जब हम और तुम मिले थे
नहीं था अपेक्षाओं का रिश्ता
नहीं था मैं बड़ा
तुम छोटे का भाव
फिर अपेक्षाओं का
विनिमय शुरू हुआ
मेरे प्रति तुम्हारा उधार
तुम्हारे सिर पर मेरा उधार
हम गिनते गए अहसान
और भारी होता गया उधार
शिकवों की रेत इकठ्ठा होती गई
रिश्तों का पानी सूखता गया
इस किनारे तुम
उस किनारे हम
बैठें हैं अपने उधार के साथ
तलाशते एक सोता रिश्ते का।
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