आइसोलेशन को भारत में एकांतवास कहते हैं। प्राचीन भारत में इसका बहुत महत्व रहा है। आज भी हमारे साधु संत एकांतवास में रहकर ही ध्यान और साधना करते हैं। एक गृहस्थ संन्यासी को भी एकांत की आवश्यकता होती है। एकान्तवास यदि स्वैच्छिक हो तो मनुष्य के लिए सुखदायी होता है, इसके विपरीत यदि मजबूरी में अपनाया गया हो तो वह कष्टदायक होता है। वर्तमान कोरोनाकाल के चलते यदि आप स्वत: ही खुद को आइसोलेट करके रखते हैं तो यह कष्टदायी नहीं होगा। आओ जानते हैं कि इस संबंध में क्या कहते हैं पुराण और क्यों जरूरी है यह हमारे जीवन के लिए।
संसारी का एकांत :
1. सूतक : प्राचीनकाल में सूतक, पातक आदि के दौरान व्यक्ति को एकांत में रहना होता था। जन्म काल, ग्रहण काल, स्त्री के मासिक धर्म का काल, महामारी और मरण काल में सूतक और पातक का विचार किया जाता है। सभी के काल में सूतक के दिन और समय का निर्धारण अलग-अलग होता है। इस दौरान कोई भी संबंधित व्यक्ति के पास नहीं जाता है और उसको दूर से ही भोजन पानी देते हैं और उसके कपड़े एवं बर्तन भी अलग ही रहते हैं।
2. कल्पवास : भारत में कुंभ आदि के दौरान नदी किनारे गृहस्थों के लिए कल्पवास का विधान रखा गया है। इस दौरान गृहस्थ कल्पवास का संकल्प लेकर ऋषियों की या खुद की बनाई पर्ण कुटी में अकेला ही रहता है। दिन में एक ही बार भोजन किया जाता है तथा मानसिक रूप से धैर्य, अहिंसा और भक्तिभावपूर्ण रहा जाता है। यह सांसारिक तापों से मुक्ति, बेहतर स्वास्थ, मनोकामनापूर्ति और आध्यात्मिक उन्नती के लिए होता है। ऋषि और मुनियों के सानिध्य में इस दौरान गृहस्थों को अल्पकाल के लिए शिक्षा और दीक्षा दी जाती थी।
3. तीर्थाटन : कई लोग एकांत के लिए अकेले ही तीर्थ यात्रा पर निकल जाते थे और लगभग 2 या 3 माह में आते थे। ऐसे में वे रोजमर्रा के वाद-विवाद, झगड़े, संघर्ष, तनाव, रोग, बीमारी और चिंता से मुक्त होकर जीवन का आनंद लेते थे। आप घर में भी अकेले हो सकते हैं और घर से बाहर पहाड़, नदी या जंगल में जाकर भी।
4. एकांत में ही जन्मा है सृजन : ऐसे कई साहित्यकार, दार्शनिक, वैज्ञानिक और महान राजनेता हुए हैं जिन्होंने अपने जीवन के कई माह एकांत में ही बिताकर दुनिया को महान रचनाएं, सूत्र, सिद्धांत या अविष्कार दिए। किसने प्रसिद्ध रचना लिखी, सिद्धांत गढ़ा, अविष्कार का आइडिया दिमाग में आया या महान राजनीतिक सिद्धांत का सूत्रपात हुआ।
5. क्वारेंटिंन : जिस व्यक्ति या परिवार के घर में सूतक-पातक रहता है, उस व्यक्ति और परिवार के सभी सदस्यों को कोई छूता भी नहीं है। वहां का अन्न-जल भी ग्रहण नहीं करता है। वह परिवार भी मंदिर सहित किसी के घर नहीं जाता है और सूतक-पातक के नियमों का पालन करते हुए उतने दिनों तक अपने घर में ही रहता है। परिवार के सदस्यों को सार्वजनिक स्थलों से दूर रहने को बोला जाता है।
संन्यासी का एकांत :
योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थितः ।
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः ॥-6-10।। गीता
भावार्थ : मन और इन्द्रियों सहित शरीर को वश में रखने वाला, आशारहित और संग्रहरहित योगी अकेला ही एकांत स्थान में स्थित होकर आत्मा को निरंतर परमात्मा में लगाए॥10॥
1. वनवास : प्राचीन भारतीय काल में ऐसा प्रचलन था जब व्यक्ति अपनी सभी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाता था तो वह अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए वनवास चला जाता था। चार आश्रमों में से एक वानप्रस्थ आश्रम के बाद ही संन्यास आश्रम ग्रहण किया जाता था।
2. परिव्राजक : परिव्राजक एक ऐसा संन्यासी होता है जो प्रभुख जगह पर घूमते रहे हैं और अलग डेरा जमाकर रहते हैं। अक्सर साधु संन्यासी अकेले ही परिव्राजक बनकर घुमते रहते हैं।
3. कल्पवास : भारत में कुंभ आदि के दौरान नदी किनारे संन्यासी भी कल्पवासी बनकर रहता है।
भीड़ में रहकर नहीं, एकांत में ही व्यक्ति खुद से मुलाकात कर सकता है और सभी रोगों से मुक्त होने की शुरुआत भी कर सकता है। एकांत से हम अपने भागदौड़ भरे जीवन को कुछ समय के लिए ब्रेक देकर अपने जीवन की समीक्षा कर सकते हैं। एकांत में रहकर ही व्यक्ति खुद का आंकलन कर सकता है। एकांत में रहकर ही पांचों इंद्रियों की तृष्णा को समझकर मोक्ष की ओर कदम बढ़ाया जा सकता है। पहले एकांत से स्वयं को साधो, सक्षम बनो, फिर संसार में उतरो। एकांत व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से सक्षम बनाता है।