Sawan posters

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

पाकिस्तान की मां हिंगलाज देवी, मुस्लिम भी देते हैं सम्मान

Advertiesment
हमें फॉलो करें हिंगलाज देवी
, सोमवार, 23 मार्च 2015 (11:55 IST)
आपको जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि पाकिस्तान में भी पूजी जाती हैं देवी मां, पाकिस्तान के बलूचिस्तान राज्य में स्थित मां हिंगलाज मंदिर में हिंगलाज शक्तिपीठ की प्रतिरूप देवी की प्राचीन दर्शनीय प्रतिमा विराजमान हैं। माता हिंगलाज की ख्याति सिर्फ कराची और पाकिस्तान ही नहीं अपितु पूरे भारत में है। कराची जिले के बाड़ी कलां में विराजमान माता का मंदिर सुरम्य पहाड़ियों की तलहटी में स्थित है।माता का मन्दिर यहां इतना विख्यात है कि यहां वर्ष भर मेले जैसा माहौल रहता है। नवरात्रि के दौरान तो यहां पर नौ दिनों तक शक्ति की उपासना का विशेष आयोजन होता है। सिंध-कराची के लाखों सिंधी श्रद्धालु यहां माता के दर्शन को आते हैं। 
पाकिस्तान के बलूचिस्तान राज्य में हिंगोल नदी के समीप हिंगलाज क्षेत्र में स्थित हिंगलाज माता मंदिर हिन्दू भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र और प्रधान 51 शक्तिपीठों में से एक है।

माता के 52 शक्ति पीठ, संपूर्ण जानकारी

पौराणिक कथानुसार जब भगवान शंकर माता सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर लेकर तांडव नृत्य करने लगे, तो ब्रह्माण्ड को प्रलय से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता के मृत शरीर को 51 भागों में काट दिया।

मान्यतानुसार हिंगलाज ही वह जगह है जहां माता का सिर गिरा था। यहां माता सती कोटटरी रूप में जबकि भगवान भोलेनाथ भीमलोचन भैरव रूप में प्रतिष्ठित हैं। माता हिंगलाज मंदिर परिसर में श्रीगणेश, कालिका माता की प्रतिमा के अलावा ब्रह्मकुंड और तीरकुंड आदि प्रसिद्ध तीर्थ हैं। अगले पन्ने पर दर्शन करें मां हिंगलाज के...

पाकिस्तान के राज्य बलूचिस्तान में हिंदुओं के बहुत से धार्मिक स्थान मौजूद हैं जिनमें माता हिंगलाज देवी सिद्ध पीठ प्रमुख हैं। माता हिंगलाज देवी 51 सिद्ध पीठों में से एक हैं।  इस आदि शक्ति की पूजा हिंदुओं द्वारा तो की ही जाती है इन्हें मुसलमान भी काफी सम्मान देते हैं।  
webdunia





माता हिंगलाज मंदिर में पूजा-उपासना का बड़ा महत्व है। कहा जाता है कि इस प्रसिद्ध मंदिर में माता की पूजा करने को गुरु गोरखनाथ, गुरु नानक देव, दादा मखान जैसे महान आध्यात्मिक संत आ चुके हैं।

जनश्रुति है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम भी यात्रा के लिए इस सिद्ध पीठ पर आए थे। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्रि ने यहां घोर तप किया था। उनके नाम पर आसाराम नामक स्थान अब भी यहां मौजूद है। अगल पन्ने पर जानिए कैसे जाएं माता हिंगलाज के दर्शन को... 

कैसे जाएं माता हिंगलाज के मंदिर दर्शन को –  इस सिद्ध पीठ की यात्रा के लिए दो मार्ग हैं – एक पहाड़ी तथा दूसरा मरुस्थली। यात्री जत्था कराची से चल कर लसबेल पहुंचता है और फिर लयारी। माता हिंगलाज देवी की यात्रा कठिन है क्योंकि रास्ता काफी ऊबड़-खाबड़ है। इसके दूर-दूर तक आबादी का कोई नामो-निशान तक नजर नहीं आता।
webdunia
रास्ते में कई बरसाती नाले तथा कुएं भी मिलते हैं। इसके आगे रेत की एक शुष्क बरसाती नदी है। इस इलाके की सबसे बड़ी नदी हिंगोल है जिसके निकट चंद्रकूप पहाड़ हैं। चंद्रकूप तथा हिंगोल नदी के मध्य लगभग 15 मील का फासला है। हिंगोल में यात्री अपने सिर के बाल कटवा कर पूजा करते हैं तथा यज्ञोपवीत पहनते हैं। उसके बाद गीत गाकर अपनी श्रद्धा की अभिव्यक्ति करते हैं।
 
मंदिर की यात्रा के लिए यहां से पैदल चलना पड़ता है क्योंकि इससे आगे कोई सड़क नहीं है इसलिए ट्रक या जीप पर ही यात्रा की जा सकती है। हिंगोल नदी के किनारे से यात्री माता हिंगलाज देवी का गुणगान करते हुए चलते हैं। इससे आगे आसापुरा नामक स्थान आता है। यहां यात्री विश्राम करते हैं। यात्रा के वस्त्र उतार कर स्नान करके साफ कपड़े पहन कर पुराने कपड़े गरीबों तथा जरूरतमंदों के हवाले कर देते हैं। इससे थोड़ा आगे काली माता का मंदिर है। इतिहास में उल्लेख मिलता है कि यह मंदिर 2000 वर्ष पूर्व भी यहीं विद्यमान था।
 
इस मंदिर में आराधना करने के बाद यात्री हिंगलाज देवी के लिए रवाना होते हैं। यात्री चढ़ाई करके पहाड़ पर जाते हैं जहां मीठे पानी के तीन कुएं हैं। इन कुंओं का पवित्र जल मन को शुद्ध करके पापों से मुक्ति दिलाता है। इसके निकट ही पहाड़ की गुफा में माता हिंगलाज देवी का मंदिर है जिसका कोई दरवाजा नहीं। मंदिर की परिक्रमा में गुफा भी है। यात्री गुफा के एक रास्ते से दाखिल होकर दूसरी ओर निकल जाते हैं। मंदिर के साथ ही गुरु गोरखनाथ का चश्मा है। मान्यता है कि माता हिंगलाज देवी यहां सुबह स्नान करने आती हैं।
 
हिंगलाज मंदिर में दाखिल होने के लिए पत्थर की सीढिय़ां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर में सबसे पहले श्री गणेश के दर्शन होते हैं जो सिद्धि देते हैं। सामने की ओर माता हिंगलाज देवी की प्रतिमा है जो साक्षात माता वैष्णो देवी का रूप हैं। साभार - अरोरा-खत्री समाज 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

गणगौर तीज : अखंड सौभाग्य प्राप्ति का व्रत