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इन 10 तरह से होता है हिन्दू धर्म का अपमान, करेंगे तो पछताएंगे

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अनिरुद्ध जोशी

, मंगलवार, 2 अप्रैल 2019 (14:21 IST)
वर्तमान में आधुनिकता और पश्‍चिमी संस्कृति के प्रचलन के चलते हिन्दू धर्म के संबंध में लोगों में जानकारी का अभाव बढ़ता जा रहा है। दरअसल, हिन्दू धर्म से ही भारतीयता कायम है। इसके कई कारण हैं। आओ जानते हैं कि वर्तमान में जो लोग जाने या अनजाने हिन्दू धर्म की उपेक्षा या अपमान कर रहे हैं उन्हें अपने जीवन में और जीवन के बाद क्या परेशानियां उठाना पड़ेगी साथ ही वे कौन से 10 अपमान हैं।
 
 
1.देवताओं को छोड़कर अन्य का मंदिर बनाना-
सचमुच ही यह हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा अपमान है कि किसी देवी या देवताओं को छोड़कर अन्य का मंदिर बनाकर उसकी पूजा करना। वर्तमान में देखा गया है कि लोगों ने सोनिया गांधी, सचीन तेंदुलकर, नरेंद्र मोदी, रजनीकांत, जयललिता, अमिताभ बच्चन आदि प्रसिद्ध लोगों के मंदिर बना रखे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि हिंदू धर्म के इस तरह किए जा रहे अपमान के बारे में हिंदू विरोध क्यों नहीं करता? कई लोगों ने किसी बाबा, संत, भूत, फकीर, नेता, ग्रह-नक्षत्र, अभिनेता आदि के भी मंदिर बना लिए हैं जो कि घोर पाप कर्म है।
 
 
2.मंदिर के नियमों का पालन नहीं करना-
गुरुवार हिन्दुओं का सबसे बड़ा वार होता है। इस दिन मंदिर जाना जरूरी है। दूसरी बात यह कि घर में मंदिर बनाकर नहीं रखना चाहिए। तीसरी बात यह कि मंदिर जाएं तो मंदिर के नियम भी जरूर जान लें। मंदिर में किस तरह के कपड़े पहने, आचमनादि कर पूजा, प्रार्थना या संध्यावदन कैसे करें यह बहुत कम हिन्दू जानते हैं। मंदिर जाने का समय भी जानना जरूरी है। दोपहर और रात 12 से 4 मंदिर बंद रहते हैं। यदि व्यक्ति उक्त नियमों का पालन नहीं करता है तो उसे मंदिर का दोष लगता है। नियम और मंदिर अपराध क्या है यह जरूर जान लें।
 
 
3.असंख्य परंपरा, व्रत, त्योहार और रीति-रिवाज धर्म का हिस्सा नहीं-
हिन्दुओं ने अपने त्योहारों को बदल कर गंदा कर दिया है। इसके अलावा कौन-सा त्योहार, व्रत या रिवाज हिन्दू धर्म का हिस्सा है और कौन-सा स्थानीय संस्कृति का यह जानना भी जरूरी हैं। ऐसी कई परंपराएं है जो कि हिन्दू त्योहारों में कुछ 100-200 सौ वर्षों में प्रचलन में आ गई है जो कि उक्त त्योहार का अपमान ही माना जाएगा। रिवाज की उत्पत्ति स्थानीय लोक कथाओं, संस्कृति, अंधविश्वास, रहन-सहन, खान-पान आदि के आधार पर होती है। बहुत से रिवाज ऐसे हैं जो हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार सही नहीं है, जैसे सती प्रथा, दहेज प्रथा, मूर्ति स्थापना और विसर्जन, माता की चौकी, अनावश्यक व्रत-उपवास और कथाएं, पशु बलि, जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, छुआछूत, ग्रह-नक्षत्र पूजा, मृतकों की पूजा, अधार्मिक तीर्थ-मंदिर, 16 संस्कारों को छोड़कर अन्य संस्कार आदि। यह लंबे काल और वंश परंपरा का परिणाम ही है कि वेदों को छोड़कर हिन्दू अब स्थानीय स्तर के त्योहार और विश्वासों को ज्यादा मानने लगा है। सभी में वह अपने मन से नियमों को चलाता है।
 
 
4.‍सोलह संस्कारों का पालन नहीं करना-
सनातन अथवा हिन्दू धर्म की संस्कृति संस्कारों पर ही आधारित है। हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन को पवित्र एवं मर्यादित बनाने के लिए कई संस्कारों का अविष्कार किया। धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इन संस्कारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। भारतीय संस्कृति की महानता में इन संस्कारों का महती योगदान है। प्राचीन काल में हमारा प्रत्येक कार्य संस्कार से आरम्भ होता था। उस समय संस्कारों की संख्या भी लगभग चालीस थी। जैसे-जैसे समय बदलता गया तथा व्यस्तता बढ़ती गई तो कुछ संस्कार स्वत: विलुप्त हो गये। इस प्रकार समयानुसार संशोधित होकर संस्कारों की संख्या निर्धारित होती गई। गौतम स्मृति में चालीस प्रकार के संस्कारों का उल्लेख है। महर्षि अंगिरा ने इनका अंतर्भाव पच्चीस संस्कारों में किया। व्यास स्मृति में सोलह संस्कारों का वर्णन हुआ है। हमारे धर्मशास्त्रों में भी मुख्य रूप से सोलह संस्कारों की व्याख्या की गई है।
 
 
कुछ लोगों ने तो संस्कार छोड़ ही दिए हैं। वर्तमान में देखा गया है कि लोग सोलह संस्कारों का पालन अपने-अपने तरीके से करते हैं। उसमें आधुनिकता का समावेश भी कर दिया गया है। इसके अलावा प्री वेडिंग, प्रेगनेंसी फोटो शूट, कोर्ट मैरिज, लीव इन रिलेशन और तलाक। 'तलाक' हिन्दू धर्म का कांसेप्ट नहीं है। यदि आप विवाह के वचनों का पालन नहीं करते हैं तो निश्‍चित ही आप हिन्दू धर्म का अपमान ही कर रहे हैं।
 
 
5.संतों की पूजा करना धर्म का अपमान-
वर्तमान दौर में अधिकतर नकली और ढोंगी संतों और कथा वाचकों की फौज खड़ी हो गई है। और हिंदुजन भी हर किसी को अपना गुरु मानकर उससे दीक्षा लेकर उसका बड़ा-सा फोटो घर में लगाकर उसकी पूजा करता है। उसका नाम या फोटो जड़ित लाकेट गले में पहनता है। यह धर्म का अपमान और पतन ही माना जाएगा। संत चाहे कितना भी बढ़ा हो लेकिन वह भगवान या देवता नहीं, उसकी आरती करना, पैरों को धोना और उस पर फूल चढ़ाना धर्म का अपमान ही है। स्वयंभू संतों की संख्‍या तो हजारों हैं उनमें से कुछ सचमुच ही संत हैं बाकी सभी दुकानदारी है। यदि हम हिन्दू संत धारा की बात करें तो इस संत धारा को शंकराचार्य, गुरु गोरखनाथ और रामानंद ने फिर से पुनर्रगठित किया था। जो व्यक्ति उक्त संत धारा के नियमों अनुसार संत बनता है वहीं हिंदू संत कहलाने के काबील है।
 
 
6.छुआछूत और ऊंच-नीच मानना धर्म का अपमान-
अक्सर जातिवाद, छुआछूत और सवर्ण, दलित वर्ग के मुद्दे को लेकर धर्मशास्त्रों को भी दोषी ठहराया जाता है, लेकिन यह बिलकुल ही असत्य है। इस मुद्दे पर धर्म शास्त्रों में क्या लिखा है यह जानना बहुत जरूरी है, क्योंकि इस मुद्दे को लेकर हिन्दू सनातन धर्म को बहुत बदनाम किया गया है और किया जा रहा है। यदि आ छुआछूत या वर्णव्यवस्था को मानते हैं तो आप सनातन पथ से भटके हुए व्यक्ति हैं। वेदों का सार उपनिषद और उपनिषद का सार गीता हैं। उक्त तीन के अलावा हिन्दुओं का कोई धर्मग्रंथ नहीं है। उक्त तीनों को अच्छे से जाने बगैर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना सही नहीं। चूंकि आम और गरीब व्यक्ति धर्मग्रंथ नहीं पढ़ता इसलिए उसके लिए अफवाह, भ्रम या कुतर्क ही सत्य होता है।
 
 
ब्राह्मण, छत्रिय, वैश्य या शूद्र कोई संप्रदाय नहीं है। यह कर्मों पर आधारित वर्ग विभाजन है जिसका वर्तमान में कोई महत्व नहीं रहा, क्योंकि प्रत्येक वर्ग के लोग भिन्न भिन्न प्रकार के कार्य में रत हैं। प्राचीनकाल से ही लोग शैव, वैष्णव या भागवत, शाक्त, गणपत्य, कौमारम, तांत्रिक, वैदिक और स्मार्त आदि संप्रदायों में विभक्त रहे हैं। उक्त संप्रदाय के लोगों की जाति भले ही कुछ भी हो।
 
 
7.धर्मग्रंथ पढ़ें बगैर हिन्दू धर्म पर सवाल उठाना-
ऐसे कई लोग हैं जो कि हिन्दू देवी और देवताओं का मजाक उड़ाते हैं। उनमें से कुछ के नहीं होने या कल्पित होने के संदर्भ में कुतर्क भी करते हैं। ऐसे लोगों का कई लोग समर्थन भी करते हैं। इसके अलावा धर्म और दर्शन के सिद्धांत, थ्‍योरी को जाने बगैर ही उसका खंडन करते हैं। जैसे कुछ लोग कहते हैं कि हिन्दू धर्म के चार युग का सिद्धांत विज्ञान के क्रम विकास के सिद्धांत से उलट है। इसके अलावा हिन्दू धर्म के अनुसार कोई एक ईश्‍वर नहीं होता, 33 करोड़ देवी देवता हैं, कोई नियम नहीं है, कोई संस्थापक नहीं है, वर्ण व्यवस्था है, एकलव्य इसका उदाहरण है- ऐसी कई बाते हैं जो हिन्दू धर्म को जाने बगैर ही प्रचारित की गई। दरअसल, यह भ्रांतियां फैलेने वाले लोग और इनकी भ्रांतियों के शिकार होने वाले लोग दोनों ही ने हिन्दू धर्म के वेद, उपनिषद और गीता को नहीं पढ़ा है। यह हिन्दू धर्म का अपमान ही नहीं बल्कि हिन्दू धर्म के खिलाफ किया गया अपराध है।
 
 
8.अपने कुल को छोड़कर दूसरे के कुल की तारीफ करना-
कौन होता है कुलद्रोही? वह जो कुल धर्म और कुल परंपरा को नहीं मानता, वह जो माता-पिता का सम्मान नहीं करता, वह जो श्राद्धकर्म नहीं करता और वह जो अपने माता-पिता को छोड़कर अलग जिंदगी जी रहा है, वह जिसके मन में कुल देवता और कुल देवी का कोई भान नहीं है। भारत में लंबे काल से एक कुल परंपरा चली आ रही है। उस कुल परंपरा को तोड़कर कुछ लोगों ने अपना धर्म भी बदल लिया है तो कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो कुल देवी या देवता जैसी बातों में विश्वास नहीं रखते हैं। लेकिन वे यह नहीं जानते हैं कि कुल देवी या कुल देवता का मतलब क्या होता है? हमारे पूर्वजों ने एक ऐसी जगह पर कुल देव या देवता की स्थापना की, जहां से हमारे पूर्वज जुड़े रहे हैं अर्थात वह स्थान कुल स्थान होता है। उस स्थान से हजारों वर्षों से हमारे ही कुल खानदान के लाखों लोग जुड़े हुए हैं। यह स्थान आपके पूर्वजों के पूरे इतिहास को बयां करता है। वहां जाकर नमन करने से आपके कुल खानदान के सभी जिंदा और मृत लोग वहीं आपको दिखाई दे सकते हैं। उनके आशीर्वाद से आपका जीवन बदल सकता है। कुल का देवता या देवी आपके कुल के सभी लोगों को जानता है। जो भी वहां जाता है वह अपने कुल से जुड़कर लाभ पाता है।
 
 
9.धर्म की मनमानी व्याख्या करना, स्वयंभू बनना या नए संप्रदाय खड़े करना-
वर्तमान में देखा गया है कि बहुत से ऐसे संत हैं जिन्होंने वेद, पुराण या अन्य शास्त्रों की मनमानी व्याख्या कर लोगों में भ्रम और गफलत का माहौल खड़ा कर दिया है। वे खुद को भगवान या महान संत घोषित करने में चूकते नहीं हैं। ऐसे कई लोगों ने अपने अलग संप्रदाय या संगठन भी खड़े कर लिए हैं। यहां उदाहरण के तौर पर ब्रह्मा कुमारी संगठन और डेरा सच्चा सौदा का नाम लिया जा सकता है। धर्म की गलत व्याख्या कर प्रचलन पिछले तीन सौ वर्षों से जारी है। आजादी के बाद इसका प्रचलन बड़ा है। ऐसे संगठन के लोग उक्त संगठन के संस्‍थापक या मुखिया को भगवान का दर्जा देकर उसकी ही पूजा अर्चना करते हैं। गीता के अनुसार ऐसे लोग ही कुलद्रोही और विधर्मी होते हैं। यह हिन्दू धर्म का अपमान ही नहीं यह घोर अपराध भी है।
 
 
10.धर्मभूमि का अपमान करना और उसकी रक्षा नहीं करना-
जन्मभूमि, मातृभूमि और राष्ट्रभूमि यह सभी धर्मभूमि है। धर्म भी रक्षा और धर्मभूमि की रक्षा करना जरूरी है। भारत की आधी भूमि लगभग विधर्मियों से भरी हुई है। विधर्मी अर्थात जिसने अपना धर्म छोड़कर विदेशी धर्म अपना लिया है। पाकिस्तान सहित कई ऐसे देश हैं जो कभी हिन्दू धर्मियों से आबाद थे।
 
भारत एक प्राचीन भूमि है। यहां का उचित वातावरण मनुष्य को जीने का बेहतर मौका ही नहीं देता, बल्कि वह उसे एक सही सोच से संपन्न भी करता है। लेकिन अपने ही लोगों ने इस धर्मभूमि को विदेशी आक्रांताओं के कारण विधर्म भूमि में बदल दिया है। प्राचीनकाल से ही यूनानी, रोमन और अरबी लोग भारत में ज्ञान, दर्शन, आयुर्वेद और अध्यात्म की तलाश में आते रहे हैं। यहां की समृद्ध भाषा और संस्कृति में रचे-बसे ये लोग अपने देश भी इस ज्ञान का प्रचार-प्रसार करते रहे हैं। लेकिन बाद में जब आक्रांताओं ने इस भूमि का रक्त से लाल कर दिया तब लाखों की संख्‍या में लोगों ने आक्रांताओं का धर्म अपना लिया। यह सोचने की बात है कि आज वे लोग ही अपने लोगों के खिलाफ खड़े हैं। वर्तमान में जो व्यक्ति नक्सल, अलगाव, वाम और अन्य विचारधारा के प्रभाव में आकर हिन्दू धर्म के खिलाफ खड़ा है निश्चित ही वह इस धर्मभूमि और धर्म का अपराधी है।
 
 
वर्तमान में बहुत से ऐसे लोग हैं जो धर्म का सच्चा ज्ञान नहीं रखते और जो प्रचलित मान्यताओं पर ही अपनी धारणाएं बनाते और बिगाड़ते रहते हैं वे विश्वास बदल-बदल कर जीने वाले लोग हैं। वे कभी किसी देवता को पूजते हैं और कभी किसी दूसरे देवता को। उनका स्वार्थ जहां से सिद्ध होता है वे वहां चले जाते हैं। ये नास्तिक भी हो सकते हैं और तथाकथित आस्तिक भी। ये नास्तिकों के साथ नास्तिक और आस्तिकों के साथ आस्तिक हो सकते हैं। हिन्दू के साथ हिन्दू और मुसलमानों के साथ मुसलमानों जैसे हो जाते हैं। इन लोगों का कोई धर्म या देश नहीं होता। ऐसे लोग ही हिन्दू धर्म के अपराधी हैं। 


अब सवाल यह उठता है कि ऐसा करने से क्या होगा? हिन्दू धर्म के अनुसार हर तरह के पापी के लिए सजा तैयार है। उसे उसके कर्मों के द्वारा सजा मिलती है। कुछ को इसी जन्म में, कुछ को मरने के बाद और कुछ को अगले जन्म में बाकी बची सजा मिलती है। गीता में कहा गया है कि व्यक्ति को उसके कर्मों का फल हर हाल में भोगना ही होता है। हिन्दू धर्म कर्मवादी धर्म है। इस धर्म में भाग्य के लिए कोई जगह नहीं। व्यक्ति का भाग्य उसके कर्मों पर ही आधारित होता है।

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