भगवान शिव का धाम अमरनाथ प्राकृतिक सुंदरता में किसी से कमतर नहीं है। चारों तरफ फैली बर्फ की सुंदर वादियाँ और बादलों से अठखेलियाँ करता आसमान... यह एक ऐसा धार्मिक, पर्यटन स्थल है, जिसकी सुंदरता और पवित्रता का वर्णन करना संभव नहीं है।अमरनाथ की गुफा में हर साल एक प्राकृतिक हिमलिंग बनता है। यह सिलसिला गुरु पूर्णिमा से शुरू होता है और रक्षा बंधन के समय शिवलिंग अपना पूर्ण आकार पाता है, जिसके दर्शन बेहद मनोहारी होते हैं। हिमालय की ‘पीर पंजाल’ पहाड़ियों पर स्थित है - बाबा अमरनाथ बर्फानी की गुफा। बाबा अमरनाथ की गुफा एवं यात्रा का प्रबंधन ‘बाबा अमरनाथ श्राइन बोर्ड’ द्वारा किया जाता है।किंवदंतियों के अनुसार शिव शंभु अमर हैं, किंतु सती के साथ जीवन-मरण का बंधन चलता रहता था। पार्वती रूप में जन्मीं सती ने एक बार प्रभु से हठ किया कि वे उन्हें अमरता का वरदान दें। उनके हठ पर शिवजी ने कहा- सिर्फ एक ही उपाय है, लेकिन उसे मैं यहाँ नहीं बता सकता। इसके लिए सुनसान इलाके में चलना होगा... जहाँ जीवन का अंश न हो। प्रमुख आकर्षणः-
पहलगाम- निर्जन स्थान की तलाश में प्रभु, माता पार्वती और भगवान गणेश को लेकर कैलाश पर्वत को छोड़ नंदी बैल पर बैठकर ऐसे स्थान की तलाश में निकल पड़े। एक स्थान पर आकर भगवान भोलेनाथ ने नंदी बैल से उतरकर उसे वहीं छोड़ दिया और माता के साथ आगे की ओर निकल पड़े। जिस स्थान पर नंदी बैल को छोड़ा गया था, उस स्थान का नाम बैलगाँव पड़ा, इसे ही बाद में पहलगाम कहा जाने लगा।
चाँदवाड़ीः- पहलगाँव से आगे की जगह का नाम चाँदवाड़ी है। इसके बारे में कहा जाता है कि पहलगाँव से आगे चलने के कुछ समय पश्चात भगवान शंकर ने एक स्थान पर अपने सिर पर जो चाँद सुशोभित था, उसे वहाँ छोड़ दिया। इस स्थान का नाम चाँदवाड़ी पड़ा।
पहलगाँव एवं चाँदवाड़ी कश्मीर की वादियों के सबसे सुंदर स्थान हैं। हर साल लाखों पर्यटक यहाँ आते हैं। इन्हीं स्थानों को देखकर अबुल फजल ने कहा था, ‘ यदि धरती पर कहीं स्वर्ग है तो बस यही हैं, यहीं है यहीं है।’शेषनाग झीलः- चंदनवाडी़ से गुजरने के बाद शेषनाग झील आती है। बेहद खूबसूरत इस झील के बारे में किंवदंती है। यहाँ पर भोले शंकर ने अपने गले में हार के समान रहने वाले भगवान शेषनाग को झील में छोड़ दिया था। इसलिए इस झील को शेषनाग झील कहा जाता है। कई श्रद्धालुओं की आज भी यह मान्यता है कि यहाँ पर शेषनाग के दर्शन होते हैं।गणेश टॉपः- नंदी, शेषनाग और चाँद को छोड़ने के बाद भगवान शंकर माता पार्वती के साथ वहाँ की सबसे ऊँची पहाड़ी पर पहुँचे। वहाँ पर उन्होंने भगवान श्रीगणेश को विराजित किया। उस स्थान को महागणेश टॉप कहा जाने लगा।
पंचतारणी नदीः- गणेश टॉप से कुछ आगे गुजरने पर पंचतारणी नदी पड़ती है। इस नदी के बारे में कहानी है कि माता पार्वती के साथ स्नान कर भगवान शंकर और माता पार्वती ने वे ‘पाँचों तत्व, जिनसे शरीर का निर्माण होता है, 1- धरती, 2- आकाश, 3- जल, 4- वायु और 5- अग्नि को उस नदी में छोड़ दिया ।’ तब से उस पवित्र नदी का नाम पंचतारणी पड़ गया।
अमरनाथ की गुफाः- यहाँ से आगे चलने पर आती है - अमरनाथ की पवित्र गुफा। इस गुफा के बारे में दंतकथा है कि सभी साथियों को पीछे छोड़ने के बाद भगवान शंकर और पार्वती माँ एक गुफा में पहुँचे। गुफा में शंभूनाथ आसन पर बैठ गए और अपना तीसरा नेत्र खोल वहाँ के सभी जीव-जंतुओं को भस्म कर दिया।
इसके बाद शंभु ने माँ को अमरता की कथा सुनाई। इस कथा को आसन के नीचे रखे कबूतर के अंडे ने सुन लिया, जिससे दो कबूतर के नवजात पैदा हुए । कहते हैं, कथा सुनने के कारण कबूतरों को भी अमरता प्राप्त हुई।
गुफा के आसपास आज भी श्वेत कबूतर दिखाई देते हैं। कहा जाता है कि कहानी खत्म होने के बाद शिव-पार्वती वापस कैलाश धाम लौट गए, लेकिन तब से यहाँ शिवलिंग बनने का सिलसिला शुरू हो गया। शिवलिंग के अलावा यहाँ पर माता पार्वती, भगवान शेषनाग एवं श्रीगणेशजी की भी मूर्ति लिंग के रूप में बनती है।
गुफा को 1950 में बूटा मलिक नामक मुस्लिम चरवाहे ने खोजा था। गाँववासियों को यह खबर देने के बाद वह चरवाहा गुफा में रहकर शंकर जी की पूजा करने लगा। इसके बाद से लोगों की बढ़ती भीड़ और वादी में बढ़ते आतंकवाद के कारण सरकार ने यहाँ सुरक्षा मुहैया करवाई ।
सन 1996 में प्राकृतिक आपदा की वजह से गुफा के सामने हजारों लोगों की मौत हो गई। इसके बाद भारत सरकार ने इस मंदिर का प्रबंधन अपने हाथों में ले लिया और 'बाबा अमरनाथ श्राइन बोर्ड' का गठन किया।
आज भी इस गुफा में भगवान शिवजी की पूजा का जिम्मा मुसलमान चरवाहे के परिवार के पास है और उस चरवाहे के परिवार के लोग मंदिर में भगवान की पूजा-अभिषेक एवं सेवा करते हैं। 'श्री बाबा अमरनाथ श्राइन बोर्ड' के द्वारा उन्हें चढ़ावे में से कुछ राशि दी जाती है। शेष राशि का उपयोग बोर्ड द्वारा यात्रियों की सुरक्षा, मंदिर के प्रबंधन, रास्ते का निर्माण, गुफा का सौंदर्यीकरण आदि में किया जाता है।
छड़ी मुबारकः- हर साल अमरनाथ की यात्रा की शुरुआत पहलगाँव में भूमी पूजन और ध्वजारोहण समारोह से होती है। इसके बाद छड़ी मुबारक के दिन यात्रा समाप्त मानी जाती है। श्रीनगर के दशनामी जूना अखाड़े के पास बाबा अमरनाथ की छड़ी और त्रिशूल है। श्रावण शुल्क अष्टमी के दिन देश भर से साधु-संत यहाँ जमा होते हैं। लाल चौक में छड़ी की पूजा की जाती है। धूम-धाम से जुलूस निकाला जाता है। गुफा तक यह जुलूस रक्षाबंधन के दिन पहुँचता है। छड़ी और त्रिशूल का पूजन किया जाता है और यहीं से यात्रा समाप्ति की घोषणा कर दी जाती है।कब जाएँ :- अमरनाथ यात्रा का सही समय गुरु पूर्णिमा से लेकर रक्षा बंधन तक है। इस समय यहाँ हिमलिंग आकार लेता है। रक्षा बंधन के नजदीक आते-आते यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ काफी बढ़ जाती है। कहाँ ठहरेः- इस यात्रा में आप जगह-जगह पड़ाव ले सकते हैं। पहलगाँव या बालटाल कहीं से भी चढ़ाई करने के बाद आप सरकारी या श्रद्धालुओं के द्वारा लगाए गए टेंट में विश्राम कर सकते हैं। बुजुर्ग श्रद्धालुओं को दिक्कत न हो, इसलिए हर थोड़ी-सी दूरी पर ऐसे टेंट लगाए जाते हैं। इन टेंटो में कंबल से लेकर दवाइयों तक हर चीज का इंतजाम होता है। मानचित्र में स्थितिः- बाबा अमरनाथ की गुफा भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग 1000 किलोमीटर जम्मू शहर से लगभग 400 किलोमीटर एवं श्रीनगर से 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।बजटः- अमरनाथ गुफा में महादेव के दर्शन करने के लिए दो व्यक्तियों का खर्च पँद्रह हजार रुपए तक आता है। बालटाल से अमरनाथ तक जाने के लिए यात्रियों को लगभग छह हजार रुपए खर्च करने होते हैं। यदि हवाई यात्रा से सफर किया जाए तो यह खर्च तकरीबन बीस हजार तक होता है। इसके अलावा यात्रा के दौरान खाने-पीने की चिंता करने की आवश्यक्ता नहीं। यहाँ भक्तों द्वारा जगह-जगह पर भंडारे लगाए जाते हैं। साथ ही डॉक्टर और दवाइयों की व्यवस्था बाबा के दर्शनार्थियों के लिए यात्रा की पूरी अवधि तक उपलब्ध होती है।कैसे करें अमरनाथ की कठिन चढ़ाईअमरनाथ यात्रा के समय ध्यान रखें