शास्त्रों के अनुसार धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व वाले स्थानों को तीर्थ कहते हैं। इन्ही स्थानों की यात्रा करने को धार्मिक यात्रा या तीर्थयात्रा (teerth yatra, pilgrimage) कहते हैं। तीर्थ यात्रा का मुख्य उद्देश्य होता है पुण्य फल कमाना। लेकिन कुछ पौराणिक तथ्य बताते हैं कि तीर्थ यात्रा का फल किसे मिलता है और किसे नहीं...
यहां जानिए तीर्थ यात्रा के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें :
1. जो व्यक्ति दूसरों के धन से तीर्थ यात्रा करता है। उसे पुण्य का 16वां भाग प्राप्त होता है और जो दूसरे कार्य के प्रसंग से तीर्थ में जाता है उसे उसका 1/2 फल प्राप्त होता है।
2. अन्यत्र हिकृतं पापं तीर्थ मासाद्य नश्यति। तीर्थेषु यत्कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति। -अर्थात् अन्य जगह किया हुआ पाप तीर्थ में जाने से नष्ट हो जाता है, पर तीर्थ में किया हुआ पाप वज्रलेप हो जाता है।
3. जब कोई अपने माता-पिता, भाई, परिजन अथवा गुरु को फल मिलने के उद्देश्य से तीर्थ में स्नान करता है, तब उसे स्नान के फल का 12वां भाग प्राप्त हो जाता है।
4. तीर्थ क्षेत्र में जाने पर मनुष्य को स्नान, दान, जप आदि करना चाहिए, अन्यथा वह रोग एवं दोष का भागी होता है।
5. तीर्थ यात्रा का पूर्ण फल तभी मिलता है जब आपने किसी भी आत्मा को जाने-अनजाने में कष्ट ना पहुंचाया हो। आपका आचार, विचार, आहार, व्यवहार और संस्कार शुद्ध और पवित्र हो। अत: हर मनुष्य को सभी जीवों का ध्यान रखते हूए ही जीवन के हर क्षेत्र में कार्य करना चाहिए। हमेशा अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए।
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