डॉ. रूपेश जैन 'राहत'
काश प्यार न किया होता बेपनाह
दिल लगा के लगता है कर दिया कोई गुनाह
दिन अब जलते हैं और रातें सुलगती हैं
किनारों से लड़ती लहरों में मुझे मेरी तड़प झलकती है।
अब लगता है क्यों लेके गया मैं तुम्हे
उन सारी जगहों पर जो मुझे प्यारी हैं
तुम्हारे जाने के बाद उन सारी जगहों पर
जाने से अब डर लगता है।
पिछली शाम को ही उस गली से गुजरा था
जहाँ हमने आख़िरी बार पानीपुरी खाई थी
और तुम्हे वहां महसूस करके
मेरी कसक और बढ़ गयी।
तन्हाई कोई नयी बात नहीं
तनहा रहा हूँ बचपन से कई बार, लेकिन
तेरा मेरी जिंदगी में आना और आके यूँ बेमतलब चला जाना
तन्हाई की ख़लिश बढ़ा गया है।
दिल के जख्मों का दर्द
मालूम है मुझे कितना तड़पाता है
इसीलिए, जब भी तू याद आती है,
इस दिल से दुआ ही निकलती है।