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हिंदू संस्कृति की 10 खासियत, जिसे दुनिया करती है पसंद

हमें फॉलो करें हिंदू संस्कृति की 10 खासियत, जिसे दुनिया करती है पसंद

अनिरुद्ध जोशी

हिन्दू धर्म दुनिया का प्रथम और सबसे प्राचीन धर्म है। इस धर्म का एक मात्र ग्रंथ है वेद। वेदों के सार को ही उपनिषद कहते हैं। इसे ही वेदातं कहा गया है। हिन्दू धर्म में ब्रह्म को ही सत्य माना गया है जो संपूर्ण जगत में व्याप्त होकर भी जगत से अलग है। सभी आत्माएं उस ब्रह्म का अंश ही है। हिन्दू धर्म की सैकड़ों बाते हैं जिसे दुनिया पसंद करती है, लेकिन हम यहां बताएंगे मात्र 10 खासियत।
 
 
1.उत्सवप्रियता-
हिन्दू धर्म में प्रत्येक त्योहार या पर्व सेहत, उत्सव, रिश्तों और प्रकृति से जुड़े हैं। हिन्दू धर्म मानता है कि ईश्वर ने मनुष्य को ही खुलकर हंसने, उत्सव मनाने, मनोरंजन करने और खेलने की योग्यता दी है। यही कारण है कि सभी हिन्दू त्योहारों और संस्कारों में संयमित और संस्कारबद्ध रहकर नृत्य, संगीत और पकवानों का अच्छे से सामंजस्य बैठाते हुए समावेश किया गया है। उत्सव से जीवन में सकारात्मकता, मिलनसारिता और अनुभवों का विस्तार होता है। यही उत्सवप्रियता दुनिया को पसंद है तभी तो ब्रज की होली और कुंभ को देखने के लिए दुनियाभर से लोग भारत आते हैं।
 
 
2.सांस्कृतिक एकता-
भारत के प्रत्येक समाज या प्रांत के अलग-अलग त्योहार, उत्सव, पर्व, परंपरा और रीति-रिवाज हो चले हैं, लेकिन गहराई से देखने पर इन सभी त्योहार, उत्सव, पर्व या परंपरा में समानता है अर्थात एक ही पर्व को मनाने के भिन्न-भिन्न तरीके हैं। भारत की कई भाषाओं को बोलने के कई अंदाज होते हैं लेकिन सभी का मूल संस्कृत और तमिल ही है। उसी तरह भारत के सभी समाज एवं जातियों का मूल भी एक ही है। उनके वंशज भी एक ही हैं। मतलब यह कि पंथों में अलगाव होने के बावजूद संघर्ष नहीं हैं। अलग-अलग मान्यताओं का एक ही परिवार में वास है और सभी हंसी-खुशी रहते हैं। यह बात विदेशियों के लिए हैरान करने वाली है। 
 
3.धार्मिक शिक्षा पर जोर नहीं-
हिन्दू धर्म एक कट्टरपंथी धर्म नहीं है। किसी भी प्रकार का कोई सामाजिक दबाव नहीं है। धार्मिक शिक्षा के लिए कोई जोर-जबरदस्ती नहीं है। हिन्दू धर्म मानता है कि शिक्षा सभी तरह की होना चाहिए। सिर्फ धार्मिक आधार पर शिक्षा नहीं होना चाहिए। हां, शिक्षा संस्कार वाली होगी तो ही कोई बच्चा बड़ा होकर एक अच्छा इंसान बनेगा।
 
4.तीर्थ और मंदिर-
हिन्दू धर्म के सभी तीर्थ और प्रमुख मंदिर को हर कोई देखना चाहेगा। हर धर्म से जुड़ा व्यक्ति वहां जाकर खुद में खुशी महसूस कर सकता है। क्योंकि वहां आपको घंटियों की मधुर आवाज के साथ ही एक ऐसा आध्यात्मिक वातावरण मिलता है जिसके सानिध्य में रहकर आप खुद को प्रसंन्न और शांत कर सकते हैं। हिन्दू तीर्थ स्थलों में विदेशी सैलानी ऐसे ही नहीं घूमते हैं। 
 
5.सह-अस्तित्व और स्वीकार्यता-
परोपकार, सहिष्णुता, उदारता, मानवता और लचीलेपन की भावना से ही सह-अस्तित्व और सभी को स्वीकारने की भावना का विकास होता है। सह-अस्तित्व का अर्थ है सभी के साथ समभाव और प्रेम से रहना चाहे वह किसी भी जाति, धर्म और देश से संबंध रखता हो। इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं कि हिन्दुओं ने दुनिया के कई देशों से समय-समय पर सताए और भगाए गए शरणार्थियों के समूह को अपने यहां शरण दी। दूसरी ओर हिन्दू जहां भी गया वह वहां की संस्कृति में घुल-मिल गया।
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6.ध्यान और योग-
योग, ध्यान और मोक्ष हिन्दू धर्म की ही देन है। मोक्ष, मुक्ति या परमगति की धारणा या विश्वास का जनक वेद ही है। योग में इसे 'समाधि' कहा गया है। वेदों के इस ज्ञान को सभी ने अलग-अलग तरीके से समझकर इसकी व्याख्या की। मोक्ष प्रा‍प्ति हेतु ध्यान को सबसे कारगर और सरल मार्ग माना जाता है। संपूर्ण विश्‍व में ध्यान और योग की धूम है।
 
7.स्वतंत्रता-
हिन्दू धर्म लोगों को निज विश्वासानुसार ईश्वर या देवी-देवताओं को मानने व पूजने की और यदि विश्वास न हो तो न मानने व न पूजने की पूर्ण स्वतंत्रता देता है। प्रत्येक व्यक्ति परमात्मा की अनुपम कृति है और उसे स्वतंत्रता का अधिकार है। वह इसके लिए बाध्य नहीं है कि वह मंदिर जाए, प्रार्थना करे या समाज के किसी नियम को माने। यही कारण रहा कि हिन्दुओं में हजारों वैज्ञानिक, समाज सुधारक और दार्शनिक हुए जिन्होंने धर्म को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया और जिन्होंने धर्म में बाहर से आ गई बुराइयों की समय-समय पर आलोचना भी की। विद्वान लोग जानते हैं कि सांसारिक उन्नति और आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति के लिए स्वतंत्र विचारों की कितनी बड़ी आवश्यकता रहती है। हां, हिन्दू धर्म यह जरूर कहता है कि स्वतंत्रता में स्व-अनुशासन होना जरूरी है। यह आपकी और दूसरों की स्वतंत्रका को कायम रखने और धर्म, देश एवं समाज को व्यवस्थित रखने के लिए जरूरी है।
 
 
8.पुनर्जन्म और कर्मों का सिद्धांत-
हिन्दू धर्म पुनर्जन्म और कर्म के सिद्धांत में विश्वास रखता है। इसका अर्थ है कि आत्मा जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की शिक्षात्मक प्रक्रिया से गुजरती हुई अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। जन्म और मत्यु का यह चक्र तब तक चलता रहता है, जब तक कि आत्मा मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेती। इसीलिए कई तरह के कर्म बताएं गए हैं जिसके चलते प्रारब्ध कर्म का निर्माण होता है। दुनिया के वैज्ञानिक और दार्शनिक अब पुनर्जन्म और इस कर्म सिद्धांत को समझने लगे हैं।
 
 
9.हिन्दू धर्म के साधु और दार्शनिक-
हिन्दू धर्म में ऐसे सैकड़ों चमत्कारिक संत या साधु हुए हैं जिन्होंने दुनिया के दूसरे देशों और धर्म के लोगों को प्रभावित किया है और उन्हें सच्चे ज्ञान का मार्ग दिखाया है। इसी तरह ऐसे भी सैंकड़ों दार्शनिक हुए हैं जिनकी दुनिया कायल हैं। शिरडी के सांई बाबा, नीम कलोली वाले बाबा जैसे चमत्कारिक बाबा और जे. कृष्णमूर्ति, ओशो रजनीश एवं विवेकानंद जैसे दार्शनिकों को दुनिया मानती है और पसंद करती है।
 
 
10.रहस्य और रोमांच-
हिन्दू धर्म में रहस्य को महत्व दिया गया है। जीवन में यदि रहस्य नहीं है तो रोमांच और उत्साह भी नहीं रहेगा। हर वक्त किसी बात की खोज करना ही रोमांच है। इसीलिए हिन्दू धर्म एक रहस्यवादी धर्म है। जीवन, आत्मा, पुनर्जन्म, परमात्मा और यह ब्रह्मांड एक रहस्य ही है। इस रहस्य को जानने का रोमांच मनुष्‍य में आदि काल से ही रहा है। जिस मनुष्य की इस रहस्य को जानने में रुचि नहीं है वह पशुवत समान ही है। जीवन समझो व्यर्थ ही गया। हिन्दू धर्म मानता है कि मनुष्य का जन्म खुद को जानने के लिए ही हुआ है।

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