क्षीरसागर में देवता और दैत्यों के मिलकर मदरांचल पर्तत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी बनाकर समुद्र मंथन किया था। इस मंथन से 14 तरह के रत्न प्राप्त हुए थे। सबसे पहले कालकूट नामक विष निकला था जिसे शिवजी ने अपने कंठ में धारण कर लिया था जबकि अंत में अमृत निकला था जिसके चलते देव और दैत्यों में झगड़ा हुआ था। आओ जानते हैं कि कालकूट विष क्या था।
1. मंथन के दौरान निकले विष कालकूट को हलाहल भी कहा जाता है।
2. इसे न तो देवता ग्रहण करना चाहते थे और न ही असुर।
3. यह विष इतना खतरनाक था, जो संपूर्ण ब्रह्मांड का विनाश कर सकता था।
4. इस विष को ग्रहण करने के लिए स्वयं भगवान शिव आए।
5. शिव जी ने विष का प्याला पी लिया लेकिन तभी माता पार्वती, जो उनके साथ खड़ी थीं उन्होंने उनके गले को पकड़ लिया।
6. ऐसे में न तो विष उनके गले से बाहर निकला और न ही शरीर के अंदर गया। वह उनके गले में ही अटक गया जिसकी वजह से उनका गला नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाए।
7. इसे काला बच्छनाग भी कहते हैं।