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कविता : उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता

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हमें फॉलो करें कविता : उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता
उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता
जिस मुल्क की सरहद की निगेहबान हैं आंखें
हर तरह के जज्बात का, ऐलान हैं आंखें
शबनम कभी शोला कभी, तूफान हैं आंखें
 
आंखों से बड़ी कोई तराजू नहीं होती
तुलता है बशर जिसमें, वह मीजान है आंखें
 
आंखें ही मिलाती है जमाने में दिलों को
अनजान हैं हम तुम अगर, अनजान हैं आंखें
 
लब कुछ भी कहें इससे हकीकत नहीं खुलती
इंसान के सच झूठ की पहचान हैं आंखें
 
आंखें न झुकें तेरी किसी गैर के आगे
दुनिया में बड़ी चीज मेरी जान हैं आंखें
 
उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता
जिस मुल्क की सरहद की निगेहबान है आंखें।


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