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आचार्य चाणक्य की मौत कैसे हुई

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चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म ईसापूर्व 340 और मृत्यु ईसा पूर्व 298, बिंदुसार मौर्य का जन्म ईसापूर्व 320 और मृत्यु ईसापूर्व 272 में हुई थी, जबकि अशोक महान का जन्म ईसापूर्व 304 और मृत्यु ईसापूर्व 232 में हुई थी। आचार्य चाणक्य ने तीनों का ही मार्ग दर्शन किया है।

चाणक्य का जन्म ईसा पूर्व 371 में हुआ था जबकि उनकी मृत्यु  ईसा.पूर्व. 283 में हुई थी। चाणक्य का उल्लेख मुद्राराक्षस, बृहत्कथाकोश, वायुपुराण, मत्स्यपुराण, विष्णुपुराण, बौद्ध ग्रंथ महावंश, जैन पुराण आदि में मिलता है। बृहत्कथाकोश अनुसार चाणक्य की पत्नी का नाम यशोमती था। मुद्राराक्षस के अनुसार चाणक्य का असली नाम विष्णुगुप्त था। 
 
भारत के राजनीतिक इतिहास में आचार्य चाणक्य का नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। चाणक्य एक कुशल राजनीतिज्ञ ही नहीं, शिक्षक, धर्माचार्य, लेखक और अर्थशास्त्री भी थे। कहते हैं कि वात्स्यायन नाम से उन्होंने ही कामसुत्र लिखी थी। चाणक्य के पिता चणक ने उनका नाम कौटिल्य रखा था। चाणक्य के पिता चणक की मगध के राजा द्वारा राजद्रोह के अपराध में हत्या कर देने के बाद चाणक्य ने राज सैनिकों से बचने के लिए अपना नाम बदलकर विष्णुगुप्त रख लिया था। विष्णुगु्प्त नाम से ही उन्होंने तक्षशिला के विद्यालय में अपनी पढ़ाई पुरी की। 'कौटिल्य' नाम से भी विख्यात चाणक्य ने अर्थशास्त्र नाम का महान ग्रंथ लिखा है।  विष्णुगुप्त तक्षशिला (वर्तमान में रावलपिंडी के पास) के निवासी थे। आचार्य चाणक्य द्वारा रचित 'अर्थशास्त्र' एवं 'नीतिशास्त्र' नामक ग्रंथों की गणना विश्व की महान कृतियों में की जाती है। चाणक्य नीति में वर्णित सूत्र का उपयोग आज भी राजनीति के मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में किया जाता है।
 
तक्षशिला में रहकर ही आचार्य चाणक्य ने सम्राट पुरु के साथ मिलकर मगथ सम्राट धननंद के साम्राज्य पर अधिकार की लड़ाई लड़ी। राजनीतिक समर्थन जुटाया और अंत में धननंद के नाश के बाद आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त को मगथ का सम्राट बनाया और खुद महामंत्री बने। मगथ की राजधानी उस वक्त पाटलिपुत्र थी। चंद्रगुप्त के दरबार में ही मेगस्थनीज आया था जिसने 'इंडिका' नामक ग्रंथ लिखा। चाणक्य के कहने पर सिकंदर के सेनापति सेल्युकस की बेटी हेलेना से चंद्रगुप्त ने विवाह किया था।

उल्लेखनीय है कि गांधार के राजा आंभी के साथ मिलकर सिकंदर ने राजा पुरू पर आक्रमण कर दिया था। लेकिन सिकंदर को इस युद्ध में हारना पड़ा था। पुरु को चाणक्य और चन्द्रगुप्त का सहयोग प्राप्त था, इसलिए उसका मनोबल बढ़ा हुआ था। युद्ध में पुरु और उसकी सेना ने सिकंदर के छक्के छुड़ा दिए थे। लेकिन इतिहास में कुछ ओर ही पढ़ाया जाता है। 305 ईपू में चन्द्रगुप्त का संघर्ष सिकंदर के सेनापति सेल्युकस निकोटर से हुई जिसमें चंद्रगुप्त की विजय हुई थी। खैर..
 
आचार्य चाणक्य का जीवन बहुत ही रहस्यों से भरा हुआ है। चणक का कटा हुआ सिर राजधानी के चौराहे पर टांग दिया गया। पिता के कटे हुए सिर को देखकर कौटिल्य (चाणक्य) की आंखों से आंसू टपक रहे थे। उस वक्त चाणक्य की आयु 14 वर्ष थी। रात के अंधेरे में उसने बांस पर टंगे अपने पिता के सिर को धीरे-धीरे नीचे उतारा और एक कपड़े में लपेटा। अकेले पुत्र ने पिता का दाह-संस्कार किया। तब कौटिल्य ने गंगा का जल हाथ में लेकर शपथ ली- 'हे गंगे, जब तक हत्यारे धनानंद से अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध नहीं लूंगा तब तक पकाई हुई कोई वस्तु नहीं खाऊंगा। जब तक महामात्य के रक्त से अपने बाल नहीं रंग लूंगा तब तक यह शिखा खुली ही रखूंगा। मेरे पिता का तर्पण तभी पूर्ण होगा, जब तक कि हत्यारे धनानंद का रक्त पिता की राख पर नहीं चढ़ेगा...। हे यमराज! धनानंद का नाम तुम अपने लेखे से काट दो। उसकी मृत्यु का लेख अब मैं ही लिखूंगा।'
 
आचार्य चाणक्य ने न सिर्फ अपनी प्रतिज्ञा पूरी की बल्कि उन्होंने एक साधारण सी महिला मुरा के पुत्र को मगध की गद्दी पर बैठा दिया। कहते हैं कि मुरा के कारण ही चंद्रगुप्त का उपनाम मौर्य पड़ा। इस चंद्रगुप्त का पुत्र बिंदुसार था और बिंदुसार का पुत्र ही महान सम्राट अशोक था। अब सवाल यह उठता है कि अखंड भारत का निर्माण करने के बाद आचार्य चाणक्य मी मौत कैसे हुई? अगले पन्ने पर जारी...

आचार्य चाणक्य की मौत : आचार्य चाणक्य की मौत के बारे में कई तरह की बातों उल्लेख मिलता है। कहते हैं कि वे अपने सभी कार्यों को पूरा करने के बाद एक दिन एक रथ पर सवार होकर मगध से दूर जंगलों में चला गए थे उसके बाद वे कभी नहीं लौटे। कुछ लोगों के अनुसार उन्हें मगथ की ही रानी हेलेना ने जहर देकर मार दिया गया था। लेकिन सच क्या है? इसके लिए इतिहास के पन्नों को फिर से पलटना होगा। 
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उनकी मृत्यु को लेकर इतिहास के पन्नों में एक नहीं अनेक कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन कौन सी सच है यह कोई नहीं जानता। आचार्य चाणक्य की मृत्यु कैसे हुई थी इसको लेकर दो तरह की कहानियां प्रचलित है। लेकिन कौन सी सही है यह कोई नहीं जानता। उनकी हत्या की गई था या कि उनकी मृत्यु का कारण क्या वे स्वयं थे यह कहना मुश्किल ही होगा।
 
पहली कहानी 
चंद्रगुप्त के मरने के बाद आचार्य के अनुशासन तले राजा बिंदुसार सफलतापूर्वक शासन चला रहे थे। लेकिन इसी काल में वे पारिवारिक संघर्ष, षड़यंत्र का सामना भी कर रहे थे। कहते हैं कि परिवार और राज दरबार के कुछ लोगों को आचार्य चाणक्य की राजा के प्रति इतनी करीबी पसंद नहीं थी। उनमें से एक नाम राजा बिंदुसार का मंत्री सुबंधु का था जो कुछ भी करके आचार्य चाणक्य को राजा से दूर कर देना चाहता था। 
 
सुबंधु ने चाणक्य के विरुद्ध कई षड्यंत्र रचे। राजा बिंदुसार के मन में यह गलतफहमी भी उत्पन्न की गई कि उनकी माता की मृत्यु का कारण कोई और नहीं वरन् स्वयं आचार्य चाणक्य ही हैं। ऐसा करने में सुबंधु कुछ सफल भी हो गया। इस कारण धीरे-धीरे राजा और आचार्य में दूरियां बढ़ने लगीं। यह दूरियां इतनी बढ़ गईं कि आचार्य चाणक्य ने महल छोड़कर जाने का फैसला कर लिया और एक दिन वे चुपचाप महल से निकल गए।
 
उनके जाने के बाद एक दाईं ने राजा बिंदुसार को उनकी माता की माताजी का रहस्य बताया। उस दाई के अनुसार आचार्य सम्राट चंद्रगुप्त के खाने में रोजाना थोड़ा-थोड़ा विष मिलाते थे ताकि वे विष को ग्रहण करने के आदी हो जाएं और यदि कभी शत्रु उन्हें विष का सेवन कराकर मारने की कोशिश भी करे तो उसका राजा पर कोई असर ना हो।
 
लेकिन एक दिन वह विष मिलाया हुआ खाना गलती से राजा की पत्नी ग्रहण कर लेती है जो उस समय गर्भवती थीं। विष से पूरित खाना खाते ही उनकी तबियत बिगड़ने लगती है। और जब आचार्य को इस बात का पता चला तो वे तुरंत रानी के गर्भ को काटकर उसमें से शिशु को बाहर निकाल लेते हैं और इस तरह राजा के वंश की रक्षा करते हैं। दाईं आगे कहती है कि यदि चाणक्य ऐसा नहीं करते तो आज आप मगथ के राजा नहीं होते।
 
जब राजा बिंदुसार को दाई से यह सत्य पता चला तो उन्होंने आचार्य के सिर पर लगा दाग हटाने के लिए उन्हें महल में वापस लौटने को कहा, लेकिन आचार्य ने इनकार कर दिया। उन्होंने ताउम्र उपवास करने की ठान ली और अंत में प्राण त्याग दिए।
 
दूसरी कहानी : आचार्य को जिंदा जला दिया था : एक दूसरी कहानी के अनुसार राजा बिंदुसार के मंत्री सुबंधु ने आचार्य को जिंदा जलाने की कोशिश की थी, जिसमें वे सफल भी हुए। हालांकि ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार आचार्य चाणक्य ने खुद प्राण त्यागे थे या फिर वे किसी षड़यंत्र का शिकार हुए थे यह आज तक साफ नहीं हो पाया है। वर्तमान में सम्राट अशोक नाम का जो सीरियल चल रहा है उसमें इस दूसरी कहानी को ही महत्व दिया गया है।

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