पंढरपुर में भगवान विट्ठल का प्रसिद्ध मंदिर। यहां की महापूजा देखने के लिए लाखों लोग एकत्रित होते हैं। कौन है श्रीहिर विट्ठल और कहां है उनका मंदिर। आओ जानते हैं कि श्रीहरि विट्ठल कौन हैं और क्या उनकी कथा और मंत्र।
कौन है हरि विट्ठल?
महाराष्ट्र के पंढरपुर में भगवान श्रीकृष्ण का प्रसिद्ध मंदिर है। यहां श्रीकृष्ण श्रीहरि विट्ठल रूप में विराजमान हैं और उनके साथ लक्ष्मी अवतार माता रुक्मणिजी की भी पूजा होती है।
विट्ठल रूप की कथा :
6वीं सदी में संत पुंडलिक हुए जो माता-पिता के परम भक्त थे। उनके इष्टदेव श्रीकृष्ण थे। माता पिता के भक्त होने के पीछे की लंबी कथा है। एक समय ऐसा था जबकि उन्होंने अपने ईष्टदेव की भक्ति छोड़कर माता पिता को भी घर से बहार निकाल दिया था परंतु बाद में उन्हें घोर पछतावा हुआ और वे माता पिता की भक्ति में लीन हो गए। साथ ही वे श्रीकृष्ण की भी भक्ति करने लगे।
उनकी इस भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन श्रीकृष्ण रुकमणी के साथ द्वार पर प्रकट हो गए। तब प्रभु ने उन्हें स्नेह से पुकार कर कहा, 'पुंडलिक, हम तुम्हारा आतिथ्य ग्रहण करने आए हैं।'
उस वक्त पुंडलिक अपने पिता के पैर दबार रहे थे और उनकी पीठ द्वार की ओर थी। पुंडलिक ने कहा कि मेरे पिताजी शयन कर रहे हैं, इसलिए अभी मैं आपका स्वागत करने में सक्षम नहीं हूं। प्रात:काल तक आपको प्रतिक्षा करना होगी। इसलिए आप इस ईंट पर खड़े होकर प्रतीक्षा कीजिए और वे पुन: पैर दबाने में लीन हो गए।
भगवान ने अपने भक्त की आज्ञा का पालन किया और कमर पर दोनों हाथ धरकर और पैरों को जोड़कर ईंटों पर खड़े हो गए। ईंट पर खड़े होने के कारण उन्हें विट्ठल कहा गया और उनका यही स्वरूप लोकप्रियता हो चली। इन्हें विठोबा भी कहते हैं। पिता की नींद खुलने के बादा पुंडलिक द्वार की और देखने लगे परंतु तब तक प्रभु मूर्ति रूप ले चुके थे। पुंडलिक ने उस विट्ठल रूप को ही अपने घर में विराजमान किया।
यही स्थान पुंडलिकपुर या अपभ्रंश रूप में पंढरपुर कहलाया, जो महाराष्ट्र का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ है। पुंडलिक को वारकरी संप्रदाय का ऐतिहासिक संस्थापक भी माना जाता है, जो भगवान विट्ठल की पूजा करते हैं। यहां भक्तराज पुंडलिक का स्मारक बना हुआ है। इसी घटना की याद में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है।
श्री हरि विट्ठल जी का मंत्र :
1. लोग विट्ठला विट्ठला जपते हैं।
2. ॐ भूर्भुवः स्वः श्री विट्ठलाय नम: कृष्णवर्ण विट्ठल नम: श्री विट्ठल आभायामी
3. ॐ विठोबाय नम:
4. हरि ॐ विट्ठलाय नम: