मंदिर के निर्माण के लिए हमें और जगह चाहिए थी। ट्रस्ट द्वारा खरीदी गई यह जमीन अशरफी भवन के पास स्थित है। फैजाबाद के उप-पंजीयक एसबी सिंह ने बताया कि जमीन के मालिक दीप नरैन ने ट्रस्ट के सचिव चंपत राय के पक्ष में 7285 वर्गफुट भूमि की रजिस्ट्री के दस्तावेजों पर 20 फरवरी 2021 को हस्ताक्षर किए। मिश्रा और अपना दल के विधायक इंद्र प्रताप तिवारी ने गवाह के तौर पर दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए। फैजाबाद के उप-पंजीयक एसबी सिंह के कार्यालय में ही यह रजिस्ट्री की गई।
 
सूत्रों के अनुसार, ट्रस्ट की योजना अभी और जमीन खरीदने की है। राम मंदिर परिसर के पास स्थित मंदिरों, मकानों और खाली मैदानों के मालिकों से इस संबंध में बातचीत जारी है। सूत्रों ने बताया कि ट्रस्ट विस्तारित भव्य मंदिर परिसर का निर्माण 107 एकड़ में करना चाहता है और इसके लिए उसे अभी 14,30,195 वर्गफुट जमीन और खरीदनी होगी। गौरतलब है कि मुख्य मंदिर का निर्माण पांच एकड़ जमीन पर किया जाएगा और बाकी जमीन पर संग्रहालय और पुस्तकालय आदि जैसे केन्द्र बनाए जाएंगे।
 
5. विवाद : उत्तर प्रदेश के लखनऊ में आज आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि भगवान श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए बने राम जन्मभूमि ट्रस्ट के नाम पर करोड़ों रुपए चंपत राय जी ने चंपत कर दिए हैं।मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के नाम पर घोटाला किया गया है। चंपत राय ने प्रभु राम के नाम पर जो चंदा लिया,उसमें करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार किया है। इस आरोप के बाद राजनीतिक गरमा गई है।

घोटाले के आरोपों पर श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने इन आरोपों को राजनीतिक साजिश बताया है। चंपत राय ने कहा है कि मंदिर के लिए खरीदी जा रही जमीनें बाजार से बहुत कम रेट पर ली जा रही हैं। राम मंदिर निर्माण के लिए खर्च हुए एक-एक पैसे का रिकॉर्ड रखा जा रहा है। राय ने रविवार रात एक प्रेस रिलीज जारी कर राम मंदिर ट्रस्ट का पक्ष रखा। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने बताया कि सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी ने करीब 10 साल पहले ही बाग बिजेसर की जमीन कुसुम पाठक और हरीश पाठक से खरीद ली थी। तब के हिसाब से इस जमीन का रेट 2 करोड़ तय कर लिया था। इसकी रजिस्ट्री भी करा ली थी। जब ट्रस्ट ने इस जमीन को खरीदने की इच्छा जताई तो सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी ने पाठक परिवार से इस जमीन का बैनामा तय रेट पर 18 मार्च 2021 को कराया. फिर उसे वर्तमान रेट के हिसाब से मंदिर ट्रस्ट को 18.5 करोड़ में बेचा। इसमें कहीं से कोई घोटाला या हेराफेरी नहीं है। यह राजनीतिक विद्वेष के तहत लगाए गए बेबुनियाद आरोप हैं।

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