महाभारत में श्रीमद्भागवत गीता के अलावा अनु गीता, हंस गीता, पराशर गीता, बोध्य गीता, विचरव्नु गीता, हारीत गीता, काम गीता, पिंगला गीता, वृत्र गीता, शंपाक गीता, उद्धव गीता, मंकि गीता, व्याध गीता जैसी अनेक गीताएं हैं। इसके अलावा गुरु गीता, अष्ट्रवक गीता, गणेश गीता, अवधूत गीता, गर्भ गीता, परमहंस गीता, कर्म गीता, कपिल गीता, भिक्षु गीता, शंकर गीता, यम गीता, ऐल गीता, गोपीगीता, शिव गीता, विभीषण गीता और प्रणव गीता आदि गीताएं हैं। आओ जानते है वृत्र गीता के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
1. यह एक उग्र दानव वृत्रासुर और असुरों के गुरु शुक्राचार्य के बीच संवाद है, जो महाभारत के शांति पर्व में वर्णित हैं।
2. युधिष्ठिर को पितामह भीष्म दावन वृत्तासुर की कथा सुनाते हैं और इसके के साथ वृत्रासुर और शुक्राचार्य के बीच हुए संवाद कर वर्णन भी कहते हैं।
3. ऋग्वेद में देवताओं के राजा इंद्र और असुरों के राजा वृत्तासुर के बीच हुए युद्ध का वर्णन मिलता है।
4. यह सतयुग की बात है जब कालकेय नाम के एक राक्षस का संपूर्ण धरती पर आतंक था। वह वत्रासुर के अधीन रहता था। दोनों से त्रस्त होकर सभी देवताओं ने मिलकर सोचा वृत्रासुर का वध करना अब जरूरी हो गया। इस वृत्तासुर के वध के लिए ही दधीचि ऋषि की हड्डियों से एक हथियार बनाया जिसका नाम वज्र था। वृत्रासुर एक शक्तिशाली असुर था जिसने आर्यों के नगरों पर कई बार आक्रमण करके उनकी नाक में दम कर रखा था। अंत में इन्द्र ने मोर्चा संभाला और उससे उनका घोर युद्ध हुआ जिसमें वृत्रासुर का वध हुआ। इन्द्र के इस वीरतापूर्ण कार्य के कारण चारों ओर उनकी जय-जयकार और प्रशंसा होने लगी थी।
शोधकर्ता मानते हैं कि वृत्रासुर का मूल नाम वृत्र ही था, जो संभवतः असीरिया का अधिपति था। पारसियों की अवेस्ता में भी उसका उल्लेख मिलता है। वृत्र ने आर्यों पर आक्रमण किया था तथा उन्हें पराजित करने के लिए उसने अद्विशूर नामक देवी की उपासना की थी। इन्द्र और वृत्रासुर के इस युद्ध का सभी संस्कृतियों और सभ्यताओं पर गहरा असर पड़ा था। तभी तो होमर के इलियड के ट्राय-युद्ध और यूनान के जियॅस और अपोलो नामक देवताओं की कथाएं इससे मिलती-जुलती हैं। इससे पता चलता है कि तत्कालीन विश्व पर इन्द्र-वृत्र युद्ध का कितना व्यापक प्रभाव पड़ा था।