What is Vivekananda Rock Memorial: कन्या कुमारी हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थस्थल है और साथ ही यह पर्यटन प्रेमियों के लिए बहुत ही अद्भुत डेस्टिनेशन है। भारत के दक्षिणी छोर पर बसा कन्याकुमारी हमेशा से ही टूरिस्ट्स की फेवरेट जगह रही है। यहां के एक टापू पर विवेकानंद स्मारक बना है। इस टापू को विवेकानंद रॉक भी कहते हैं। आओ जानते हैं कन्याकुमारी और विवेकानंद रॉक के बारे में रोचक जानकारी।
क्या है कन्या कुमारी : कन्याकुमारी तमिलनाडु राज्य का एक शहर है। कन्याकुमारी दक्षिण भारत के महान शासकों चोल, चेर, पांड्य, नायका के अधीन रहा है। यह मध्यकाल में विजयानगरम् साम्राज्य का भी हिस्सा रहा है। यहां पर तीन सागरों का संगम होता है। कन्याकुमारी में तीन समुद्रों-बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिन्द महासागर का मिलन होता है। इस स्थान को त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है। जहां समुद्र अपने विभिन्न रंगों से मनोरम छटा बिखेरते रहते हैं। समुद्र बीच पर रंग-बिरंगी रेत इसकी सुंदरता में चार चांद लगा रही थी।
क्या कहती है पौराणिक मान्यता : इस स्थान को श्रीपद पराई के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर कन्याकुमारी ने भी तपस्या की थी। इसलिए इस स्थान को कन्याकुमारी कहा जाता है। कन्याकुमारी पहले केप कोमोरन के नाम से भी जाना जाता था। कहा जाता है कि यहां कुमारी देवी के पैरों के निशान भी हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव ने असुर वाणासुर को वरदान दिया था कि कुंवारी कन्या के अलावा किसी के हाथों उसका वध नहीं होगा। प्राचीनकाल में भारत पर शासन करने वाले राजा भरत को 8 पुत्री और 1 पुत्र था। भरत ने अपने साम्राज्य को 9 बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी संतानों को दे दिया। दक्षिण का हिस्सा उनकी पुत्री कुमारी को मिला। कुमारी शिव की भक्त थीं और भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं। विवाह की तैयारियां होने लगीं लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि वाणासुर का कुमारी के हाथों वध हो जाए। इस कारण शिव और देवी कुमारी का विवाह नहीं हो पाया। कुमारी को शक्ति देवी का अवतार माना जाने लगा और वाणासुर के वध के बाद कुमारी की याद में ही दक्षिण भारत के इस स्थान को 'कन्याकुमारी' कहा जाने लगा। यह भी कहा जाता है कि शहर का नाम देवी कन्या कुमारी के नाम पर पड़ा है, जिन्हें भगवान कृष्ण की बहन माना गया है।
विवेकानंद रॉक : समुद्र के बीच में जहां श्रीपद है उसी जगह पर स्वामी विवेकानंद ने ध्यान लगाया था। कहते हैं कि वे इस चट्टान तक तैरते हुए गए थे। इसी घटना की याद में यहां उनकी विशाल आदमकद मूर्ति लगा दी गई है। इसी के पास एक दूसरी चट्टान पर तमिल के संत कवि तिरूवल्लुवर की 133 फीट ऊंची मूर्ति है। विवेकानंद स्मारक के करीब इस भव्य प्रतिमा को स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी की तर्ज पर बनाया गया है। यहां तक पहुंचने के लिए स्टीमर या नौका की सहायता लेनी पड़ती है। नाव की धीमी गति में आप मदहोश करने वाली हवा और खूबसूरत नजारों का आराम से लुफ्त उठाएंगें। नौका में बैठकर या किनारे पर खड़े होकर मछलियों का दाना खिलाना भी अविस्मरणीय अनुभव रहेगा।
स्वामी विवेकानंद के संदेशों को साकार रूप देने के लिए ही 1970 में उस विशाल शिला पर एक भव्य स्मृति भवन का निर्माण किया गया। यह विवेकानंद स्मारक भवन बहुत ही सुंदर मंदिर के रूप में बनाया गया है। इसका मुख्य द्वार अत्यंत सुंदर है। नीले तथा लाल ग्रेनाइट के पत्थरों से निर्मित स्मारक पर 70 फीट ऊंचा गुंबद है। यह स्थान 6 एकड़ के क्षेत्र में फैला है। मुख्य द्वीप से लगभग 500 मीटर की दूरी पर स्थित यह स्मारक 2 पत्थरों के शीर्ष पर स्थित है। भवन के अंदर चार फीट से ज्यादा ऊंचे प्लेट फॉर्म पर परिव्राजक संत स्वामी विवेकानंद की मूर्ति है। यह मूर्ति कांसे की बनी है, जिसकी ऊंचाई साढ़े आठ फीट है।
प्राकृतिक स्थल : कन्याकुमारी अपने सूर्योदय के दृश्य के लिए काफी प्रसिद्ध है। सुबह हर होटल की छत पर पर्यटकों की भारी भीड़ सूरज की अगवानी के लिए जमा हो जाती है। शाम को सागर में डूबते सूरज को देखना भी यादगार होता है। उत्तर की ओर करीब 2-3 किलोमीटर दूर एक सनसेट प्वॉइंट भी है। यहाँ का सबसे बड़ा आकर्षण समुद्र का संगम है। यहाँ की रेत पर अपने साथी के हाथों में हाथ डालकर चलना बेहद रोमांटिक अनुभव होता है।
कुमारी देवी का मंदिर : यहां के समुद्री तट पर ही कुमारी देवी का मंदिर है, जहां देवी पार्वती के कन्या रूप को पूजा जाता है। मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को कमर से ऊपर के वस्त्र उतारने पड़ते हैं।
कन्याश्रम- सर्वाणी कन्याकुमारी : कन्याश्रम में माता का पृष्ठ भाग (पीठ) गिरा था। इसकी शक्ति है सर्वाणी और शिव को निमिष कहते हैं। कुछ विद्वान को मानना है कि यहां मां का उर्ध्वदंत गिरा था। कन्याश्रम को कालिकशराम या कन्याकुमारी शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है। यह शक्तिपीठ चारों ओर जल से घिरा हुआ है। ये एक छोटा सा टापू है जहां का दृश्य बहुत ही मनोरम है।
प्रचलित कथा के अनुसार देवी का विवाह संपन्न न हो पाने के कारण बच गए दाल-चावल बाद में कंकर बन गए। आश्चर्यजनक रूप से कन्याकुमारी के समुद्र तट की रेत में दाल और चावल के आकार और रंग-रूप के कंकर बड़ी मात्रा में देखे जा सकते हैं।
गुगनाथस्वामी मंदिरः इस मंदिर को यहां का प्राचीन और ऐतिहासिक हस्ताक्षर माना जाता है। यह मंदिर यहां के चोल राजाओं ने बनवाया था। पुरातत्व की दृष्टि से बेहद खूबसूरत यह मंदिर लगभग हजार साल पुराना माना जाता है।
गांधी मंडपम : यहां स्थित गांधी मंडपम में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की चिता की राख रखी हुई है। बताया जाता है कि महात्मा गांधी 1937 में यहां आए थे। कहते हैं कि 1948 में कन्याकुमारी में भी उनकी अस्थियां विसर्जित की गई थी।
किला : इसके अलावा कन्याकुमारी में कुछ किलोमीटर उत्तर में नागरकोविल में वनविहार और पद्मनाभपुरम में एक पुराना किला है। कन्याकुमारी से 34 किलोमीटर दूर उदयगिरी का किला है जो 18 वीं शताब्दी में बनाया गया था, जिसका निर्माण राजा मार्तंडवर्मा करवाया था।