भारत दुनिया का सबसे प्राचीन देश है। कम से कम 15 हजार वर्षों से यह देश सभ्य और सांस्कृतिक रूप से संपन्न है। इस देश ने 2000 ईसा पूर्व से 650 ईसा बाद तक अपने काल का सबसे अच्छा और स्वर्ण युग भोगा है। 650 के बाद विदेशी आक्रांताओं ने इस देश के वैभव, इतिहास और संस्कृति को धूल में मिला दिया।
इस दौरान लाखों लोगों ने खुद के धर्म और संस्कृति को छोड़कर दूसरे देश के धर्म और संस्कृति के अपनाकर अपने ही लोगों के खिलाफ युद्ध छेड़ा और इस तरह इस देश की बर्बादी का एक नया दौर भी चला। लेकिन इस सबके बावजूद यहां के मूल धर्म और संस्कृति को एक बहुत बड़े भू-भाग में बचाकर रखा। इसके पीछे हमारे वे योद्धा रहे जिन्हें अपनी जान दे दी या दुश्मनों की जान ले ली लेकिन अपने देश को हर हाल में बचाने का कार्य किया।
हालांकि पिछले 1300 सालों के दौरान इस देश का बहुत-कुछ वैभव नष्ट हो गया, फिर भी हमने ढूंढी हैं कुछ ऐसी प्राचीनतम बातें जिन्हें जानकर आपको अपने अतीत पर गर्व होगा। आओ जानते हैं कि भारत में सबसे प्राचीन अब क्या-क्या बचा है।
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भारत का सबसे प्राचीन शहर काशी : इजिप्ट (मिस्र), बगदाद, देहरान, मक्का, रोम, एथेंस, येरुशलम, बाइब्लोस, जेरिको, मोहन-जोदड़ो, हड़प्पा, लोनान, मोसुल आदि नगरों की दुनिया के प्राचीन नगरों में गिनती की जाती है, लेकिन पौराणिक और ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार दुनिया का सबसे प्राचीन शहर वाराणसी है। दुनिया न भी माने, तो यह भारत का सबसे प्राचीन शहर है।
भारत में कई प्राचीन शहर हैं, जैसे मथुरा, अयोध्या, द्वारिका, कांची, उज्जैन, रामेश्वरम, प्रयाग (इलाहाबाद), पुष्कर, नासिक, श्रावस्ती, पेशावर (पुरुषपुर), बामियान, सारनाथ, लुम्बिनी, राजगिर, कुशीनगर, त्रिपुरा, गोवा, महाबलीपुरम, कन्याकुमारी, श्रीनगर, गांधार आदि, लेकिन काशी का स्थान इन सबमें सबसे ऊंचा है। काशी को 'वाराणसी' और 'बनारस' भी कहा जाता है। हालांकि प्राचीन भारत में 16 जनपद थे जिनके नाम इस प्रकार हैं- अवंतिका, अश्मक, कम्बोज, अंग, काशी, कुरु, कौशल, गांधार, चेदि, वज्जि, वत्स, पांचाल, मगध, मत्स्य, मल्ल और सुरसेन।
काशी की प्राचीनता : शहरों और नगरों में बसाहट के अब तक प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर एशिया का सबसे प्राचीन शहर वाराणसी को ही माना जाता है। इसमें लोगों के निवास के प्रमाण 3,000 साल से अधिक पुराने हैं। हालांकि कुछ विद्वान इसे करीब 5,000 साल पुराना मानते हैं, लेकिन हिन्दू धर्मग्रंथों में मिलने वाले उल्लेख के अनुसार यह और भी पुराना शहर है।
विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ईपू की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि यूनेस्को की 158 सूचियों में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है। इसका मतलब यह है कि 1800+2014= 3814 वर्ष पुरानी है काशी। वेद का वजूद इससे भी पुराना है। विद्वानों ने वेदों के रचनाकाल की शुरुआत 4500 ईपू से मानी है यानी आज से 6,500 वर्ष पूर्व। हालांकि हिन्दू इतिहास के अनुसार 10,000 वर्ष पूर्व हुए कश्यप ऋषि के काल से ही काशी का अस्तित्व रहा है।
काशी : भारत के उत्तरप्रदेश में स्थित काशी नगर भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसा है। काशी संसार की सबसे पुरानी नगरी है। यह नगरी वर्तमान वाराणसी शहर में स्थित है। पुराणों के अनुसार पहले यह भगवान विष्णु की पुरी थी, जहां श्रीहरि के आनंदाश्रु गिरे थे, वहां बिंदु सरोवर बन गया और प्रभु यहां 'बिंधुमाधव' के नाम से प्रतिष्ठित हुए। महादेव को काशी इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने इस पावन पुरी को विष्णुजी से अपने नित्य आवास के लिए मांग लिया। तब से काशी उनका निवास स्थान बन गई। काशी में हिन्दुओं का पवित्र स्थान है 'काशी विश्वनाथ'।
भगवान बुद्ध और शंकराचार्य के अलावा रामानुज, वल्लभाचार्य, संत कबीर, गुरु नानक, तुलसीदास, चैतन्य महाप्रभु, रैदास आदि अनेक संत इस नगरी में आए। एक काल में यह हिन्दू धर्म का प्रमुख सत्संग और शास्त्रार्थ का स्थान बन गया था।
दो नदियों 'वरुणा' और 'असि' के मध्य बसे होने के कारण इसका नाम 'वाराणसी' पड़ा। संस्कृत पढ़ने के लिए प्राचीनकाल से ही लोग वाराणसी आया करते थे। वाराणसी के घरानों की हिन्दुस्तानी संगीत में अपनी ही शैली है। सन् 1194 में शहाबुद्दीन गौरी ने इस नगर को लूटा और क्षति पहुंचाई। मुगलकाल में इसका नाम बदलकर मुहम्मदाबाद रखा गया। बाद में इसे अवध दरबार के प्रत्यक्ष नियंत्रण में रखा गया।
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भारत का सबसे प्राचीन पूजा या प्रार्थनागृह : जहां लोग इकट्टे होकर प्रार्थना, पूजा या ध्यान करते हैं उसे ईश्वर का इबादतघर कहा जाता है। यदि हम प्राचीन सभ्यताओं के मंदिरों की बात करें तो आपको इजिप्ट (मिस्र), नोस्सोस, येरुशलम, तुर्की, माचू पिच्चू आदि जगहों पर 2500 ईसा पूर्व के प्राचीन मंदिर मिल जाएंगे। लेकिन हम उन सभ्यताओं के नहीं, धर्मों के मंदिर की बात कर रहे हैं। ऐसे तो हड़प्पा और मोहन-जोदड़ो में भी मंदिर रहे होंगे।
हमारे देश में 1 से 1,500 वर्ष पुराने मंदिर तो मिल ही जाएंगे, जैसे अजंता-एलोरा का कैलाश मंदिर, तमिलनाडु के तंजौर में बृहदेश्वर मंदिर, तिरुपति शहर में बना विष्णु मंदिर आदि। लेकिन सबसे प्राचीन मंदिर के प्रमाण के रूप में मुंडेश्वरी देवी का मंदिर माना जाता है जिसका निर्माण 108 ईस्वी में हुआ था। मुंडेश्वरी देवी का मंदिर बिहार के कैमूर जिले के भगवानपुर अंचल में पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इसकी स्थापना 108 ईस्वी में हुविश्क के शासनकाल में हुई थी। यहां शिव और पार्वती की पूजा होती है। प्रमाणों के आधार पर इसे देश का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है।
हालांकि इस आधार पर इस मंदिर को दुनिया का सबसे प्राचीन पूजागृह घोषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि मक्का स्थित काबा को हजरत इब्राहीम ने स्थापित किया था। हज. अनुमानत: 1800 ईसा पूर्व हुए थे, लेकिन कहा जाता है कि हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के समय इसकी फिर से तामीर की गई थी।
प्राचीनता के मामले में देश में सबसे प्राचीन शक्तिपीठों और ज्योतिर्लिंगों को माना जाता है। हिंगलाज माता का मंदिर, ज्वालादेवी का मंदिर, कामाख्यादेवी का मंदिर, अमरनाथ का मंदिर आदि सभी कम से कम 5,000 वर्ष पुराने बताए जाते हैं। बामियान की गुफाओं के मंदिर या देशभर के अन्य बौद्ध मंदिर भी 2,000 वर्ष पुराने बताए जाते हैं। प्राचीनकाल में यक्ष, नाग, शिव, दुर्गा, भैरव, इन्द्र और विष्णु की पूजा और प्रार्थना का प्रचलन था। रामायण काल में मंदिर होते थे, इसके प्रमाण हैं। राम का काल आज से 7,200 वर्ष पूर्व था अर्थात 5114 ईस्वी पूर्व।
राम के काल में सीता द्वारा गौरी पूजा करना इस बात का सबूत है कि उस काल में देवी-देवताओं की पूजा का महत्व था और उनके घर से अलग पूजा स्थल होते थे। इसी प्रकार महाभारत में दो घटनाओं में कृष्ण के साथ रुक्मणि और अर्जुन के साथ सुभद्रा के भागने के समय दोनों ही नायिकाओं द्वारा देवी पूजा के लिए वन में स्थित गौरी माता (माता पार्वती) के मंदिर की चर्चा है। इसके अलावा युद्ध की शुरुआत के पूर्व भी कृष्ण पांडवों के साथ गौरी माता के स्थल पर जाकर उनसे विजयी होने की प्रार्थना करते हैं।
सोमनाथ के मंदिर के होने का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। इससे यह सिद्ध होता है कि भारत में मंदिर परंपरा कितनी पुरानी रही है। इतिहासकार मानते हैं कि ऋग्वेद की रचना 7000 से 1500 ईसा पूर्व हई थी अर्थात आज से 9,000 वर्ष पूर्व। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ईपू की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि यूनेस्को की 158 सूचियों में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है।
हिन्दू मंदिरों को खासकर बौद्ध, चाणक्य और गुप्तकाल में भव्यता प्रदान की जाने लगी और जो प्राचीन मंदिर थे उनका पुन: निर्माण किया गया। ये सभी मंदिर ज्योतिष, वास्तु और धर्म के नियमों को ध्यान में रखकर बनाए गए थे। अधिकतर मंदिर कर्क रेखा या नक्षत्रों के ठीक ऊपर बनाए गए थे। उनमें से भी एक ही काल में बनाए गए सभी मंदिर एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। प्राचीन मंदिर ऊर्जा और प्रार्थना के केंद्र थे लेकिन आजकल के मंदिर तो पूजा-आरती के केंद्र हैं।
मध्यकाल में मुस्लिम आक्रांताओं ने जैन, बौद्ध और हिन्दू मंदिरों को बड़े पैमाने पर ध्वस्त कर दिया। यह विध्वंस उत्तर भारत में अधिक हुआ जिसके चलते अयोध्या, मथुरा और काशी के कई प्राचीन मंदिरों का अब नामोनिशान मिट गया है। मलेशिया, इंडोनेशिया, अफगानिस्तान, ईरान, तिब्बत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, कंबोडिया आदि मुस्लिम और बौद्ध राष्ट्रों में अब हिन्दू मंदिर नाममात्र के बचे हैं। अब ज्यादातर प्राचीन मंदिरों के बस खंडहर ही नजर आते हैं, जो सिर्फ पर्यटकों के देखने के लिए ही रह गए हैं। अधिकतर का तो अस्तित्व ही मिटा दिया गया है।
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भारत की सबसे प्राचीन नदी सिन्धु : हालांकि सिन्धु प्राचीन भारत की नदी थी, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। कहते हैं कि सिन्धु के बगैर हिन्दू ऐसे ही हैं जैसे दिगंबर। दुनिया की सबसे प्राचीन नदी अफ्रीका की नील नदी को माना जाता है। यह विश्व की सबसे लंबी नदी (6,650 किलोमीटर) भी है।
जहां तक सवाल भारत का है तो भारत में सिन्धु, सरस्वती, वितस्ता, यमुना, गंगा, सतलुज, गोमती, रावी, गोदावरी, ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, कावेरी, महानदी और नर्मदा बहती हैं। इससे सभी नदियों में सिर्फ नर्मदा ही उल्टी दिशा में बहती है। पुराणों के अनुसार सिन्धु, सरस्वती, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, महानदी, गोदावरी आदि को सबसे प्राचीन माना जाता है, लेकिन इसमें भी सबसे प्राचीन में सिन्धु और सरस्वती को माना गया है। इसके बाद गंगा और फिर नर्मदा नदी को प्राचीन माना गया है।
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भारत की प्राचीन पुस्तक : ऋग्वेद को भारत ही नहीं, दुनिया की सबसे प्राचीन धार्मिक पुस्तक होने का गौरव प्राप्त है। वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं। वेदों की 28,000 पांडुलिपियां भारत में पुणे के 'भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट' में रखी हुई हैं। इनमें से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियां बहुत ही बहुत ही महत्वपूर्ण हैं जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया है। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ईपू की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है। ऋग्वेद के बाद यजु, फिर साम और बाद में अथर्व लिखा गया।
सबसे प्राचीन पुराण : विष्णु पुराण के अनुसार सबसे पहले ब्रह्म पुराण लिखा गया अत: ब्रह्म पुराण सबसे प्राचीन है। दूसरा पद्म, तीसरा वैष्णव, चौथा शैव, पांचवां भागवत पुराण, छठा नारद, सातवां मार्कंडेय, आठवां आग्नेय, नौवां भविष्यत, दसवां ब्रह्मवैवर्त, ग्यारहवां पुराण लैड़ग, बारहवां वाराह, तेरहवां स्कन्द, चौदहवां वामन, पन्द्रहवां कौर्म, सोलहवां मत्स्य, सत्रहवां गरूड़ और अठारहवां ब्रह्मांड पुराण हैं।
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सबसे प्राचीन पर्वत : अरावली भारत के पश्चिमी भाग राजस्थान में स्थित एक पर्वतमाला है। भारत की भौगोलिक संरचना में अरावली प्राचीनतम पर्वत है। यह संसार की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला है, जो राजस्थान को उत्तर से दक्षिण दो भागों में बांटती है।
अरावली का सर्वोच्च पर्वत शिखर सिरोही जिले में गुरुशिखर (1727 मी.) है, जो माउंट आबू में है। अरावली पर्वत श्रृंखला की कुल लंबाई गुजरात से दिल्ली तक 692 किलीमीटर है। वर्तमान में यह पर्वत श्रृंखला विकास के नाम पर अपना अस्तित्व खो रही है। हालांकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मेरू पर्वत दुनिया का सबसे प्राचीन और ऊंचा पर्वत है।
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सबसे प्राचीन पूल : वाल्मीकि रामायण कहता है कि जब श्रीराम ने सीता को लंकापति रावण से छुड़ाने के लिए लंका द्वीप पर चढ़ाई की, तो उस वक्त उन्होंने सभी देवताओं का आह्वान किया और युद्ध में विजय के लिए आशीर्वाद मांगा था। इनमें समुद्र के देवता वरुण भी थे।
वरुण से उन्होंने समुद्र पार जाने के लिए रास्ता मांगा था। जब वरुण ने उनकी प्रार्थना नहीं सुनी तो उन्होंने समुद्र को सुखाने के लिए धनुष उठाया। डरे हुए वरुण ने क्षमा-याचना करते हुए उन्हें बताया कि श्रीराम की सेना में मौजूद नल-नील नाम के वानर जिस पत्थर पर उनका नाम लिखकर समुद्र में डाल देंगे, वह तैर जाएगा और इस तरह श्रीराम की सेना समुद्र पर पुल बनाकर उसे पार कर सकेगी। इसके बाद श्रीराम की सेना ने लंका के रास्ते में पुल बनाया और लंका पर हमला कर विजय हासिल की।
उल्लेखनीय है कि बेलीपुल विश्व में सबसे ऊंचा पुल है। यह हिमाचल पर्वत में द्रास और सुरु नदियों के बीच लद्दाख घाटी में स्थित है। इसका निर्माण अगस्त 1982 में भारतीय सेना द्वारा किया गया था।
वाल्मीकि रामायण में वर्णन मिलता है कि पुल लगभग 5 दिनों में बन गया जिसकी लंबाई 100 योजन और चौड़ाई 10 योजन थी। रामायण में इस पुल को ‘नल सेतु’ की संज्ञा दी गई है। नल के निरीक्षण में वानरों ने बहुत प्रयत्नपूर्वक इस सेतु का निर्माण किया था- (वाल्मीकि रामायण-6/22/76)। वाल्मीकि रामायण में कई प्रमाण हैं कि सेतु बनाने में उच्च तकनीक प्रयोग किया गया था। कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों को यंत्रों द्वारा समुद्र तट पर ले आए थे। कुछ वानर 100 योजन लंबा सूत पकड़े हुए थे अर्थात पुल का निर्माण सूत से सीध में हो रहा था- (वाल्मीकि रामायण- 6/22/62)। गीता प्रेस गोरखपुर से छपी पुस्तक श्रीमद्वाल्मीकिय रामायण-कथा-सुख-सागर में वर्णन है कि राम ने सेतु के नामकरण के अवसर पर उसका नाम ‘नल सेतु’ रखा। इसका कारण था कि लंका तक पहुंचने के लिए निर्मित पुल का निर्माण विश्वकर्मा के पुत्र नल द्वारा बताई गई तकनीक से संपन्न हुआ था। महाभारत में भी राम के नल सेतु का जिक्र आया है।
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सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय : भारत ही नहीं, विश्व का सबसे प्रथम विश्वविद्यालय तक्षशिला का विश्वविद्यालय था। तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना लगभग 2,700 साल पहले की गई थी। इस विश्विद्यालय में देश-विदेश के लगभग 10,500 विद्यार्थी पढ़ाई करते थे।
तक्षशिला राजनीति और शस्त्र विद्या की शिक्षा का विश्वस्तरीय केंद्र था। वहां के एक शस्त्र विद्यालय में विभिन्न राज्यों के 103 राजकुमार पढ़ते थे। आयुर्वेद और विधिशास्त्र के इसमें विशेष विद्यालय थे। कोसलराज प्रसेनजित, मल्ल सरदार बंधुल, लिच्छवि महालि, शल्यक जीवक और लुटेरे अंगुलिमाल के अलावा चाणक्य और पाणिनि जैसे लोग इसी विश्वविद्यालय के विद्यार्थी थे।
इस विश्वविद्यालय के बाद बिहार के नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय का नाम आता है। नालंदा विश्वविद्यालय चौथी शताब्दी में स्थापित किया गया था, जो शिक्षा के क्षेत्र में प्राचीन भारत की महानतम उपलब्धियों में से एक है। इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज करा देते हैं।
विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के राजा धर्मपाल ने की थी। 8वीं से 12वी शताब्दी के अंत तक यह विश्वविद्यालय भारत के प्रमुख शिक्षा केंद्रों में से एक था। भारत के वर्तमान नक्शे के अनुसार यह विश्वविद्यालय बिहार के भागलपुर शहर के आसपास रहा होगा।
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सबसे प्राचीन जंगल : दंडकारण्य मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के घने जंगलों के मुख्य स्थान को कहा जाता है। इसका पौराणिक इतिहास में बहुत उल्लेख मिलता है। हालांकि प्राचीनता के नाम पर सबसे प्राचीन सुंदरवन को माना जाता है। भगवान श्रीराम ने दंडकारण्य में ही अपने वनवास के लगभग 10 वर्ष बिताए थे। यहां की नदियों, पहाड़ों, सरोवरों एवं गुफाओं में राम के रहने के सबूतों की भरमार है। कान्हा राष्ट्रीय उद्यान भी इसी क्षेत्र का हिस्सा था।
मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के क्षेत्रों में नर्मदा व महानदी आदि नदियों के किनारे 10 वर्षों तक उन्होंने कई ऋषि आश्रमों का भ्रमण किया। दंडकारण्य क्षेत्र तथा सतना के आगे वे विराध सरभंग एवं सुतीक्ष्ण मुनि के आश्रमों में गए। बाद में वे सुतीक्ष्ण आश्रम वापस आए। पन्ना, रायपुर, बस्तर और जगदलपुर में कई स्मारक विद्यमान हैं, उदाहरणत: मांडव्य आश्रम, श्रृंगी आश्रम, राम-लक्ष्मण मंदिर आदि।
वर्तमान में करीब 92,300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस इलाके के पश्चिम में अबूझमाड़ पहाड़ियां तथा पूर्व में इसकी सीमा पर पूर्वी घाट शामिल हैं। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के हिस्से शामिल हैं। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक करीब 320 किमी तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग 480 किलोमीटर है। दंडकारण्य क्षेत्र की चर्चा पुराणों में विस्तार से मिलती है। इस क्षेत्र की उत्पत्ति कथा महर्षि अगस्त्य मुनि से जुड़ी हुई है। यहीं पर उनका महाराष्ट्र के नासिक के अलावा एक आश्रम था।
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सबसे प्राचीन ज्ञान, विज्ञान और आविष्कार : ज्ञात रूप से आयुर्वेद सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति है। चरक ने 2,500 वर्ष पहले आयुर्वेद को प्रचलन में लाया था। आयुर्वेद का विकास 600 ईपू भारत में हुआ। इसी से बाद में यूनानी, प्राकृतिक आदि चिकित्सा का आविष्कार हुआ। सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का जनक माना जाता है। लगभग 2,600 वर्ष पहले सुश्रुत और उनके सहयोगियों ने मोतियाबिंद, कृत्रिम अंगों को लगाना, शल्यक्रिया द्वारा प्रसव, अस्थिभंग जोड़ना, मूत्राशय की पथरी, प्लास्टिक सर्जरी और मस्तिष्क की शल्य क्रियाएं आदि कीं।
इसके अलावा दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत का व्याकरण पाणिनि ने 200 ईसा पूर्व लिखा था। भारतीय गणितज्ञ बुधायन द्वारा 'पाई' का मूल्य ज्ञात किया गया था और उन्होंने जिस संकल्पना को समझाया, उसे 'पाइथागोरस का प्रमेय' कहते हैं। उन्होंने इसकी खोज 6ठी शताब्दी में की, जो यूरोपीय गणितज्ञों से काफी पहले की गई थी। बीजगणित, त्रिकोणमिति और कलन का उद्भव भी भारत में हुआ था। चतुष्पद समीकरण का उपयोग 11वीं शताब्दी में श्रीधराचार्य द्वारा किया गया था। ग्रीक तथा रोमनों द्वारा उपयोग की गई सबसे बड़ी संख्या 106 थी जबकि हिन्दुओं ने 10*53 जितने बड़े अंकों का उपयोग (अर्थात 10 की घात 53) के साथ विशिष्ट नाम 5000 बीसी के दौरान किया। आज भी उपयोग की जाने वाली सबसे बड़ी संख्या 'टेरा' 10*12 (10 की घात 12) है। इसी तरह अन्य कई ज्ञान, विज्ञान और खगोल की बातें सबसे पहले प्राचीन भारत में ही जन्मीं।
भास्कराचार्य ने खगोलशास्त्र के कोई 100 साल पहले पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने में लगने वाले सही समय की गणना की थी। उनकी गणना के अनुसार सूर्य की परिक्रमा में पृथ्वी को 365.258756484 दिन का समय लगता है। नौवहन की कला और नौवहन का जन्म 6,000 वर्ष पहले सिन्ध नदी में हुआ था। दुनिया का सबसे पहला नौवहन संस्कृत शब्द 'नवगति' से उत्पन्न हुआ है। शब्द 'नौसेना' भी संस्कृत शब्द 'नोउ' से हुआ। इसी तरह ईसा पूर्व भारद्वाज ऋषि द्वारा लिखा गया 'विमानशास्त्र' भी इस बात का गवाह है कि भारत विमान की तकनीक भी जानता था।
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सबसे प्राचीन झील : रूस स्थित लेक बैकाल झील दुनिया की सबसे प्राचीन और गहरी झील है। ऐसा माना जाता है कि यह झील 3 करोड़ साल पुरानी है। इसकी औसत गहराई 744.40 मीटर है। उदयपुर में महाराजा जयसिंह ने एशिया की सबसे बड़ी झील का निर्माण कराया जिसे 'जयसमंद झील' कहते हैं।
झील को 'सरोवर' भी कहते हैं। प्राचीन सरोवरों में मानसरोवर को सबसे प्राचीन माना जा सकता है। भारत में पुष्कर झील को सबसे प्राचीन माना जाता है। यहां भगवान ब्रह्मा ने यज्ञ किया था। नारायण सरोवर, पंपा सरोवर, बिंदु सरोवर, अमृत सरोवर और लोणार सरोवर की गणना भी प्राचीन सरोवरों में की जाती है।
राजस्थान में अजमेर शहर से 14 किलोमीटर दूर पुष्कर झील है। पुष्कर के उद्भव का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने यहां आकर यज्ञ किया था। पुष्कर का उल्लेख रामायण में भी हुआ है। विश्वामित्र के यहां तप करने की बात कही गई है। अप्सरा व मेनका यहां के पावन जल में स्नान के लिए आई थीं। महाभारत के वन पर्व के अनुसार योगीराज श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की थी। पांडुलेन गुफा के लेख में, जो ई. सन् 125 का माना जाता है, उषमदवत्त का नाम आता है। यह विख्यात राजा नहपाण का दामाद था और इसने पुष्कर आकर 3,000 गायों एवं एक गांव का दान किया था।
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सबसे प्राचीन वेधशाला : दिल्ली का जंतर-मंतर सबसे प्राचीन वेधशाला है। इसका निर्माण सवाई जयसिंह द्वितीय ने सन् 1724 में करवाया था। यह इमारत मध्यकालीन भारत की वैज्ञानिक प्रगति की मिसाल है। दिल्ली के कनॉट प्लेस में स्थित स्थापत्य कला का अद्वितीय नमूना 'जंतर-मंतर' दिल्ली के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। यह जंतर-मंतर वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण है। जंतर-मंतर में लगे 13 खगोलीय यंत्र राजा सवाई जयसिंह ने स्वयं डिजाइन किए थे। जंतर-मंतर में लगे तमाम यंत्रों की मदद से ग्रहों की चाल का अध्ययन किया जाता था।
हालांकि इतिहासकार कहते हैं कि कुतुब मीनार सबसे प्राचीन जंतर-मंतर था। कुतुब मीनार या लौह स्तंभ एक ऐसा स्तंभ है जिसे निजी और धार्मिक कार्यक्रम के तहत रूपांतरित किया गया। हेर-फेर कर इसे दूसरा नाम दे दिया गया। इतिहास में ऐसे प्रमाण और लिखित दस्तावेज हैं जिनके आधार पर यह साबित किया जा सकता है कि कुतुब मीनार एक विष्णु स्तंभ है। इसके बारे में एमएस भटनागर ने दो लेख लिखे हैं जिनमें इसकी उत्पत्ति, नामकरण और इसके इतिहास की समग्र जानकारी है। इनमें उस प्रचलित जानकारियों को भी आधारहीन सिद्ध किया गया है, जो कि इसके बारे में इतिहास में दर्ज हैं या आमतौर पर बताई जाती हैं।
विस्तार से पढ़ें : विष्णु स्तंभ है कुतुब मीनार, जानें महत्वपूर्ण तथ्य
http://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-history/qutub-minar-115031900044_1.html
क्या आपको पता है कि अरबी में 'कुतुब' को एक 'धुरी', 'अक्ष', 'केंद्रबिंदु' या 'स्तंभ' या 'खंभा' कहा जाता है। कुतुब को आकाशीय, खगोलीय और दिव्य गतिविधियों के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक खगोलीय शब्द है या फिर इसे एक आध्यात्मिक प्रतीक के तौर पर समझा जाता है। इस प्रकार 'कुतुब मीनार' का अर्थ 'खगोलीय स्तंभ' या 'टॉवर' होता है।
सुल्तानों के जमाने में इसे इसी नाम से वर्णित किया जाता था। बाद में अदालती दस्तावेजों में भी इसका इसी नाम से उल्लेख हुआ। कालांतर में इसका नाम सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक से जोड़ दिया गया और इसके साथ यह भी माना जाने लगा है कि इसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था। प्रो. एमएस भटनागर (गाजियाबाद) ने इस अद्वितीय और अपूर्व इमारत के बारे में सच्चाई जाहिर की है और इससे जुड़ीं सभी भ्रामक जानकारियों, विरोधाभाषी स्पष्टीकरणों और दिल्ली के मुगल राजाओं और कुछ पुरातत्ववेताओं की गलत जानकारी को उजागर किया। वर्ष 1961 में कॉलेज के कुछ छात्रों का दल कुतुब मीनार देखने गया।
यह मीनार वास्तव में ध्रुव स्तंभ है या प्राचीन हिन्दू खगोलीय वेधशाला का एक मुख्य निगरानी टॉवर या स्तंभ है। कुतुब मीनार के पास जो बस्ती है, उसे 'महरौली' कहा जाता है। यह एक संस्कृत शब्द है जिसे 'मिहिर-अवेली' कहा जाता है। इस कस्बे के बारे में कहा जा सकता है कि यहां पर विख्यात खगोलज्ञ मिहिर (जो कि विक्रमादित्य के दरबार में थे) रहा करते थे। उनके साथ उनके सहायक, गणितज्ञ और तकनीकविद भी रहते थे। वे लोग इस कथित कुतुब टॉवर का खगोलीय गणना, अध्ययन के लिए प्रयोग करते थे।
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सबसे प्राचीन खेल : ऐसे बहुत सारे खेल हैं जिनका जन्मदाता देश भारत है, जैसे सांप-सीढ़ी, शतरंज, गंजिफा (ताश), रथ दौड़, बैलगाड़ियों की दौड़, नौका की दौड़, धनुर्विद्या, तलवारबाजी, घुड़सवारी, मल्ल-युद्ध, कुश्ती, तैराकी, भाला फेंक आदि। गौतम बुद्ध स्वयं सक्षम धनुर्धर थे और रथ दौड़, तैराकी तथा गोला फेंकने आदि की स्पर्द्धाओं में भाग ले चुके थे। ‘विलास-मणि-मंजरी’ ग्रंथ में त्र्युवेदाचार्य ने इस प्रकार की घटनाओं का उल्लेख किया है।
निम्न खेलों के अलावा छिपा-छई, पिद्दू, चर-भर, शेर-बकरी, अस्टा-चंगा, चक-चक चालनी, समुद्र पहाड़, दड़ी दोटा, गो, किकली (रस्सी कूद), मुर्ग युद्ध, बटेर युद्ध, अंग-भंग-चौक-चंग, गोल-गोल धानी, सितौलिया, अंटी-कंचे, पकड़म-पाटी, गिल्ली-डंडा, पतंगबाजी आदि सैकड़ों खेल हैं जिनमें से कुछ का अब अंग्रेजीकरण कर दिया गया है।
उपरोक्त में से 4 मनोरंजक खेलों का प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। ये खेल हैं- शतरंज (चतुरंग), चौपड़-पांसा, गेंद फेंक और कुश्ती। महाभारत में जिक्र है कि कृष्ण अपने साथियों के साथ यमुना किनारे फुटबॉल खेलते थे। रामायण काल में हनुमान और महाभारत काल में भीम का अपने साथियों के साथ कुश्ती लड़ने का जिक्र आता है।
अखाड़ों का इतिहास लगभग 2500 ईपू से ताल्लुक रखता है, लेकिन अखाड़े 8वीं सदी से अस्तित्व में आए, जब आदिशंकराचार्य ने महानिर्वाणी, निरंजनी, जूना, अटल, आवाहन, अग्नि और आनंद अखाड़े की स्थापना की। बाद में छत्रपति शिवाजी के गुरु ने देशभर के अखाड़ों का पुनर्जागरण किया।
सिन्धु घाटी के नगरों में चौपड़-पांसों के खेल के पट्टे इत्यादि मिले हैं। पांसों की गोटें बड़े पत्थरों की बनी होती थीं। जुए के खेल, पांसे आदि के पट्टे प्राचीन नगरों के खंडहरों से भी मिले हैं जिससे उस खेल की लोकप्रियता प्रकट है। महाभारत में कौरव और पांडवों के बीच यह खेल हुआ था जिसके चलते युद्ध की नौबत आ गई थी।