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Indian Navy Day : प्राचीन पौराणिक काल में कैसी थी भारत की जल सेना की शक्ति

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अनिरुद्ध जोशी

, शनिवार, 3 दिसंबर 2022 (16:22 IST)
4 दिसंबर को भारतीय नौसेना दिवस मनाया जाता है। आधुनिक भारतीय नौसेना का गठन छत्रपति शिवाजी महाराज किया था लेकिन बाद में अंग्रेजों से इसकी विधिवत स्थापना की थी। लेकिन प्राचीन या पौराणिक काल के भारतीयों का समुद्र से गहरा संबंध था। प्राचीन भारत के समुद्र स्थित राज्यों के राजाओं के पास अपनी एक अलग ही नौसेना शक्ति होती थी। इस जल सेना का वर्षण हमें प्राचीन भारत के इतिहास और पुराणों में मिलता है। आओ जानते हैं प्राचीन भारतीय समुद्र शक्ति के बारे में।
 
- भारत में शिवजाजी के पहले दक्षिण भारतीयों में चोल और चालुक्य वंश के राजाओं के पास विश्‍व की सबसे शक्तिशाली नौसेना थी। इसका इतिहास में वर्णन मिलता है।
 
- ईसा पूर्व चतुर्थ शताब्दी में भारत अभियान से लौटते समय सिंकदर महान् के सेनापति निआर्कस (Nearchus) ने अपनी सेना को समुद्रमार्ग से स्वदेश भेजने के लिये भारतीय जहाजों का बेड़ा एकत्रित किया था। ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी में निर्मित सांची स्तूप के पूर्व तथा पश्चिमी द्वारों पर अन्य मूर्तियों के मध्य जहाजों की प्रतिकृतियां भी हैं।
 
 
- भारतवासी जहाजों पर चढ़कर जलयुद्ध करते थे, यह ज्ञात वैदिक साहित्य में तुग्र ऋषि के उपाख्यान से, रामायण में कैवर्तों की कथा से तथा लोकसाहित्य में रघु की दिग्विजय से स्पष्ट हो जाती है।भारत में सिंधु, गंगा, सरस्वती और ब्रह्मपुत्र ऐसी नदियां हैं जिस पर पौराणिक काल में नौका, जहाज आदि के चलने का उल्लेख मिलता है।
 
 
- भारत में नौवहन की कला और नौवहन का जन्‍म 6,000 वर्ष पहले सिंध नदी में हुआ था। ऋग्वेद में नौका द्वारा समुद्र पार करने के कई उल्लेख मिलते हैं। एक सौ नाविकों द्वारा बड़े जहाज को खेने का उल्लेख भी मिलता है। 
 
- ऋग्वेद में सागर मार्ग से व्यापार के साथ-साथ भारत के दोनों महासागरों (पूर्वी तथा पश्चिमी) का उल्लेख है जिन्हें आज बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर कहा जाता है। 
 
- अथर्ववेद में ऐसी नौकाओं का उल्लेख है जो सुरक्षित, विस्तारित तथा आरामदायक भी थीं। 
 
- ऋग्वेद में सरस्वती नदी को ‘हिरण्यवर्तनी’ (सु्वर्ण मार्ग) तथा सिन्धु नदी को ‘हिरण्यमयी’ (स्वर्णमयी) कहा गया है। सरस्वती क्षेत्र से सुवर्ण धातु निकाला जाता था और उस का निर्यात होता था। इसके अतिरिक्त अन्य वस्तुओं का निर्यात भी होता था। 
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- भारत के लोग समुद्र के मार्ग से मिस्र के साथ इराक के माध्यम से व्यापार करते थे। तीसरी शताब्दी में भारतीय मलय देशों (मलाया) तथा हिन्द चीनी देशों को घोड़ों का निर्यात भी समुद्री मार्ग से करते थे।
 
 
- संस्कृत ग्रंथ ‘युक्तिकल्पत्रु’ में नौका निर्माण का ज्ञान है। इसी का चित्रण अजन्ता गुफाओं में भी विध्यमान है। इस ग्रंथ में नौका निर्माण की विस्तृत जानकारी मिलती है। जैसे, किस प्रकार की लकड़ी का प्रयोग किया जाए, उन का आकार और डिजाइन कैसा हो, उसको किस प्रकार सजाया जाए ताकि यात्रियों को अत्याधिक आराम हो। युक्तिकल्पत्रु में जलवाहनों की वर्गीकृत श्रेणियां भी निर्धारित की गई हैं।
 
 
- कुछ विद्वानों का मत है कि भारत और शत्तेल अरब की खाड़ी तथा फरात (Euphrates) नदी पर बसे प्राचीन खल्द (Chaldea) देश के बीच ईसा से 3,000 वर्ष पूर्व जहाजों से आवागमन होता था। भारत के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में जहाज और समुद्रयात्रा के अनेक उल्लेख है (ऋक् 1. 25. 7, 1. 48. 3, 1. 56. 2, 7. 88. 3-4 इत्यादि)। याज्ञवल्क्य सहिता, मार्कंडेय तथा अन्य पुराणों में भी अनेक स्थलों पर जहाजों तथा समुद्रयात्रा संबंधित कथाएं और वार्ताएं हैं। मनुसंहिता में जहाज के यात्रियों से संबंधित नियमों का वर्णन है।
 
 
- पहली बार भारत ने ही नदी में नाव और समुद्र में जहाजों को उतारा था। रामायण के अनुसार रावण के पास वायुयानों के साथ ही कई समुद्र जलपोत भी थे। रामायण में केवट प्रसंग आता है। 
 
- राम को जब वनवास हुआ तो वाल्मीकि रामायण और शोधकर्ताओं के अनुसार वे सबसे पहले तमसा नदी पहुंचे, जो अयोध्या से 20 किमी दूर है। इसके बाद उन्होंने गोमती नदी पार की और प्रयागराज (इलाहाबाद) से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था। 
 
- महाभारत और उससे जुड़े ग्रंथों में यह उल्लेख मिलता है कि यमुना में बड़ी बड़ी नावें चलती थी। इन नावों के माध्यम से ही श्रीकृष्ण और बलराम द्वारिका से मथुरा आते थे और मथुरा से द्वारिका जाते थे। बीच में उन्हें सरस्वती नदी में ही नावों से सफर करना होता था। प्राचीन काल में यमुना और सरस्वती नदी का स्वरूप अलग और विशालकाय था।

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