swami atuleshanand maharaj ujjain
उज्जैन। महाकाल की नगरी उज्जैन में दानीगेट में शिप्रा तट पर एक मस्जिद है जिसे बिना नींव की मस्जिद कहा जाता है। इसके बारे में किंवदंती है कि इसे सैकड़ों साल पहले जिन्नातों ने अपने लिए बनाया था। लेकिन महामंडलेश्वर अतुलेशानंदजी का दावा है कि यह परमारकाल भी छोटी भोजशाला है जिसे राजा भोज ने 1026 में बनवाया था।
महामंडलेश्वर अतुलेशानंदजी का भोजशाला होने का दावा : 'वेबदुनिया' से बात करते हुए आवाह्न संन्यासी अखाड़े के महामंडलेश्वर अतुलेशानंदजी ने कहा कि यदि आप इसे देखेंगे तो निश्चित रूप से जो धार में बनी भोजशाला है, सरस्वती मंदिर है, ये दोनों एक ही हैं। वो बड़े रूप में है और ये छोटे रूप में है। कई सालों से हम देख रहे हैं इस मस्जिद को। मैं तो 2007 में इसके अंदर भी हो आया था।
मस्जिद में है गर्भगृह और पानी निकलने का स्थान : 'वेबदुनिया' ने जब उनसे पूछा गया कि अंदर आपको क्या-क्या दिखाई दिया? तो उन्होंने कहा कि स्तंभ है परमारकालीन, गर्भगृह है। मस्जिदों में गर्भगृह होते हैं क्या? गर्भगृह है और पानी निकलने का स्थान है। जो शिवजी को स्नान कराते हैं तो पानी बाहर निकालने का स्थान है। यहां गणेशजी समेत हाथी-घोड़े की आकृतियां बनी हुई थीं और पत्थरों पर विशाल पहरेदार सैनिकों की मूर्तियां बनी हुई थीं। उसके बाद गुंबज वही है। इनकी तो मीनारें होती हैं। मुगल इनको देकर गए तो क्या ये मीनार भी खड़ी नहीं कर सकते थे?
1026 में बनाया गया था मंदिर :यह मंदिर सन् 1026 में परमारकाल में बनाया गया था। इल्तुतमिश नाम का एक लुटेरा आया जिसने 6 बार मालवा को लूटा था। जितने भी आए, सभी लुटेरे आए। इल्तुतमिश ने उस स्थान पर शिलालेख चिपकाकर, पुताई वगैरह कराकर अपना नाम लिखवा दिया। उसके बाद से इन्हें बोल गए कि 'तुम संभालना।'
मिटा रहे हैं मंदिर के चिन्ह : ये लोग धीरे-धीरे मंदिर के अवशेष मिटा रहे हैं। जैसे अंदर गणेशजी की मूर्ति थी तो उसे घिसा गया है और वहां एक गड्ढ़ा कर दिया गया है। दीवारों पर उकेरी गईं इन आकृतियों और प्रतिमाओं को धीरे-धीरे घिस रहे हैं। धीरे-धीरे तो ये लोग सब खत्म कर देंगे। 600 सालों में इन्होंने मंदिरों को मस्जिद ही तो बनाया है।
कोर्ट में दायर करेंगे पिटीशन : इस विषय के सारे एविडेंस हम इकट्ठे कर रहे हैं और इसके बाद हम हाईकोर्ट में इसको लेकर पिटीशिन दायर करेंगे। इसकी जांच के आदेश मांगेंगे सरकार से। जांच के आदेश करे सरकार। मस्जिद है तो मस्जिद बताएं मंदिर, भोजशाला है तो भोजशाला बताएं। भोजशाला निकलती है तो हमें दी जाए। मस्जिद निकलती है तो उनके लिए है।
उल्लेखनीय है कि महामंडलेश्वर अतुलेशानंदजी ने स्थानीय प्रशासन से पूर्व में इस मस्जिद की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कर उसका सर्वे करने की बात कही थी। राजा भोज एक शिवभक्त थे जिन्होंने 1026 में मोहम्मद गजनवी को हराया था और उसके भजीते को मार गिराया था। उसी समय उन्होंने शिप्रा तट पर भोजशाला का निर्माण कराया था जिसे 'छोटी भोजशाला' कहते हैं। भारतवर्ष में ऐसे कई मंदिरों का निर्माण उन्होंने कराया है। सन् 1600 में मुस्लिम मुगल शासकों ने इसे तोड़कर इस पर कब्जा कर लिया था।
गौरतबल है कि उज्जैन के दानी गेट इलाके के पास स्थित जाम-ए-अल्तमश मस्जिद को करीब 800 साल पुराना बताया जाता है। इस मस्जिद को 12वीं शताब्दी में दिल्ली के सुल्तान शम्सुद्दीन अल्तमश द्वारा बनवाया गया था। इस मस्जिद की मीनार नहीं है, जबकि मस्जिदों में मीनार होती है। मस्जिद की छत और दीवारों पर बहुत ही बारीक नक्काशी की गई है। जिसमें हाथी, गणेश प्रतिमा आदि देखे जाने के महामंडलेश्वर स्वामी अतुलेशानंद जी के दावे के बाद से यहां सुरक्षा बढ़ा दी गई है।