हर धर्म में पेड़, पौधे और वृक्षों का बहुत महत्व है, परंतु इसको कोई महत्व नहीं देता है। जिस देजी से वृक्ष कटते जा रहे हैं उससे धरती का पर्यावरण ही नहीं बदल रहा है बल्कि जीवन में संकट में हो चला है। धरती पर ऑक्सीजन का निर्माण करने में वृक्षों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वृक्ष नहीं होंगे तो एक दिन वायु भी नहीं होगी और वायु नहीं होगी तो फिर मानव भी नहीं होगा। आओ जानते हैं वृक्ष के 20 रहस्य।
1. शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, दस इमली, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आंवला और पांच आम के वृक्ष लगाता है, वह पुण्यात्मा होता है और कभी नरक के दर्शन नहीं करता। इसी तरह धर्म शास्त्रों में सभी तरह से वृक्ष सहित प्रकृति के सभी तत्वों के महत्व की विवेचना की गई है।
2. भारतीय धर्म मानता हैं कि प्रकृति ही ईश्वर की पहली प्रतिनिधि है। प्रकृति के सारे तत्व ईश्वर के होने की सूचना देते हैं। इसीलिए प्रकृति को देवता, भगवान और पितृ माना गया है। यहां प्रत्येक देवी और देवता से एक वृक्ष, एक पशु या एक पक्षी जुड़ा हुआ है। यहां तक की ग्रह और नक्षत्र भी जुड़े हुए हैं। धर्म मानता है कि दूरस्थ स्थिति ध्रुव तारा भी हमारे जीवन को संचालित कर रहा है। फिर हिमालय के ग्लेशियर और चंद्रमा के तो कहने ही क्या। संपूर्ण ब्रह्मांड एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। एक कड़ी टूटी तो सबकुछ बिखर जाएगा। यह ब्रह्मांड उल्टे वृक्ष की भांति है।
3. धर्मानुसार पांच तरह के यज्ञ होते हैं जिनमें से दो यज्ञ- देवयज्ञ और वैश्वदेवयज्ञ प्रकृति को समर्पित है। दोनों ही तरह के यज्ञों का वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व है। देवयज्ञ से जलवायु और पर्यावरण में सुधार होता है तो वैश्वदेवयज्ञ प्रकृति और प्राणियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का तरीका है। सभी प्राणियों तथा वृक्षों के प्रति करुणा और कर्त्तव्य समझना उन्हें अन्न-जल देना ही भूतयज्ञ या वैश्वदेव यज्ञ कहलाता है।
4. हिन्दू धर्मानुसार वृक्ष में भी आत्मा होती है। वृक्ष संवेदनशील होते हैं और उनके शक्तिशाली भावों के माध्यम से आपका जीवन बदल सकता है। प्रत्येक वृक्ष का गहराई से विश्लेषण करके हमारे ऋषियों ने यह जाना की पीपल और वट वृक्ष सभी वृक्षों में कुछ खास और अलग है। इनके धरती पर होने से ही धरती के पर्यावरण की रक्षा होती है। यही सब जानकर ही उन्होंने उक्त वृक्षों के संवरक्षण और इससे मनुष्य के द्वारा लाभ प्राप्ति के हेतु कुछ विधान बनाए गए उन्ही में से दो है पूजा और परिक्रमा।
5. स्कन्द पुराण में वर्णित पीपल के वृक्ष में सभी देवताओं का वास है। पीपल की छाया में ऑक्सीजन से भरपूर आरोग्यवर्धक वातावरण निर्मित होता है। इस वातावरण से वात, पित्त और कफ का शमन-नियमन होता है तथा तीनों स्थितियों का संतुलन भी बना रहता है। इससे मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। पीपल की पूजा का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। इससे मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।
6. अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है। औषधीय गुणों के कारण पीपल के वृक्ष को 'कल्पवृक्ष' की संज्ञा दी गई है। पीपल के वृक्ष में जड़ से लेकर पत्तियों तक तैंतीस कोटि देवताओं का वास होता है और इसलिए पीपल का वृक्ष प्रात: पूजनीय माना गया है। उक्त वृक्ष में जल अर्पण करने से रोग और शोक मिट जाते हैं। पीपल की पूजा का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। इसके कई पुरातात्विक प्रमाण भी है। गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं, 'हे पार्थ वृक्षों में मैं पीपल हूं।' अश्वत्थोपनयन व्रत के संदर्भ में महर्षि शौनक कहते हैं कि मंगल मुहूर्त में पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढ़ाने पर दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। पीपल के दर्शन-पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। अश्वत्थ व्रत अनुष्ठान से कन्या अखण्ड सौभाग्य पाती है।
सड़क के किनारे पीपल का वृक्ष लगाने, तथा उसका पालन करने वाला देवलोक प्राप्त करता है। पीपल के वृक्षों का रोपण करने वाला इस लोक में तो कीर्ति प्राप्त करता है, मृत्युपरांत भी मोक्ष को प्राप्त होता है। इसमें संदेह नहीं है।
7. बरगद को वटवृक्ष कहा जाता है। हिंदू धर्म में वट सावत्री नामक एक त्योहार पूरी तरह से वट को ही समर्पित है। हिंदू धर्मानुसार चार वटवृक्षों का महत्व अधिक है। अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट के बारे में कहा जाता है कि इनकी प्राचीनता के बारे में कोई नहीं जानता। संसार में उक्त चार वटों को पवित्र वट की श्रेणी में रखा गया है। प्रयाग में अक्षयवट, नासिक में पंचवट, वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट और उज्जैन में पवित्र सिद्धवट है।
8. आम है खास : हिंदू धर्म में जब भी कोई माँगलिक कार्य होते हैं तो घर या पूजा स्थल के द्वार व दीवारों पर आम के पत्तों की लड़ लगाकर मांगलिक उत्सव के माहौल को धार्मिक और वातावरण को शुद्ध किया जाता है। अक्सर धार्मिक पांडाल और मंडपों में सजावट के लिए आम के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है। 5 या अधिक आम के वृक्षों का रोपण पालन करने वाला अनेक दुर्लभ यज्ञों के फल को प्राप्त कर सकता है।
9. भविष्यवक्ता शमी : विक्रमादित्य के समय में सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर ने अपने 'बृहतसंहिता'नामक ग्रंथ के 'कुसुमलता'नाम के अध्याय में वनस्पति शास्त्र और कृषि उपज के संदर्भ में जो जानकारी प्रदान की है उसमें शमीवृक्ष अर्थात खिजड़े का उल्लेख मिलता है। वराहमिहिर के अनुसार जिस साल शमीवृक्ष ज्यादा फूलता-फलता है उस साल सूखे की स्थिति का निर्माण होता है। विजयादशमी के दिन इसकी पूजा करने का एक तात्पर्य यह भी है कि यह वृक्ष आने वाली कृषि विपत्ती का पहले से संकेत दे देता है जिससे किसान पहले से भी ज्यादा पुरुषार्थ करके आनेवाली विपत्ती से निजात पा सकता है।
10. जो मनुष्य अपने घर में फलदार पेड़, पौधे आदि लगाता है और उसकी भली भांति देखभाल करता है, उसे आरोग्य की प्राप्ति होती है।
11. जो मनुष्य 5 वट वृक्षों का रोपण और उसका पालन किसी चौराहे या मार्ग में करता है तो, उसकी सात पीढ़ियां तर जाती है। जो मनुष्य नीम के वृक्ष जितने अधिक लगाता है उतनी अधिक उसकी पीढ़ियां तर जाती है.
12. वृक्षों के बाग या वाटिका लगाने वाला प्रसिद्धि प्राप्त करता है।
13. जो भी व्यक्ति बिल्व वृक्ष का रोपण शिव मंदिर में करता है वह अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाता है।
14. घर में तुलसी, आंवला, निर्गुण्डी, अशोक, आदि के वृक्ष शुभ फलदायी होते हैं। शीशम के 11 वृक्ष को सड़क पर लगाने से यह लोक और परलोक दोनों ही संवर जाते हैं।
15. कनक चम्पा के 2 वृक्ष लगाने वाले का सर्वार्थ कल्याण हो जाता है।
16. 5 या अधिक महुआ के वृक्षों का रोपण और पालन करने वाला धन प्राप्त करता है। तथा उसे अनुरूप यज्ञों का फल भी प्राप्त होने लगता है।
16. जो भी मनुष्य सड़क के किनारे 2 या 2 से अधिक मौलश्री के वृक्षों का रोपण एवं पालन करता है। वह एक सौ यज्ञों को करने का पुण्य प्राप्त करता है।
17. जो भी मनुष्य 5 या अधिक अशोक वृक्ष का रोपण और पालन करता है, उसके घर परिवार में कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होती है। उसके यहां अचानक कोई बड़ी मुसीबत खड़ी नहीं होती तथा उसे आगामी जन्म में पुण्यात्मा होने का सौभाग्य प्राप्त होता है।
18. जो मनुष्य 5 पलास के वृक्षों का रोपण और पालन करते हैं। उसे 10 गौवों के दान के समतुल्य पुण्य लाभ मिलता है। पलास के वृक्षों को सड़क के किनारे अथवा किसी बड़े क्षेत्र में रोपना चाहिए। इसका रोपण घर में नहीं करना चाहिए।
19. जो भी मनुष्य 2 या अधिक हारसिंगार (पारिजात) के पौधों का रोपण श्री हनुमानजी के मंदिर में अथवा नदी के किनारे या किसी भी सामाजिक स्थल पर करता है तो उसे एक लक्ष्य तोला स्वर्णदान के समतुल्य पुण्य प्राप्त होता है तथा उसे जीवन भर श्री हनुमानजी की कृपा मिलती रहती है।
20. जो भी व्यक्ति सोमवार के दिन, प्रदोष वाले दिन, शिवरात्री को, श्रावणमास में किसी भी दिन अथवा शिवयोग वाले दिन 5 या अधिक बिल्व वृक्षों का रोपण और उसका नियमित पालन भी करता है तो उसे शिवलोक प्राप्त होता है। यदि इन वृक्षों को कोई भी मनुष्य शिव मंदिर में या मंदिर के समीप रोपण करता है तो निश्चय ही वह कोटि कोटि पुण्य का भागीदार तो होता ही है और उसे व् उसके परिवार पर भगवान शिव की असीम अनुकम्पा भी प्राप्त होती है।