वायु पुराण के अनुसार मगध सम्राट बसु द्वारा राजगीर में 'वाजपेयी यज्ञ' कराया गया था। उस यज्ञ में राजा बसु के पितामह ब्रह्मा सहित सभी देवी- देवता राजगीर पधारे थे। यज्ञ में पवित्र नदियों और तीर्थों के जल की जरूरत पड़ी थी। कहा जाता है कि ब्रह्मा के आह्वान पर ही अग्निकुंड से विभिन्न तीर्थों का जल प्रकट हुआ था।
उस यज्ञ का अग्निकुंड ही आज का ब्रह्मकुंड है। उस यज्ञ में बड़ी संख्या में ऋषि महर्षि भी आते हैं। सर्वोत्तम मास में यहां अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति की महिमा है।
इस संबंध में किंवदंती है कि भगवान ब्रह्मा से राजा हिरण्यकश्यप (हिरण्यकश्यपु) ने वरदान मांगा था कि रात-दिन, सुबह-शाम और उनके द्वारा बनाए गए 12 मास में से किसी भी मास में उसकी मौत न हो। इस वरदान को देने के बाद जब ब्रह्मा को अपनी भूल का अहसास हुआ, तब वे भगवान विष्णु के पास गए।
भगवान विष्णु ने विचारोपरांत हिरण्यकश्यप के अंत के लिए तेरहवें महीने का निर्माण किया। तब से पुरुषोत्तम मास को 13वां महीना भी कहा जाने लगा।
इसी अधिक मास में मगध की पौराणिक नगरी राजगीर में प्रत्येक ढाई से तीन साल पर विराट मलमास मेला लगता है, जहां लाखों श्रद्धालु आते हैं। वे पवित्र नदियों प्राची, सरस्वती और वैतरणी के अलावा गर्म जलकुंडों, ब्रह्मकुंड, सप्तधारा, न्यासकुंड, मार्कंडेय कुंड, गंगा-यमुना कुंड, काशीधारा कुंड, अनंत ऋषि कुंड, सूर्य-कुंड, राम-लक्ष्मण कुंड, सीता कुंड, गौरी कुंड और नानक कुंड में स्नान कर भगवान लक्ष्मी नारायण मंदिर में आराधना करते हैं।
राजगीर में मलमास के दौरान लाखों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में दिखती है गंगा-यमुना संस्कृति की झलक। मोक्ष की कामना और पितरों के उद्धार के लिए यहां श्रद्धालुओं तांता लगता है। अधिक मास के दौरान राजगीर में भव्य मेला भी लगता है।