प्राचीनकाल में सबसे ज्यादा मंदिर शिव, विष्णु और दुर्गा माता के हुआ करते हैं। फिर एक समय ऐसा आया जब राम और कृष्ण के मंदिरों की संख्या बढ़ गई। तब विष्णु के अधिकतर मंदिर श्रीकृष्ण के मंदिरों में बदल गए। अधिकमास में विष्णु भगवान की पूजा का ही महत्व है। आओ जानते हैं कि श्रीहरि विष्णु के 5 प्रमुख मंदिरों की संक्षिप्त जानकारी।
1. बद्रीनाथ : यह भगवान विष्णु के सबसे प्राचीन मंदिर है। हिन्दुओं के चार धामों में से एक ब्रद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु का निवास स्थल है। यह भारत के उत्तरांचल राज्य में अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है। यहां प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली जंगली बेरी बद्री के कार इस धाम का नाम बद्री पड़ा। यहां बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। यहां नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है और अखण्ड दीप जलता है, जो कि अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है। मंदिर में बदरीनाथ की दाहिनी ओर कुबेर की मूर्ति भी है। उनके सामने उद्धवजी हैं तथा उत्सवमूर्ति है। उत्सवमूर्ति शीतकाल में बरफ जमने पर जोशीमठ में ले जाई जाती है। उद्धवजी के पास ही चरणपादुका है। यहीं श्रीदेवी और भूदेवी की मूर्तियां भी हैं। यह भगवान विष्णु को समर्पित 108 मंदिरों (दिव्य देसम) में शामिल है, जिनका तमिल संतों ने छठी से 9वीं शताब्दी के बीच उल्लेख किया था।
2. जगन्नाथ : माना जाता है कि भगवान विष्णु जब चारों धामों पर बसे अपने धामों की यात्रा पर जाते हैं तो हिमालय की ऊंची चोटियों पर बने अपने धाम बद्रीनाथ में स्नान करते हैं। पश्चिम में गुजरात के द्वारिका में वस्त्र पहनते हैं। पुरी में भोजन करते हैं और दक्षिण में रामेश्वरम में विश्राम करते हैं। द्वापर के बाद भगवान कृष्ण पुरी में निवास करने लगे और बन गए जग के नाथ अर्थात जगन्नाथ। पुरी का जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं।
हिन्दुओं की प्राचीन और पवित्र 7 नगरियों में पुरी उड़ीसा राज्य के समुद्री तट पर बसा है। यहीं पर यह विशालकाय मंदिर देश का सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है। पुराणों में इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है। इसे श्रीक्षेत्र, श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरि और श्री जगन्नाथ पुरी भी कहते हैं। यहां लक्ष्मीपति विष्णु ने तरह-तरह की लीलाएं की थीं। ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार यहां भगवान विष्णु पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतरित हुए और सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए। पुराण के अनुसार नीलगिरि में पुरुषोत्तम हरि की पूजा की जाती है। पुरुषोत्तम हरि को यहां भगवान राम का रूप माना गया है। सबसे प्राचीन मत्स्य पुराण में लिखा है कि पुरुषोत्तम क्षेत्र की देवी विमला है और यहां उनकी पूजा होती है। रामायण के उत्तराखंड के अनुसार भगवान राम ने रावण के भाई विभीषण को अपने इक्ष्वाकु वंश के कुल देवता भगवान जगन्नाथ की आराधना करने को कहा। आज भी पुरी के श्री मंदिर में विभीषण वंदापना की परंपरा कायम है। इस मंदिर का सबसे पहला प्रमाण महाभारत के वनपर्व में मिलता है। कहा जाता है कि सबसे पहले सबर आदिवासी विश्ववसु ने नीलमाधव के रूप में इनकी पूजा की थी। आज भी पुरी के मंदिरों में कई सेवक हैं जिन्हें दैतापति के नाम से जाना जाता है।
3. रंगनाथ स्वामी : दक्षिण भारत के तिरुचिरापल्ली शहर के श्रीरंगम में स्थित रंगनाथ स्वामी का मंदिर श्रीहरि विष्णु को समर्पित है। कहा जाता है भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम ने लंका से लौटने के बाद यहां पूजा की थी। ऐसी मान्यता है कि गौतम ऋषि पर गौहत्या का मिथ्या आरोप लगा तो वे नासिक त्र्यम्केश्वर से निकलकर यहां आ गए थे और उन्होंने यहां श्रीहरि विष्णु की कठोर तपस्या की थी। तभी से यह स्थान पवित्र बन गया। फिर धीरे-धीरे यहा भव्य मंदिर का निर्माण हुआ।
4. वेंकटेश मंदिर : आन्ध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के तिरुपति के पास तिरूमाला पहाड़ी पर स्थित भगवान वेंकटेश्वर मंदिर का मंदिर विष्णु के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। ष्णव परम्पराओं के अनुसार यह मन्दिर 108 दिव्य देसमों का एक अंग है। विष्णु ने कुछ समय के लिए तिरुमला स्थित स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। आज भी यह कुंड विद्यमान है जिसके जल से ही मंदिर के कार्य सम्पन्न होते हैं। इनकी ख्याति तिरुपति बालाजी मंदिर के रूप में हैं।
5. पद्मनाभ मंदिर : केरल के तिरुवनंतपुरम स्थित ऐतिहासिक श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर त्रावणकोर के राजाओं का मंदिर है। भारत के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में शामिल यह ऐतिहासिक मंदिर तिरुवनंतपुरम के पर्यटन स्थलों में से एक है। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति विराजमान है जिसे देखने के लिए रोजाना हजारों भक्त दूर-दूर से यहां आते हैं। इस प्रतिमा में भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। यहां लक्ष्मीजी की मूर्ति भी विराजमान है। मान्यता है कि तिरुअनंतपुरम् नाम भगवान के 'अनंत' नामक नाग के नाम पर ही रखा गया है। यहां पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को 'पद्मनाभ' कहा जाता है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से विष्णु भगवान की प्रतिमा मिली थी जिसके बाद यहां पर मंदिर का निर्माण किया गया।
मंदिर का निर्माण राजा मार्तंड ने करवाया था। भगवान विष्णु को समर्पित पद्मनाम मंदिर को त्रावणकोर के राजाओं ने बनाया था। इसका जिक्र 9वीं शताब्दी के ग्रंथों में भी आता है, लेकिन मंदिर के मौजूदा स्वरूप को 18वीं शताब्दी में बनवाया गया था। मंदिर में एक स्वर्ण स्तंभ भी बना हुआ है, जो मंदिर की खूबसूरती में इजाफा करता है। मंदिर के गलियारे में अनेक स्तंभ बनाए गए हैं जिन पर सुंदर नक्काशी की गई है, जो इसकी भव्यता में चार चांद लगा देती है। मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को धोती और महिलाओं को साड़ी पहनना अनिवार्य है।