Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

देवी गंगा किसकी पुत्री और किसकी पत्नी थीं?

Advertiesment
हमें फॉलो करें devi ganga

अनिरुद्ध जोशी

गंगा क्या है? नदी या देवी? सचमुच गंगा के बारे में जानना बहुत जरूरी है। नदी है तो फिर देवी कैसे और देवी है तो फिर नदी कैसे? दरअसल, भारत में प्रत्येक नदी को देवीतुल्य माना गया है, क्योंकि उसी से संपूर्ण भारत में अन्य-जल उत्पन्न होता है। वही है जो मानव जीवन को संभाले हुए है। नदी है तो जीवन है। निश्चित ही तब ऐसे में किसी नदी का नामकरण किसी देवी पर ही रखा जाएगा। गंगा के बारे में हमें पुराणों में कई कहानियां मिलती है। आओ उन्हीं में से कुछ को जानते हैं।
 
 
गंगा की उत्पत्ति कथा- 
कहते हैं कि गंगा देवी के पिता का नाम हिमालय है जो पार्वती के पिता भी हैं। जैसे राजा दक्ष की पुत्री माता सती ने हिमालय के यहां पार्वती के नाम से जन्म लिया था उसी तरह माता गंगा ने अपने दूसरे जन्म में ऋषि जह्नु के यहां जन्म लिया था।
 
 
यह भी कहा जाता है कि गंगा का जन्म ब्रह्मा के कमंडल से हुआ था। मतलब यह कि गंगा नामक एक नदी का जन्म। एक अन्य कथा के अनुसार ब्रह्माजी ने विष्णुजी के चरणों को आदर सहित धोया और उस जल को अपने कमंडल में एकत्र कर लिया। भगवान विष्णु के अंगूठे से गंगा प्रकट हुई अतः उसे विष्णुपदी कहां जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार गंगा पर्वतों के राजा हिमवान और उनकी पत्नी मीना की पुत्री हैं, इस प्रकार वे देवी पार्वती की बहन भी हैं। कुछ जगहों पर उन्हें ब्रह्मा के कुल का बताया गया है।
 
 
गंगा की कहानी नंबर-1
यह तो सभी जानते हैं कि भगवान राम के पूर्वज इक्ष्वाकु वंशी राजा भगीरथ के प्रयासों से ही गंगा नदी स्वर्ग से धरती पर आई थी। लेकिन उन्हें स्वर्ग से धरती पर गंगा को लाने के लिए तपस्या करना पड़ी थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने - 'राजन! तुम गंगा का पृथ्वी पर अवतरण तो चाहते हो? परंतु क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार तथा वेग को संभाल पाएगी? मेरा विचार है कि गंगा के वेग को संभालने की शक्ति केवल भगवान शंकर में है। इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए।'
 
 
महाराज भगीरथ ने वैसे ही किया। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा। तब भगवान शंकर ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेटकर जटाएं बांध लीं। बाद में भगीरथ की आराधना के बाद उन्होंने गंगा को अपनी जटाओं से मुक्त कर दिया।
 
 
कहते हैं कि ब्रह्मचारिणी गंगा के द्वारा किए स्पर्श से ही महादेव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। पत्नी पुरुष की सेवा करती है अतः उसका वास पति के हृदय में अथवा चरणों मे होता है किंतु भगवती गंगा शिव के मस्तक पर विराजति है। भगवान विष्णु के अंगूठे से गंगा प्रकट हुई अतः उसे विष्णुपदी कहां जाता है। भगवान विष्णु के प्रसाद रूप में शिव ने देवी गंगा का पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
 
कहते हैं कि शंकर और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का गर्भ भी देवी गंगा ने धारण किया था। गंगा के पिता भी हिमवान है अतः वो पार्वती की बहन मानी जाती है। स्कंद पुराण के अनुसार, देवी गंगा कार्तिकेय (मुरुगन) की सौतेली माता हैं; कार्तिकेय वास्तव में शंकर और पार्वती के एक पुत्र हैं। पार्वती ने अपने शारीरिक मेल से गणेश की छवि का निर्माण किया, लेकिन गंगा के पवित्र जल में डूबने के बाद गणेश जीवित हो उठे। इसलिए कहा जाता है कि गणेश की दो माताएं हैं-पार्वती और गंगा और इसीलिए उन्हें द्विमातृ तथा गंगेय (गंगा का पुत्र) भी कहा जाता है।
 
 
ब्रह्म वैवर्त पुराण (2.6.13-95) के अनुसार, विष्णु की तीन पत्नियां हैं जिनकी आपस में बनती नहीं थी, इसलिए उन्होंने केवल लक्ष्मी को अपने साथ रखा और गंगा को शिवजी के पास तथा सरस्वती को ब्रह्माजी के पास भेज दिया।
 
गंगा की कहानी नंबर-2
पूर्व जन्म में राजा प्रतीप महाभिष थे। ब्रह्माजी की सेवा में वे उपस्थित थे। उस वक्त गंगा भी वहां पर उपस्थित थी। राजा महाभिष गंगा पर मोहित होकर उसे एकटक देखने लगे। गंगा भी उन पर मोहित होकर उन्हें देखने लगी। ब्रह्मा ने यह सब देख लिया और तब उन्हें मनुष्य योनि में दु:ख झेलने का श्राप दे दिया।
 
 
राजा महाभिष ने कुरु राजा प्रतीप के रूप में जन्म लिए और उससे पहले गंगा ने ऋषि जह्नु की पुत्री के रूप में। एक दिन पुत्र की कामना से महाराजा प्रतीप गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे। उनके तप, रूप और सौन्दर्य पर मोहित होकर गंगा उनकी दाहिनी जंघा पर आकर बैठ गईं और कहने लगीं, 'राजन! मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं। मैं जह्नु ऋषि की पुत्री गंगा हूं।'
 
इस पर राजा प्रतीप ने कहा, 'गंगे! तुम मेरी दाहिनी जंघा पर बैठी हो, जबकि पत्नी को तो वामांगी होना चाहिए, दाहिनी जंघा तो पुत्र का प्रतीक है अतः मैं तुम्हें अपने पुत्रवधू के रूप में स्वीकार कर सकता हूं।' यह सुनकर गंगा वहां से चली गईं।'
 
 
जब महाराज प्रतीप को पुत्र की प्राप्ति हुई तो उन्होंने उसका नाम शांतनु रखा और इसी शांतनु से गंगा का विवाह हुआ। गंगा से उन्हें 8 पुत्र मिले जिसमें से 7 को गंगा नदी में बहा दिया गया और 8वें पुत्र को पाला-पोसा। उनके 8वें पुत्र का नाम देवव्रत था। यह देवव्रत ही आगे चलकर भीष्म कहलाया।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi