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क्या सचमुच अयोध्या हिन्दुओं के लिए मक्का की तरह है?

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अनिरुद्ध जोशी

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या की रामजन्मभूमि को लेकर रोज सुनवाई हो रही है। अयोध्या भूमि विवाद मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को 5वें दिन सुनवाई हुई। बेंच ने पिछली सुनवाई में रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन से पूछा था- क्या श्रीराम का कोई वंशज अयोध्या या दुनिया में है? इसके जवाब में सीएस वैद्यनाथन ने कहा था कि हमें जानकारी नहीं है।
 
 
उनके इस बयान के बाद जयपुर राजघराने की दीयाकुमारी ने खुद को श्री राम के बड़े बेटे कुश के वंशज होने का दावा किया था और फिर मेवाड़ के राजघराने भी इसका दावा किया। हालांकि संपूर्ण भारत में राम के वंशज आज भी है। उत्तर प्रदेश और राजस्थान में ऐसे कई मुस्लिम समाज है जो खुद को राम का वंशज मानते हैं। दरअसल, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक राम के वंशजों के बारे में आसानी से जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
 
 
5वें दिन की सुनवाई में रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने बेंच से कहा, '1949 में मूर्ति रखे जाने से पहले भी जन्मभूमि हिन्दुओं के लिए पूजनीय थी। सालों से हिंदू वहां पर दर्शन के लिए आते हैं। किसी स्थान के पूजनीय होने के लिए सिर्फ मूर्ति की जरूरत नहीं है। हम गंगा और गोवर्धन पर्वत का भी उदाहरण ले सकते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में लिखा है कि 1949 के बाद बाबरी मस्जिद में कभी नमाज अदा नहीं की गई। अयोध्या मामले में गवाह हाशिम अंसारी ने कहा था कि अयोध्या हिंदुओं के लिए वैसे ही पवित्र है जैसे कि मुसलमानों के मक्का है।
 
 
वैद्यनाथन ने एक सवाल के जवाब में कहा कि हां। मंदिर का ढांचा तोड़ने के बाद भी श्रद्धालु बने रहे। इतिहासकार पी. कार्नेजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस तरह मुस्लिमों के लिए मक्का है, वैसे ही हिंदुओं के लिए अयोध्या है। जन्मस्थान देवता है और देवता का बंटवारा नहीं हो सकता। 
 
मतलब यह कि वैद्यनाथन ने इतिहासकार पी. कार्नेजी और हाशिम अंसारी उल्लेख किया जिसमें अयोध्या को हिन्दुओं का मक्का कहा था। अब सवाल यह है कि क्या यह बात सही है?
 
इस जवाब के पहले यह समझना होगा कि मक्का क्या है? 
 
काबा बैतुल्लाह शरीफ :
मक्का एक बहुत ही प्राचीन शहर है। मक्का सऊदी अरब के हेजाज प्रांत की राजधानी एवं 'पैगम्बर मुहम्मद साहब' का जन्म स्थान होने के कारण मुस्लिम जनता का विश्वविख्यात तीर्थ है। लेकिन यहां पैगम्बर मुहम्मद साहब के जन्म स्थान से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण जगह है काबा। समूची दुनिया के मुसलमान इस काबा की ही परिक्रमा करने के लिए हज करते हैं। प्राचीनकाल में मक्का व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र था। यहां पर स्थित काबा का अस्तित्व भी इसी शहर जितना ही प्राचीन है।
 
 
काबा को अल्लाह (ईश्‍वर) का घर कहा जाता है। इसे बैतुल्लाह शरीफ कहा जाता है। कहते हैं कि इसे पैगंबर अलै. इब्राहिम ने पुनर्निर्माण करवाया था। इससे पहले पैगंबर अलै. आदम ने इसे बनाया था। मतलब यह कि मक्का मूल रूप से व्यापारिक केंद्र और बैतुल्लाह शरीफ रहा है। बैतुल्लाह शरीफ तीनों धर्मों (यहूदी, ईसाई और मुस्लिम) का पवित्र स्थान है। यह एकमात्र स्थान है जहां पर वर्तमान में दुनियाभर के मुस्लिम इबादत के लिए एकजुट होते हैं। प्राचीनकाल में यहां संपूर्ण अरब और अफ्रीका के लोग व्यापार और इबादत के लिए आते थे।

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काशी विश्वनाथ है काबा की तरह-
बैतुल्लाह शरीफ की ही तरह भारत में यदि कोई स्थान है तो वह है काशी। काशी को बनारस और वाराणसी भी कहते हैं। यह दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है। शहरों और नगरों में बसाहट के अब तक प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर एशिया का सबसे प्राचीन शहर वाराणसी को ही माना जाता है। विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है।
 
 
भारत के उत्तरप्रदेश में स्‍थित काशी नगर भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसा है। पुराणों के अनुसार पहले यह भगवान विष्णु की पुरी थी, जहां श्रीहरि के आनंदाश्रु गिरे थे, वहां बिंदुसरोवर बन गया और प्रभु यहां बिंधुमाधव के नाम से प्रतिष्ठित हुए। महादेव को काशी इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने इस पावन पुरी को विष्णुजी से अपने नित्य आवास के लिए मांग लिया। तब से काशी उनका निवास स्थान बन गई। काशी में हिन्दुओं का पवित्र स्थान है 'काशी विश्वनाथ'।
 
 
भगवान बुद्ध और शंकराचार्य के अलावा रामानुज, वल्लभाचार्य, संत कबीर, गुरु नानक, तुलसीदास, चैतन्य महाप्रभु, रैदास आदि अनेक संत इस नगरी में आए। एक काल में यह हिन्दू धर्म का प्रमुख सत्संग और शास्त्रार्थ का स्थान बन गया था। काशी सप्तपुरियों में से एक है।
 
अयोध्या है ईश्वर का नगर-
काशी के बाद नंबर आता है अयोध्या का। अयोध्या में मस्जिद के नीचे जो मंदिर के अवशेष पाए गए हैं वह पुरात्ववेत्ताओं के अनुसार 1300 ईसा पूर्व के हैं। अयोध्या को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। स्कंदपुराण के अनुसार अयोध्या शब्द ‘अ’ कार ब्रह्मा, ‘य’ कार विष्णु है तथा ‘ध’ कार रुद्र का स्वरूप है।
 
 
सरयू नदी के तट पर बसे इन नगर को रामायण अनुसार 'मनु' ने बसाया था। यहां कई महान योद्धा, ऋषि-मुनि और अवतारी पुरुष हो चुके हैं। भगवान राम ने भी यहीं जन्म लिया था। जैन मत के अनुसार यहां आदिनाथ सहित पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। 
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मथुरा है योगेश्वर की नगरी-
अयोध्या के बाद तीसरा प्रमुख केंद्र है मथुरा। मथुरा यमुना नदी के तट पर बसा एक सुंदर शहर है। यहां पर से 500 ईसा पूर्व के प्राचीन अवशेष मिले हैं। यहां पहला मंदिर 80-57 ईसा पूर्व बनाया गया था। इस संबंध में महाक्षत्रप सौदास के समय के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि किसी 'वसु' नामक व्यक्ति ने यह मंदिर बनाया था। इसके बहुत काल के बाद दूसरा मंदिर सन् 800 में विक्रमादित्य के काल में बनवाया गया था। 
 
मथुरा में बने भव्य मंदिर को देखकर लुटेरा महमूद गजनवी भी आश्चर्यचकित रह गया था। उसके मीर मुंशी अल उत्वी ने अपनी पुस्तक तारीखे यामिनी में लिखा है कि गनजवी ने मंदिर की भव्यता देखकर कहा था कि इस मंदिर के बारे में शब्दों या चित्रों से बखान करना नामुमकिन है। उसका अनुमान था कि वैसा भव्य मंदिर बनाने में दस करोड़ दीनार खर्च करने होंगे और इसमें दो सौ साल लगेंगे।
 
इस भव्य मंदिर को सन् 1017-18 ई. में महमूद गजनवी ने तोड़ दिया था। बाद में इसे महाराजा विजयपाल देव के शासन में सन् 1150 ई. में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने बनवाया। यह मंदिर पहले की अपेक्षा और भी विशाल था जिसे 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा डाला।
 
 
प्रयाग है प्रभु की नगरी- 
इस देवभूमि का प्राचीन नाम प्रयाग ही था, लेकिन जब मुस्लिम शासक अकबर यहां आया और उसने इस जगह के हिंदू महत्व को समझा, तो उसने इसका नाम 1583 में बदलकर 'अल्लाह का शहर' रख दिया। मुगल बादशाह अकबर के राज इतिहासकार और अकबरनामा के रचयिता अबुल फज्ल बिन मुबारक ने लिखा है कि 1583 में अकबर ने प्रयाग में एक बड़ा शहर बसाया और संगम की अहमियत को समझते हुए इसे 'अल्लाह का शहर', इल्लाहावास नाम दे दिया। जब भारत पर अंग्रेज राज करने लगे तो रोमन लिपी में इसे 'अलाहाबाद' लिखा जाने लगा, जो बाद में बिगड़कर इलाहाबाद हो गया।
 
 
गंगा, यमुना और सरस्वती का पवित्र संगम क्षेत्र प्रयागराज कोई नगर नहीं था बल्कि तपोभूमि था। यहां ऋषि भारद्वाज का आश्रम था। पहले भारद्वाज आश्रम से झूंसी तक गंगा का क्षेत्र था। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि ''रेवा तीरे तप: कुर्यात मरणं जाह्नवी तटे।'' अर्थात, तपस्या करना हो तो नर्मदा के तट पर और शरीर त्यागना हो तो गंगा तट पर जाएं। गंगा के तट पर प्रयागराज, हरिद्वार, काशी आदि तीर्थ बसे हुए हैं। उसमें प्रयागराज का बहुत महत्व है। पृथ्वी को बचाने के लिए भगवान ब्रह्मा ने यहां पर एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था। इस यज्ञ में वह स्वयं पुरोहित, भगवान विष्णु यजमान एवं भगवान शिव उस यज्ञ के देवता बने थे। 
 
ज्ञात इतिहास के अनुसार यह भू-भाग पर महाभारत काल के इन्द्रप्रस्थ की तरह विद्यमान रहा है जो 3000 ईसा पूर्व था। 600 ईसा पूर्व में वर्तमान प्रयागराज जिला के भागों को आवृत्त करता हुआ एक राज्य था। इसे 'कौशाम्बी' की राजधानी के साथ "वत्स" कहा जाता था। जिसके अवशेष आज भी प्रयागराज के पश्चिम में स्थित है। महात्मा गौतम बुद्ध ने इस पवित्र नगरी की तीन बार यात्राएं की थी। इससे सिद्ध होता है कि तब यह क्षेत्र एक नगर के रूप में विकसित था।
 
 
निष्कर्ष : काशी, अयोध्या, मथुरा और प्रयाग के अलावा हिन्दुओं के लिए और भी पवित्र और प्राचीन शहर हैं। जैसे कांची, प्रभास क्षेत्र, अवंतिका, हरिद्वार, द्वारिका और जगन्नाथ पुरी। लेकिन यदि कोई सबसे महत्वपूर्ण है तो वह है काशी विश्वनाथ, अयोध्या, मथुरा और हरिद्वार। ये चार स्थान हिन्दुओं के लिए सबकुछ है।

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