Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

प्रेम गीत : प्रेम की अंतिम व्याख्या...

हमें फॉलो करें प्रेम गीत : प्रेम की अंतिम व्याख्या...
webdunia

सुशील कुमार शर्मा

मीरा का प्रेम, प्रेम की अंतिम व्याख्या है
कृष्ण से शुरू, कृष्ण पर समाप्त
मीरा के प्रेम में मीरा कहीं नहीं हैं
सिर्फ कृष्ण ही कृष्ण दृष्टव्य हैं।
 
मीरा के पास प्रेम में देने के अलावा 
कृष्ण से लेना शेष नहीं है
मीरा का प्रेम अर्पण, समर्पण 
और तर्पण का संयुक्त संधान है।
 
मीरा को कृष्ण से कुछ नहीं चाहिए
न प्रेम, न स्नेह, न सुरक्षा
न वैभव, न धन, न अपेक्षा
न उपकार न प्रतिकार।
 
मीरा के प्रेम की न परिधि है
न कोई अवधि है
न राजनीति, न अभिलाषा
न अतिक्रमण, न परिभाषा। 
 
मीरा प्यार में न अशिष्ट होती हैं न विशिष्ट
राधा के प्यार में विशिष्टता 
है कृष्ण के साथ की।
 
सीता के प्रेम में त्याग के 
साथ राम का सान्निध्य है
सावित्री के प्रेम में सत्यवान 
का अस्तित्व है
रुक्मणी के प्रेम में कृष्ण का व्यक्तित्व है।
 
विश्व के सभी महान प्रेम
किसी न किसी धुरी पर अवलंबित हैं
मीरा का प्रेम विशुद्ध क्षेतिज है।
किसी पर भी आश्रित नहीं
कृष्ण पर भी नहीं
शुद्ध आध्यात्मिक अनुभूति
इसलिए तो कृष्ण मीरा के हमेशा ऋणी हैं।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

हिन्दी कविता : तुम ऐसी तो न थीं...