कई लोगों में यह भ्रम है कि भारत को पहले आर्यावर्त कहते थे या भारत देश का एक नाम आर्यावर्त भी है, परंतु यह सच नहीं है। बहुत से लोग भारतवर्ष को ही आर्यावर्त मानते हैं जबकि यह भारत का एक हिस्सा मात्र था। वेदों में उत्तरी भारत को आर्यावर्त कहा गया है। आर्यावर्त का अर्थ आर्यों का निवास स्थान। आर्यभूमि का विस्तार काबुल की कुंभा नदी से भारत की गंगा नदी तक था।
ऋग्वेद में आर्यों के निवास स्थान को 'सप्तसिंधु' प्रदेश कहा गया है। ऋग्वेद के नदीसूक्त (10/75) में आर्यनिवास में प्रवाहित होने वाली नदियों का वर्णन मिलता है, जो मुख्य हैं:- कुभा (काबुल नदी), क्रुगु (कुर्रम), गोमती (गोमल), सिंधु, परुष्णी (रावी), शुतुद्री (सतलज), वितस्ता (झेलम), सरस्वती, यमुना तथा गंगा। उक्त संपूर्ण नदियों के आसपास और इसके विस्तार क्षेत्र तक आर्य रहते थे।
वेद और महाभारत को छोड़कर अन्य ग्रंथों में जो आर्यावर्त का वर्णन मिलता है वह भ्रम पैदा करने वाला है, क्योंकि आर्यों का निवास स्थान हर काल में फैलता और सिकुड़ता गया था इसलिए उसकी सीमा क्षेत्र का निर्धारण अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग मिलता है। मूलत: जो प्रारंभ में था वही सत्य है।
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद् भगवतोमहापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य ब्रह्मणोन्हि द्वितिय परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे विक्रमनाम संवतरे मासोत्तमे मासे, अमुक मासे अमुक पक्षे, अमुक तिथौ, अमुक वासरे श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फलप्राप्तिकाम: अमुकगोत्रोत्पनोsहममुक नामे, सकलदुरितोपशमनं सर्वापच्छान्ति पूर्वक अमुक मनोरथ सिद्धयर्थ यथासपादित सामिग्रया श्री अमुक देवता पूजनं करिष्यये।।
एक मान्यता के अनुसार इसे आर्यावर्त भी कहा जाता था, परंतु उपरोक्त श्लोक कुछ ओर ही कहता है कि जम्बूद्वीप के भारतखण्ड के अंतर्गत भारतवर्ष और भारतवर्ष के अंतर्गत आयार्वत देश है। इस तरह के कुछ श्लोकों में आर्यावर्त देश के अंतर्गत ब्रह्मावर्तक देश का भी वर्णन मिलता है। यह संकल्प लेने वाले जातक के स्थान को प्रदर्शित करता है। भारतखंड में आर्यावर्त मुख्य रूप से आर्यो के रहने के स्थान था। यह बात इस संकल्प श्लोक से सिद्ध की जा सकती है जो प्रत्येक पूजा विधि की पुस्तकों में मिलता है।
आसमुद्रात्तु वै पूर्वादासमुद्रात्तु पश्चिमात्।
त्योरेवान्तरंग गिर्योरार्यावर्तं विदुर्बुधा:।।- मनुस्मृति अध्याय-2, श्लोक-22
मनुस्मृति : झा जनार्दन/ द्वितीय संस्कारण-1926 : प्रकाशक वेजनाथ केडिया, प्रोपाइटर हिन्दी पुस्तक एजेंसी 129 हरिसन रोड कलकत्ता। मुद्रक किशोरीलाल केडिया, वणिक प्रेस, सरकार लेन- कलकत्ता।
कई जगहों पर इस भारतवर्ष को आर्यावर्त देश नाम से भी संबोधित किया गया है परंतु रामायण और महाभारत के पूर्व से प्रचलित मनुस्मृति में आर्यावर्त की सीमा का उल्लेख मिलता है कि पूर्व समुद्र से लेकर पश्चिम के समुद्र तक हिमालय और विन्ध्याचल के मध्य भाग में जो भाग है, उसे विद्वान लोग आर्यावर्त कहते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि विन्ध्याचल के बाद का स्थान जो कन्याकुमारी तक फैला था वह आर्यावर्त के अंतर्गत नहीं था यह भारतखण्ड के अंतर्गत था। मार्केन्डय पुराण के अनुसार संपूर्ण भारतवर्ष के पूर्व, पश्चिम और दक्षिण की ओर समुद्र है जो कि उत्तर में हिमालय के साथ धनुष 'ज्या' (प्रत्यंचा) की आकृति को धारण करता है। लगभग सभी पुराणों में यही सीमा उल्लेख मिलता है।