- डॉ. पूर्णिमा श्रीवास्तव
प्रेम दिवस पर कविता : मेरी फरवरी
फरवरी अगर प्यार वाला महीना है,
तो तुम मेरी फरवरी हो,
और मेरे पूरे साल में है सिर्फ,
मेरे हिस्से बस एक यही माह।
और हैं इस माह में अनगिनत वर्ष,
मेरे तुमसे यूं ही मिलने और फिर,
यूं तुम्हें अपना रोज बना लेने के,
इतना कि अब भी मेरा दिन होता,
तुम्हारी प्यार में खिली आंखों सी सुबह से,
और रात है तुम्हारी नरम पलकों की बोझिल होने से,
और फिर मेरी इन्हीं कुछ लम्हों की पूरी जिंदगी है।
जिंदगी जिसमें बस एक ही माह है।
ये महीना है मेरे प्यार का,
ये मेरा फरवरी है और अगर है ये प्यार का महीना,
तो मेरा पूरा साल फरवरी है,
और तुम हो उस माह के हर दिन,
और तुम्हें चाहना है उस दिन में बीतता पल,
और मैं हूं बस तुम्हारी तारीखें,
जो बदलती है बस तुम्हारे ही साथ,
सच तो यह कि मैं कभी नहीं बदलती,
चाहे बदलें, साल, महीने, दिन।
बस मैं बन जाती हूं तुम्हारा ही एक पन्ना,
पर इन्हीं बीतते, पुराने होते
और भी अजीज होते तुममें,
मैं बीत चुकी हूं सारा, अपना पूर्ण।
इतना पूरा मैंने जिया है बस इस फरवरी में।
कुछ ऐसा है इसके बीतने में कि मैं,
खिल जाती हूं हर अगले दिन पहले से ज्यादा,
और ज्यादा सुर्खी मांग लेती हूं तुमसे,
क्योंकि तुम मेरी चाहत का महीना हो,
मेरी खूबसूरती, खुमारी का माह हो
इसमें तुम घटते हो रोज मुझमें बाकी महीनों से और ज्यादा।