यह यूक्रेन की पराजय नहीं हुई, यह उसकी विफलता है। युद्ध के इतिहास की एक बहुत बड़ी विफलता। A great failure in the history of war. यूक्रेन की इस विफलता का जिम्मेदार रूस नहीं, खुद यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की हैं।
जेलेंस्की जिम्मेदार हैं अपने देश को आग में झोकने के लिए, प्रजा को तबाही और त्रासदी के ये स्मृति चिन्ह भेंट करने के लिए। अपने ही हाथों अपने देश को विफलता का यह इतिहास उपहार में देने के लिए।
उन्होंने महज इसलिए अपने देश को मौत के मंजर के सबसे भयावह प्रतीक में तब्दील कर दिया, क्योंकि वे यूक्रेन को दुनिया के उन 30 देशों के एक ऐसे समूह (NATO) में शामिल करने के लिए जिद पर अड़े रहे जो महज एक 'गुंडई गैंग' से ज्यादा कुछ भी नहीं है।
दुखद बात यह है कि वक्त पड़ने पर गुंडों की यह गैंग भी काम न आई और न ही इसका सरगना अमेरिका ही साथ मिला।
वैश्विक स्तर पर होने वाली डिप्लोमेसी के इस जाल को जेलेंस्की ने अपनी स्टैंड-अप कॉमेडी का मंच समझ लिया। उनकी इस परफॉर्मेंस के परिणाम इतने गंभीर और भयावह हो गए कि दुनिया समझ नहीं पा रही है कि इस पर हंसें या मातम मनाएं।
इस पूरी त्रासदी के बीच जेलेंस्की के पास यह समझने का विवेक भी नहीं बचा कि अब वे क्या करें। इसलिए उन्होंने अपनी इस मूर्खता से पटी नामसझी को राष्ट्रवाद के मुखौटे में तब्दील कर वे इस पूरे दृश्य को और ज्यादा हास्यास्पद बनाने से नहीं चूक रहे हैं।
वे इतने नशेमन हैं कि उन्होंने अपने नागरिकों को फरमान जारी कर दिया कि वे भी हथियार उठाकर रूसी सेना से लड़ें, उस रूसी सेना से जो यूक्रेन के आसमान में 'गिद्धों' की तरह पसरी हुई है। और अपने उन नागरिकों से जो पिछले 48 घंटों से अपने बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों की जान बचाने के लिए लहूलुहान हैं।
वे किसी भी स्तर पर यूक्रेन के राष्ट्रपति नहीं हो सकते, क्योंकि वे न तो रूस की ताकत का अंदाजा लगा पाए, न अपनी प्रजा का ख्याल कर पाए।
इतिहास में अपना नाम एक विफल लीडर के तौर पर दर्ज हो जाने से डरे हुए वे एक ऐसे मामूली नेता निकले जो खुद को साबित करने के लिए कीव की एक इमारत के साथ सेल्फी लेते हैं और कहते हैं कि मैं भागा नहीं हूं— मैं यूक्रेन में ही हूं।
अपने देश को बर्बाद करने से ज्यादा बेहतर होता वे रूस को धोखा देते, कोई चाल चलते। वो सब करते जो युद्ध में जायज होता है, उसके बाद हारते, लेकिन वे हारने से पहले विफल हो गए।
दरअसल, उनकी हार तभी हो चुकी थी, जब रूस ने यूक्रेन की तरफ अपनी बंदूक की नाल तानकर पहली गोली चलाई थी। इसके बाद तो पिछले तीन दिनों से वोलोदिमीर जेलेंस्की अपने देश के लोगों की लाशें और अपने राष्ट्र का मलबा उठा रहे हैं।
मेहमूद दरवेश की पंक्तियां याद आ रही हैं-
एक दिन युद्ध खत्म हो जाएगा, नेता आपस में हाथ मिला लेंगे। लेकिन तमाम बुजुर्ग मांएं अपने शहीद बेटे का इंतजार करती रहेंगी। पत्नियां अपने शहीद पतियों की प्रतीक्षा करती रहेंगी - बच्चे अपने बहादुर पिताओं की राह ताकते रहेंगे।
मुझे नहीं पता वो कौन था, जिसने मेरे देश का सौदा कर दिया, लेकिन मैं यह साफ-साफ देख सकता हूं कि कौन इसकी कीमत चुका रहा है।