-प्रद्युम्ना डोनगांवकर
अचानक उनका दीदार हुआ,
हमारा ख्वाब जमीं पे उतर आया।
मुलाकात का सरूर आंखों में उतर आया,
हमें अहसास हुआ कि हमें वो पसंद करने लगा।
हमारी इबादत पे सारा जहां रश्क़ करने लगा,
आसमान का रंग फीका पड़ गया।
समय बीतता चला गया,
कुछ खुमार धुंधला हो गया।
जिस शिद्दत से हमने मोहब्बत की,
वो चाहत तो उनमें न थी।
प्यार करने की फुरसत न थी गोया,
सारा वक़्त सियासत में निकाल दिया।
हम उनके जिन्न बन गए,
अरमान मिटने का खिलौना बन गए।
इतना वक़्त गुजर गया कि पता ही नहीं चला,
कब हम इंसान से कठपुतली बन गए।
अब बादलों की बरसात है मेरी आंखों से,
बिन तेरे जिंदगी जिए तो कैसे।
बस इतना याद रखो कि,
हम ही हैं जो जिंदगी का बोझ उठाए जाते हैं।