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तीर्थ यात्रा में यह 14 काम हरगिज न करें पुण्य के बजाय मिलेगा पाप

हमें फॉलो करें तीर्थ यात्रा में यह 14 काम हरगिज न करें पुण्य के बजाय मिलेगा पाप
, बुधवार, 4 मई 2022 (14:42 IST)
हिन्दू धर्म में तीर्थ यात्रा करने का खासा महत्व है। तीर्थ करने के कई सांसारिक और आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं। कई लोग तीर्थ यात्रा पर जाते हैं लेकिन उन्हें तीर्थ यात्रा करने के नियम नहीं मालूम रहते हैं। वहां जाकर वे ऐसे कार्य करते हैं जो कि तीर्थक्षेत्र में वर्जित माने गए हैं। आओ जानते हैं कि तीर्थ क्षेत्र में कौनसे 14 कार्य हरगिज नहीं करना चाहिए। तीर्थ यात्रा करने समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
 
 
1. तीर्थ यात्रा के दौरान जप, तप और दान करना चाहिए। जो ऐसा नहीं करता है वह रोग और दोष का भागीदार बनता है।
 
2. दूसरी जगह किया गया पाप तीर्थ यात्रा में नष्ट हो जाता है लेकिन तीर्थ में किया गया पाप कभी नष्ट नहीं होता है।
 
अन्यत्र हिकृतं पापं तीर्थ मासाद्य नश्यति।
तीर्थेषु यत्कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति।
 
3. पत्नि या पति को छोड़कर किए गए तीर्थ का पुण्य फल प्राप्त नहीं होता है। पत्नी के होते या पति के जिंदा रहते उन्हें छोड़कर अकेले तीर्थ नहीं किया जाता।
 
4. तीर्थ यात्रा के दौरान या तीर्थक्षेत्र में किसी भी प्रकार का व्यसन करना या मांसाहार का सेवन करने से पाप लगता है।
 
5. तीर्थ परिक्रमा या मंदिर परिक्रमा करते वक्त अधूरी परिक्रमा नहीं करना चाहिए और भगवान के सामने या तीर्थ के प्रमुख पड़ाव पर रुककर परिक्रमा करना चाहिए।
 
6. तीर्थ क्षेत्र में या मंदिर में भगवान के समक्ष या श्रीविग्रह समक्ष पैर पसारकर बैठना अशुभ माना जाता है। इससे पाप लगता है। श्रीविग्रह के सामने जोर से बोलना और सांसारिक वार्तालाप करना भी मना है। 
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7. तीर्थ में नदी या मूर्ति के सामने सोना और घुटनों को ऊंचा करके उनकों हाथों से लपेटकर नहीं बैठना चाहिए। मूर्ति के सामने चिल्लाना और कलह करना, अश्लील शब्द बोलना पाप है। 
 
8. तीर्थ यात्रा के दौरान या तीर्थक्षेत्र में झूठ बोलना पाप माना जाता है जिससे तीर्थ का फल नहीं मिलता है।
 
9. भगवान को निवेदित किए बिना किसी भी वस्तु को नहीं खाना-पीना चाहिए यानी भोग लगाए ही भोजन करना या  उपयोग में लाने से बचे हुए भोजन को भगवान के लिए निवेदन करना पाप है और ऋतु फल खाने से पहले भगवान को जरुर चढ़ाएं।
 
10. अपने या अपने परिवार के सदस्यों के ही रुपयों से तीर्थ करना चाहिए।
 
11. पैरों में खड़ाऊ पहनकर या सवारी चढ़कर तीर्थ के मुख्य क्षेत्र या मंदिर में नहीं जाना चाहिए।
 
12. अशौच अवस्था में तीर्थ या मंदिर में नहीं जाते हैं। तीर्थ के मंदिर में बगैर शुद्धकरण के दाखिल होना पाप है। 
 
13. किसी को कोसना, किसी की निंदा या स्तुति करना, रोना या जोर जोर से हंसना, किसी को दंड देना, आत्म-प्रशंसा करना, देवताओं को कोसना आदि भी पाप है।
 
14. पलंग लगाकर सोना, कंबल ओढ़कर बैठना, अधोवायु का त्याग करना,  आरती के समय उठकर चले जाना, एक हाथ से प्रणाम करना, शक्ति रहते हुए गौण उपचारों से पूजा करना, मुख्य उपचारों का प्रबन्ध न करना, मंदिर के सामने से निकलते हुए प्रणाम न करना। भजन-कीर्तन आदि के दौरान किसी भी भगवान का वेश बनाकर खुद की पूजा करवाना, मूर्ति के ठीक सामने खड़े होना, मंदिर से बाहर निकलते वक्त भगवान को पीठ दिखाकर बाहर निकलना, मंदिर में रुपये या पैसे फेंकना आदि सभी पाप है।

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