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ऐसा कौन सा हिन्दू राजा है जिसने किया था चीन पर भी शासन?

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, शुक्रवार, 23 जून 2023 (12:43 IST)
Kushan empire : कुषाण कौन थे यह ‍भी शोध का विषय है, लेकिन उनमें से कुछ पारसी थे और भारत में रहने वाले हिन्दू और बौद्ध थे। कुषाणों के बारे में मथुरा के इतिहासकार मानते हैं कि वे शिव के उपासक और कुष्मांडा जाति के थे। इस जाति के लोग प्राचीन काल में भारत से बाहर जाकर बस गए थे और जब वे शक्तिशाली बन गए तो उन्होंने भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार किया। गुर्जर इतिहासकार उसे गुर्जर मानते हैं।
 
सम्राट कनिष्क प्रथम (127 ई. से 140-50 ई. लगभग) : कुषाणों में सबसे शक्तिशाली सम्राट हुआ कनिष्क। अफगानिस्तान के बच्चों के नाम और उनके यहां के स्थानों के नाम आज भी कनिष्क के नाम पर मिल जाएंगे। सम्राट कनिष्क का राज्य कश्मीर से उत्तरी सिन्ध तथा पेशावर से सारनाथ के आगे तक फैला था। कुषाण राजाओं में क्रमश: कुजुल कडफाइसिस, विम तक्षम, विम कडफाइसिस, कनिष्क प्रथम, वासिष्क, हुविष्क, वासुदेव कुषाण प्रथम, कनिष्क द्वितीय, वशिष्क, कनिष्क तृतीय और वासुदेव कुषाण द्वितीय का नाम प्रमुख है। 151 ईस्वी में कनिष्क की मृत्यु हो गई थी।
 
कनिष्क का साम्राज्य बहुत विस्तृत था। उसकी उत्तरी सीमा चीन के साथ छूती थी। चीन की सीमा तक विस्तृत विशाल कुषाण के लिए कनिष्क ने एक नए कुसुमपुर (पाटलीपुत्र) की स्थापना की और उसे 'पुष्पपुर' नाम दिया। यही आजकल का पेशावर है, जो अब पाकिस्तान में है। पेशावर में कनिष्क ने एक प्रमुख एक स्तूप बनाया था। महाराज हर्षवर्धन के शासनकाल (7वीं सदी) में जब प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्यू-एन-त्सांग भारत भ्रमण करने के लिए आया, तो इस विशाल स्तूप को देखकर वह आश्चर्यचकित रह गया था।
 
उल्लेखनीय है कि कनिष्क ने भारत में कार्तिकेय की पूजा को आरंभ किया और उसे विशेष बढ़ावा दिया। उसने कार्तिकेय (शिव के पुत्र) और उसके अन्य नामों- विशाख, महासेना और स्कंद का अंकन भी अपने सिक्कों पर करवाया। माना जाता है कि इराक के यजीदी लोग भी कार्तिकेय की पूजा करते हैं और उनका संबंध भी कनिष्क से था।
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कनिष्का का चीन से संघर्ष : ऐसा भी माना जाता है कि यूची कबीले से निकली यूची जाति ने भारत में कुषाण वंश की स्थापना की। इसी वंश का प्रमुख राजा कनिष्क था। हालांकि इतिहासकारों में इसको लेकर मतभेद है परंतु यह स्पष्ट है कि वह पहले हिन्दू धर्म का उपासक था बाद में उसने बौद्ध धर्म अपना लिया था। कनिष्क केवल उत्तरी भारत की विजय से ही संतुष्ट नहीं था। उसने चीन के सुप्रसिद्ध सेनापति पान-चाऊ के समक्ष चीन के सम्राट की कन्या से विवाह का प्रस्ताव रखा। चीने के सेनापति ने इसे अपने सम्राट का अपमान माना और तब कनिष्क का चीन के साथ युद्ध हुआ। इस युद्ध में कनिष्क की पराजयी हुई परंतु वह निराश नहीं हुआ और उसने दोगुनी ताकत से चीन पर हमला करके उसने चीन के प्रदेशों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। खोतान और यारकन्द के प्रदेश इसी युद्ध में विजय होने के कारण कुषाणों के साम्राज्य में सम्मिलित हुए।
 
कनिष्क की मृत्यु के बाद कुषाण साम्राज्य कमजोर होने लगा तो भारत के शकों ने अधिपत्य को अस्वीकार किया और वे स्वतंत्र होकर रहने लगे। गुजरात, सौराष्ट्र और मालवा के कुछ भाग पर पुन: शकों का अधिकार था तो गांधार, सिंध इत्यादि पर कुषाणों ही अधिकार रहा। इस तरह शकों का सम्राज्य 123 ईपू से 200 ईस्वी तक चलता रहा और उसके बाद चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने फिर से वही कार्य किया जो कि महान सम्राट शाकारी विक्रमादित्य ने किया था। चंद्रगुप्त के बाद सबसे महान सम्राट हुए जिनका नाम था समुद्र गुप्त।
 
पाटलिपुत्र के छोटे से राज्य के शासक समुद्र गुप्त ने उत्तर भारत के सभी छोटे बड़े राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लिया और वे अब पश्‍चिम की ओर बढ़ने लगे थे। इससे पहले की वह कुषाणों पर हमले करते, कुषाणों ने खुद होकर उसका विवाह अपनी कन्या से करवाते हुए उनकी शरणागति ली और इस प्रकार कुषाण हमेशा के लिए हिंदुत्व में विलीन हो गए। समुद्रगुप्त के बाद चन्द्रगुप्त द्वितीय ने राज्य संभाला।

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