Dharma Sangrah

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

गणतंत्र दिवस : कोई अब सो न सके गीत वो गाते रहिए

Advertiesment
हमें फॉलो करें Republic Day Hindi
- विवेक जगताप
 
गणतंत्र दिवस पर आज भी हम क्यों सुखी नहीं, इसे जांचना होगा। जैसे हम मझधार में डोल रहे हैं। कई बार वरीयताएं और प्राथमिकताएं तय करने में हमें दिक्कत हो रही है। आज भी एक करोड़ बच्चे प्राथमिक शालाओं के दरवाजे तक नहीं पहुंच पा रहे। विकास की अवधारणा केवल विकसित लोगों के विकास तक सीमित नहीं हो सकती।
भारत शब्द जब हमारे कानों में गूंजता है तब एक शांति अनुभव होती है। जब हम इस शब्द को स्वयं उच्चारित करते हैं तब हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। मनोज कुमार की फिल्मों के नायकों की तरह यह भाव हर भारतवासी के मन में है। पर यह भाव मात्र होने से राष्ट्र का कल्याण संभव नहीं है। हम जब तक देश के प्रति अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का ईमानदारीपूर्वक निर्वाह नहीं करेंगे तब तक न देश का उद्धार होगा न देशवासियों का। 
 
भ्रष्टाचार देश की प्रगति पर प्रेत की तरह मंडरा रहा है। राजनीति के साथ ही शासन-प्रशासन के प्रत्येक क्षेत्र में भ्रष्टाचार गहराई तक अपनी जड़ें जमा चुका है। ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की यह रिपोर्ट किसी से छिपी नहीं है कि भारत का भ्रष्ट तंत्र देश के आम आदमी से प्रतिवर्ष इक्कीस हजार करोड़ रुपए चूस लेता है। बाबू से लेकर आई.ए.एस., आई.पी.एस. तक सभी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। 
 
ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में 143 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार से उत्साहित देश के नीति निर्धारक विकास के लाख दावे करें लेकिन सचाई किसी से छिपी नहीं है। तस्वीर के दूसरे पहलू पर आज भी बदसूरती का अभिशाप है। देश में भले ही पंच सितारा होटलें बड़ी संख्या में खुल रही हैं, परंतु भूख से मरने वालों की संख्या भी कम नहीं है। 
 
आज भी देश की एक तिहाई से अधिक आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रही है। इस जीवन का मतलब होता है दो वक्त की सूखी रोटी भी नसीब नहीं होना। शिक्षा के क्षेत्र में हमारी प्रगति की गति कछुए से भी कम है। शिक्षा के क्षेत्र में आई.आई.एम. जैसी संस्थाओं की स्थापना को ही विकास मानना देश के शासन तंत्र की भयंकर भूल है। देश के पंद्रह हजार कॉलेजों में सत्तर लाख विद्यार्थी पढ़ रहे हैं जो देश के युवाओं का मात्र सात प्रतिशत हैं। आज देश के एक करोड़ बच्चे प्राथमिक शालाओं के दरवाजे तक नहीं पहुंच पाते और सत्रह करोड़ पांचवीं कक्षा तक आते-आते स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर हो जाते हैं। पूरी दुनिया के तैंतीस प्रतिशत निरक्षर भारत में हैं। 
 
भारत के ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली सत्तर प्रतिशत आबादी की हालत बेहद खराब है। देश में अस्सी प्रतिशत बीमारियां  अशुद्ध पानी की वजह से होती हैं। देश की लगभग पचास प्रतिशत आबादी को स्वच्छ शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं है। 
 
गणतंत्र की आधी शती के बाद आज भी देश का महिला जगत शोषण का शिकार है। हमने पश्चिमी संस्कृति की विकृतियों को तो बड़ी शान से आत्मसात किया परंतु विशेषताओं को अंगीकार नहीं किया। जिस देश में पिछले दो दशकों के दौरान एक करोड़ कन्या भ्रूणों को कोख में ही कत्ल कर दिया गया हो, उस देश में नारी सुरक्षा और स्वतंत्रता के सरकारी दावे क्या कोरी बकवास नहीं है? 
 
भारत के गणतंत्र पर आंसू बहाने का यह सिलसिला थम नहीं सकता क्योंकि हर जगह विसंगति और विपदाओं का हिमालय खड़ा है। इसी कारण राष्ट्र का चिंतन अक्सर चिंता में बदल जाता है। 143 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार पर गर्व करें या देश के 40 करोड़ बेरोजगारों की स्थिति पर शर्म महसूस करें। देश में विकास हुआ है लेकिन यह विकास उन्हीं का हुआ है जो पहले से विकसित हैं। पिछले दशकों से शासक वर्ग देश की जनता को झूठे सपने दिखाता रहा है। आज भी देश की जनता बेसब्री से विकास की गंगा की प्रतीक्षा कर रही है। भारत के गण और तंत्र की इस स्थिति पर 'नीरज' की ये चार पंक्तियां क्या सटीक बैठती हैं-
 
'नींद आती है तो तकदीर भी सो जाती है, 
कोई अब सो ना सके गीत वो गाते रहिए। 
भूखा सोने को भी तैयार है ये देश मेरा, 
आप परियों के उसे ख्वाब दिखाते रहिए।'
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

अखिलेश ने पेश किया चुनावी घोषणा-पत्र, जानिए क्या है इसमें खास...