dewas tekri: देशभर में कई जगहों पर माता तुलजा भवानी और चामुंडा के मंदिर हैं परंतु मध्यप्रदेश के देवास में टेकरी यानी छोटी पहाड़ी पर स्थिति माता का मंदिर बहुत ही प्राचीन और सिद्ध है। कहते हैं कि जहां पर भी माता सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठ और जहां पर भी रक्त गिरा वहां पर रक्त पीठ निर्मित हो गए। देवास में माता का रक्त गिरा था। इसीलिए इस जगह का खास महत्व है। देवास शहर का नाम दो देवियों के वास के नाम पर देवास पड़ा। इसका पहले नाम देववासिनी था। बाद में यह देवास हो गया।
लोकमान्यता की कथा : देवास टेकरी पर देवी मां के 2 स्वरूप अपनी जागृत अवस्था में हैं। इन दोनों स्वरूपों को छोटी मां और बड़ी मां के नाम से जाना जाता है। बड़ी मां को तुलजा भवानी और छोटी मां को चामुण्डा देवी का स्वरूप माना गया है। यहां देवास में माता सती का रक्त गिरा था। उससे दो देवियों की उत्पत्ति हुई। यहां के कुछ पुजारी बताते हैं कि बड़ी मां और छोटी मां के मध्य बहन का रिश्ता था। एक बार दोनों में किसी बात पर विवाद हो गया। विवाद से क्षुब्द दोनों ही माताएं अपना स्थान छोड़कर जाने लगीं। बड़ी मां पाताल में समाने लगीं और छोटी मां अपने स्थान से उठ खड़ी हो गईं और टेकरी छोड़कर जाने लगीं।
माताओं को कुपित देख माताओं के साथी (माना जाता है कि बजरंगबली माता का ध्वज लेकर आगे और भेरू बाबा माँ का कवच बन दोनों माताओं के पीछे चलते हैं) हनुमानजी और भेरू बाबा ने उनसे क्रोध शांत कर रुकने की विनती की। इस समय तक बड़ी माँ का आधा धड़ पाताल में समा चुका था। वे वैसी ही स्थिति में टेकरी में रुक गईं। वहीं छोटी माता टेकरी से नीचे उतर रही थीं। वे मार्ग अवरुद्ध होने से और भी कुपित हो गईं और जिस अवस्था में नीचे उतर रही थीं, उसी अवस्था में टेकरी पर रुक गईं। इस तरह आज भी माताएं अपने इन्हीं स्वरूपों में विराजमान हैं।
स्वयंभू मूर्ति : यहां के लोगों का मानना है कि माताओं की ये मूर्तियाँ स्वयंभू हैं और जागृत स्वरूप में हैं। बड़ी माता यानी तुलजा भवानी मंदिर के प्रमुख मुकेश पुजारी का कहना है कि हमारे पूर्वज बताते हैं कि यह स्थान सतयुग से ही विद्यमान है। हमारे पूर्वज खुद ही यहां करीब 5 हजार वर्षों से पूजा पाठ करते आ रहे हैं। यह नाथ और दसनामी संप्रदाय का प्रमुख स्थान है। यहां पर नाथ संप्रदाय का शक्तिपीठ है। गुरु गोरखनाथ के समय से ही यहां हमारी पूजा परंपरा चली आ रही है। यह यहां के राजपरिवार की कुलदेवी भी हैं।
सिद्धों की तपोभूमि : कहते हैं माता के इस मंदिर में गुरु गोरखनाथ, राजा भर्तहरि, सद्गुरु शीलनाथ महाराज, जैसे कई सिद्ध पुरुष तपस्या कर चुके हैं। राजा विक्रमादित्य और चक्रवर्ती राजा पृथ्वीराज चौहान भी माता के दरबार में माथा टेक चुके हैं। राजा भर्तृहरि और शीलनाथ बाबा की यह तपस्थली है। यहां पर शिवोम तीर्थ और उनके गुरु नारायण तीर्थ ने भी तप किया है। यह भी कहते हैं कि यहां पर राजस्थान के एक संत देवनारायण ने आकर तप किया था। देवनारायण जी राजस्थान के एक लोक देवता, शासक और महान योद्धा थे।
पवार घराने की कुलदेवी: इसके साथ ही देवास के संबंध में एक और लोक मान्यता यह है कि यह पहला ऐसा शहर है, जहाँ दो वंश राज करते थे- पहला होलकर राजवंश और दूसरा पंवार राजवंश। बड़ी मां तुलजा भवानी देवी होलकर वंश की कुलदेवी हैं और छोटी माँ चामुण्डा देवी पंवार वंश की कुलदेवी। यहां का राज परिवार अष्टमी और नवमी के दिन यहां पूजन कर हवन में आहुति देते हैं। उन्होंने ही ही इस स्थान पर स्थित मूर्तियों के आसपास मंदिर बनाया है।
हालांकि मराठाओं की कुल देवी का मूल स्थान महाराष्ट्र में है। इसे उप स्थान माना जाता है। महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में स्थित है तुलजापुर। एक ऐसा स्थान जहां छत्रपति शिवाजी की कुलदेवी श्री तुलजा भवानी स्थापित हैं, जो आज भी महाराष्ट्र व अन्य राज्यों के कई निवासियों की कुलदेवी के रूप में प्रचलित हैं। तुलजा भवानी महाराष्ट्र के प्रमुख साढ़े तीन शक्तिपीठों में से एक है तथा भारत के प्रमुख 52 शक्तिपीठों में से भी एक मानी जाती है।
दर्शन करने का नियम: यहां आप रपट से जाएं, सीढ़ियों से जाएं या ट्रॉम से..ऊपर जाने के बाद आपको उल्टे हाथ की ओर जाकर पहले माता तुलजा भवानी यानी बड़ी माता के दर्शन करना चाहिए। फिर उनके पास भैरव बाबा, इसके बाद बजरंगबली, फिर कालिका मंदिर होते हुए आप आगे बढ़ेंगे तो अन्नपूर्णा माता एवं खो खो माता के बाद आपको चामुंडा माता का मंदिर नजर आएगा। चामुंडा माता को छोटी माता कहा जाता है। यदि आप सीढ़ियों से जाते हैं तो सामने सबसे पहले आपको चामुंडा माता का मंदिर ही नजर आता है। वहां न जाते हुए आप सीधे परिक्रमा मार्ग पर जाएं। यह कुबेर की प्रतिमा से प्रारंभ होता है। यहां पर कुल 9 देवियों का वास है।
आरती का समय : यहां पर नाथ सम्प्रदाय के पुजारी क्रम से सुबह और शाम को माता की आरती और पूजन करते हैं। यहां सुबह 6 बजे बड़ी माता की आरती और 7 बजे छोटी माता की आरती की जाती है। यही क्रम शाम को भी दोहराया जाता है। नाथ समुदाय के लोगों को ही यहां पर पूजन सामग्री की दुकानें लगाने का अधिकार मिला हुआ है। इसी से उनका घर परिवार चलता है।
मान्यता : कहते हैं कि यहां पर दोनों माताएं दिन में तीन बार रूप बदलती हैं। सुबह बाल अवस्था, दोपहर युवा अवस्था अर रात को वृद्धावस्था में इन्हें देखा जा सकता है। यह भी मान्यता है कि जिन्हें संतान नहीं हो रही है वे माता को लगातार 5 दिनों तक पान का बीड़ा अर्पित करते हैं। इसी के साथ उल्टा सातिया भी बनाते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर साथिया सीधा किया जाता है और मनोकामना मांगते वक्त जो भी वादा किया था उसे पूर्ण किया जाता है या फिर यथाशक्ति माता को जो भी अर्पण करना हो वह करते हैं।
कैसे जाएं :
1. हवाई मार्ग- यहां का निकटतम हवाई अड्डा मध्यप्रदेश की व्यावसायिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर शहर में स्थित है।
2. सड़क मार्ग- यह शहर राष्ट्रीय राजमार्ग आगरा-मुंबई से जुड़ा हुआ है। यह मार्ग माता की टेकरी के नीचे से ही गुजरता है। इसके निकटतम शहर इंदौर और उज्जैन है, जो यहाँ से मात्र 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इंदौर या उज्जैन से आप बस या टैक्सी लेकर देवास जा सकते हैं।
3. रेलमार्ग- इंदौर और उज्जैन शहर में रेल मार्ग का जाल बिछा हुआ है। इंदौर आकर आप रेल से देवास जा सकते हैं।