Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

Shami Plant: क्यों करते हैं शमी वृक्ष की पूजा, जानें इसका धार्मिक महत्व और पूजा विधि

हमें फॉलो करें Shami Plant: क्यों करते हैं शमी वृक्ष की पूजा, जानें इसका धार्मिक महत्व और पूजा विधि

अनिरुद्ध जोशी

हिन्दू धर्म में वृक्षों का बहुत महत्व माना गया है। वृक्षों को जहां देवी और देवताओं से जोड़कर देखा जाता है वहीं ग्रह नक्षत्रों से जोड़कर भी देख गया है। शमी वृक्ष को शनिदेव और शनिग्रह का कारक माना जाता है। इसीलिए उसकी पूजा का महत्व है। आओ जानते हैं इस बारे में कुछ खास।
 
 
क्यों करते हैं शमी वृक्ष की पूजा :
1. शमी में शनिदेव का निवास होता है। इसीलिए इसकी पूजा का महत्व है। इसकी प्रतिदिन पूजा करने से कई तरह से संकटों से व्यक्ति बच जाता है और हर क्षेत्र में वह विजयी पाता है।
 
2. शमी वृक्ष की पूजा करने से शनि ग्रह संबंधी सभी प्राकर के दोष समाप्त हो जाते हैं। जैसे शनि की साढ़े साती, ढैय्या आदि।
 
3. विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष पूजा करने से घर में तंत्र-मंत्र का असर खत्म हो जाता है।
 
4. जहां भी यह वृक्ष लगा होता है और उसकी नित्य पूजना होती रहती है वहां विपदाएं दूर रहती हैं।
 
5. आयुर्वेद के अनुसार यह वृक्ष कृषि विपदा में लाभदायक है। इसके कई तरह के प्रयोग होते हैं।
 
 
जानें इसका धार्मिक महत्व : 
1. मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने के पूर्व शमी वृक्ष के सामने शीश नवाकर अपनी विजय हेतु प्रार्थना की थी। बाद में लंका पर विजय पाने के बाद उन्होंने शमी पूजन किया था। दशहरे के दिन आज भी दशहरा मिलने के बाद लोगों को शमी के पत्ते भेंट करते हैं, लेकिन शमी के पत्तों को तोड़ने से पहले पौधे का पूजन किया जाता है। यह शत्रु पर विजयी दिलाता है।
 
2. यह भी कहा जाता है कि लंका से विजयी होकर जब राम अयोध्या लौटे थे तो उन्होंने लोगों को स्वर्ण दिया था। इसीके प्रतीक रूप में दशहरे पर खास तौर से सोना-चांदी के रूप में शमी की पत्त‍ियां बांटी जाती है। कुछ लोग खेजड़ी के वृक्ष के पत्ते भी बांटते हैं जिन्हें सोना पत्ति कहते हैं।
 
3. महाभारत अनुसार पांडवों ने देश निकाला के अंतिम वर्ष में अपने हथियार शमी के वृक्ष में ही छिपाए थे। बाद में उन्होंने वहीं से हथियार प्राप्त किए थे तब उन्होंने हथियारों के साथ ही शमी की पूजा भी की थी। इन्हीं हथियारों से पांडवों ने युद्ध जीता था। संभवत: तभी से शमी के वृक्ष की पूजा और हथियारों की पूजा कर प्रचलन प्रारंभ हुआ होगा।
 
4.एक अन्य कथा के अनुसार महर्षि वर्तन्तु ने अपने शिष्य कौत्स से शिक्षा पूरी होने के बाद गुरू दक्षिणा के रूप में 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं मांग ली। यह मांग सुनकर कौत्स महाराज रघु के पास गए और उनसे यह रकम मांगी। महाराज रघु ने कुछ दिन पहले ही एक महायज्ञ करवाया था, जिसके कारण खजाना खाली हो चुका था। तब उन्होंने कौत्स से तीन दिन का समय मांगा। राजा धन जुटाने के लिए उपाय खोजने लग गया। कोई उपाय नहीं सुझा तो उन्होंने स्वर्गलोक पर आक्रमण करने का निश्‍चय किया। राजा ने सोचा स्वर्गलोक पर आक्रमण करने से उसका शाही खजाना फिर से भर जाएगा। राजा के इस विचार से देवराज इंद्र घबरा गए और कोषाध्याक्ष कुबेर से रघु के राज्य में स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा करने का आदेश दिया। इंद्र के आदेश पर रघु के राज्य में कुबेर ने शमी वृक्ष के माध्यम से स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा करा दी। माना जाता है कि जिस तिथि को स्वर्ण की वर्षा हुई थी उस दिन विजयादशमी थी। इस घटना के बाद से ही विजयादशमी के दिन शमी के वृक्ष की पूजा और उसकी पत्तियां एक दूसरे को बांटने की परंपरा प्रारंभ हुई।
 
शमी पूजा विधि :
1 प्रदोषकाल में शमी वृक्ष के समीप जाकर पहले उसे प्रणाम करें फिर उसकी जड़ में शुद्ध जल अर्पित करें। 
 
2. जल अर्पित करने के बाद वृक्ष के सम्मुख दीपक प्रज्वलित करें। सरसों के तेल का दीपक जलाएं तो यह अत्‍यंत शुभ होता है।
 
3. तत्पश्चात शमी वृक्ष का यथाशक्ति धूप, दीप, नैवेद्य, आरती से पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजन करें। पूजन के उपरांत हाथ जोड़कर निम्न प्रार्थना करें-
 
'शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।।
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।'
 
अर्थात हे शमी वृक्ष, आप पापों का क्षय करने वाले और शत्रुओं का नाश करने वाले हैं। आप अर्जुन का धनुष धारण करने वाले हैं और श्रीराम को प्रिय हैं। जिस तरह श्रीराम ने आपकी पूजा की, हम भी करेंगे। हमारी विजय के रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं से दूर करके उसे सुखमय बना दीजिए।
 
4. शमी पूजा के कई महत्वपूर्ण मंत्र का प्रयोग भी करें। इससे सभी तरह का संकट मिटकर सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 
 
5. शमी के पत्ते तोड़ना नहीं चाहिए, नीचे ताजा गिरे हुए पत्ते को या तो अपने पास संभालकर रख लें या शिवजी पर चढ़ाते समय ये मंत्र बोलें- अमंगलानां च शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च। दु:स्वप्रनाशिनीं धन्यां प्रपद्येहं शमीं शुभाम्।।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Vivah Muhurat in July 2021: जुलाई में विवाह के केवल 5 मुहूर्त हैं, जानिए यहां