Maharana Pratap Jayanti 2023: वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार उनका जन्म 9 मई को हुआ था। उनका जन्म कुंभलगढ़ के किले में हुआ था। मेवाड़ के वीरों के गौरवपूर्ण इतिहास का गवाह कुंभलगढ़ का किला राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है दूसरा चित्तौड़ का किला जिसे सबसे बढ़ा किला माना जाता है।
कुंभलगढ़ का किला | Kumbhalgarh ka kila durg
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चित्तौड़गढ़ किले के बाद कुंभलगढ़ का किला दूसरा सबसे बड़ा किला है। 2013 में इसे विश्व धरोहर में शामिल किया है।
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माना जाता है कि कुंभलगढ़ किले का सबसे पहले निर्माण सम्राट अशोक के पुत्र द्वारा कराया गया था।
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सबसे आखरी में इस किले का पुन: निर्माण राणा कुंभा ने कराया था। उनकी पत्नी का नाम कुंभल था।
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यह किला महाराणा प्रताप की जन्म स्थली, उदयसिंह के राज्याभिषेक और महाराणा कुंभा की हत्या का गवाह है।
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इसी किले में माता पन्नाधाय ने उदय सिंह की जान बचाई थी। उनका बेटा यही पर वीरगति को प्राप्त हुआ था।
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कुंभलगढ़ का यह किला 36 किमी लंबी दीवार से घिरा है। यह चीन की दीवार के बाद दूसरी सबसे बड़ी दीवार है।
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अजयगढ़ के नाम से प्रसिद्ध इस किले में प्रवेश द्वारा के अलावा और कही से घुसना संभव नहीं है।
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महाराणा प्रताप ने इसी किले में हल्दीघाटी के युद्ध की तैयारी की और समाप्ति के बाद इसी किले में रहे थे।
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इस किले के अंदर कई भव्य मंदिर और महल मौजूद हैं। कुंभ स्वामी का मंदिर और झाली रानी और बादल महल खास है।
चित्तौड़गढ़ का किला | kumbhalgarh kila durga
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यह किला राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है।
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चित्तौड़गढ़ में भारत के सबसे पुराने और भव्य किले देखने को मिलेंगे। उन्हीं किलों में से एक चित्तौड़ का किला है।
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यह किला बेराच नदी के किनारे स्थित जमीन से लगभग 500 फुट ऊंचाई वाली एक पहाड़ी पर बना हुआ है।
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इसे 'पानी का किला' भी कहा जाता है, क्योंकि यहां 84 पानी की जगहें हैं।
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चित्तौड़गढ़ का किला चित्तौड़गढ़-बूंदी रोड से लगभग 4 से 5 किमी की दूरी पर स्थित है।
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इस किले में 7 दरवाजे हैं जिनके नाम हिन्दू देवताओं के नाम पर पड़े हैं।
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प्रथम प्रवेश द्वार पैदल पोल के नाम से जाना जाता है, जिसके बाद भैरव पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोली पोल, लक्ष्मण पोल और अंत में राम पोल है, जो सन् 1459 में बनवाया गया था।
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किले की पूर्वी दिशा में स्थित प्रवेश द्वार को सूरज पोल कहा जाता है। इस किले में कई सुंदर मंदिरों के साथ-साथ रानी पद्मिनी और महाराणा कुम्भा के शानदार महल हैं। हालांकि इस किले के कई हिस्से अब खंडहर में बदल चुके हैं।
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लगभग 700 एकड़ के क्षेत्र में फैला चित्तौड़गढ़ का यह किला राजपूत शौर्य के इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान रखता है।
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यह किला 7वीं से 16वीं शताब्दी तक सत्ता का एक महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था। इस किले पर 3 बार आक्रमण किए गए।
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पहला आक्रमण सन् 1303 में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा, दूसरा सन् 1535 में गुजरात के बहादुरशाह द्वारा तथा तीसरा सन् 1567-68 में मुगल बादशाह अकबर द्वारा किया गया था।