रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदासजी उत्तर भारत के विदेशी तुर्क मुगल बादशाह अकबर के शासन क्षेत्र में रहते थे। एक बार अकबर को यह पता चला कि तुलसीदासजी ने किसी मृत व्यक्ति को जिंदा कर दिया है। यह सुनकर उन्हें इस बात पर विश्वास नहीं हुआ और उन्होंने बीरबल से इस बारे में पूछा। बीरबल ने बताया कि उन्होंने रामचरित मानस लिखी है। वे एक पहुंचे हुए कवि हैं। यह सुनकर बादशाह ने तुलसीदाजी को अपने सामने हाजिर होने का फरमान भेजा।
अकबर के सैनिकों ने तुलसीदासजी के पास जाकर कहा कि बादशाह ने तुम्हें हाजिर होने को कहा है। तुलसीदाजी ने कहा कि मेरे तो एक ही बादशाह है प्रभु श्रीराम। मैं तो भगवान श्रीराम का भक्त हूं मुझे किसी बादशाह या लालकिले से क्या लेना-देना। तुलसीदाजी ने वहां जाने से साफ मना कर दिया।
जब यह बात बादशाह को पता चली तो उसने तुलसीदासजी को बंदी बनाकर उसके सामने पेश करने को कहा। तुलसीदाजी को जंजीरों में जकड़कर अकबर के सामने पेश किया गया। अकबर ने कहा कि मैं बादशाह हूं और तुम्हें नहीं मालूम की एक बादशाह के सामने सिर झुकाकर खड़े रहते हैं। यह सुनकर तुलसीदासजी ने कहा कि मेरा सिर को मेरे प्रभु श्रीराम के सामने ही झुकता है क्योंकि वे ही तीनों जहां के मालिक हैं।
यह सुनकर बादशाह अकबर क्रोधित हो गया और उसने कहा कि हम चाहे तो अभी तुम्हारा सिर कलम कर सकते हैं या तुम्हें बंदी बनाकर कारागार में डाल सकते हैं। देखते हैं कि फिर तुम्हारे प्रभु श्रीराम तुम्हें कैसे बचाते हैं? इस पर तुलसीदाजी ने कहा कि मेरे प्रभु श्रीराम को मुझे बचाने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह तो बहुत छोटा सा काम है। यह काम तो प्रभु श्रीराम के भक्त हनुमानजी ही कर देंगे।
यह सुनकर अकबर और भी क्रोधित होकर बोला सिपाहियों इस दुष्ट को कारागार में डाल दो। यह सुनकर जंजीर में जकड़े तुलसीदासजी को सैनिक जंजीरों से खिंचने लगे तभी तुलसीदासजी ने हनुमानजी का स्मरण किया और उनके मुख से हनुमान चालीसा निकलने लगी।
अकबर ने पूछा ये क्या बोल रहा है। तब बीरबल ने कहा कि यह हनुमानजी से प्रार्थना कर रहा है। तुलसीदासजी हनुमान चालीसा पढ़ ही रहे थे कि तभी थोड़ी देर में ही वहां पर लाखों बंदरों ने एकसाथ हमला बोल दिया। अचानक हुए इस हमले को देखकर सारे सैनिक घबरा गए और इधर-उधर भागने लगे।
अकबर को भी अपनी जान बचाने के लिए ऊपर गलियारे में भागना पड़ा। अकबर ने बीरबल से पूछा, ये क्या हो रहा है ये अचानक इतने सारे बंदर कहां से आ गए। तब बीरबल ने कहा कि महाराज ये वानर सेना है। तुलसीदाजी की रक्षा के लिए आई है। अब इन बंदरों का गुस्सा तब तक शांत नहीं होगा जब तक हम तुलसीदासजी ने माफी नहीं मांग लेते। हमारा यहां से बचकर भागना मुश्किल है। हुजूर आप करिश्मा देखना चाहते थे तो देखिये श्रीराम भक्त हनुमानजी का करिश्मा।
यह सुनकर अकबर घबरा गया और तुलसीदासजी से क्षामा मांगने लगा। तुलसीदासजी ने कहा कि मैं क्षमा करने वाला कौन हूं। मैं तो अपने प्रभु का दास हूं।...बाद में अकबर ने तुलसीदासजी को सम्मान उन्हें लाव-लश्कर के साथ मथुरा भिजवा दिया।
कहते हैं कि बाद में हनुमानजी ने तुलसीदाजी के सामने प्रकट होकर कहा कि, तुमने मेरे प्रति जो स्तुति पढ़ी है, वह अद्भुत है। आज के बाद जो भी यह चालीसा बढ़ेगा में उस राम भक्त की रक्षा के लिए उपस्थित हो जाऊंगा। इस चालीसा को हनुमान चालीसा के नाम से जाना जाएगा।
उल्लेखनीय है कि ऐसा भी कहा जाता है कि अकबर ने तुलसीदाजी ने उसकी प्रशंसा में कुछ ग्रंथ लिखने और चमत्कार दिखाने के लिए कहा था। लेकिन उन्होंने ऐसा करना से मना कर दिया था. इसके बाद अकबर ने उन्हें बंदी बना लिया था। तब तुलसीदासजी ने अकबर के कारागार में ही हनुमान चालीसा लिखी और उसका निरंतर पाठ किया। कहा जाता है कि हनुमान चालीसा के कई बार पाठ के बाद अकबर के महल परिसर और शहर में अचानक बंदरों ने हमला कर दिया और जब अकबर को इस बात का पता चला तो तुलसीदास जी को रिहा करने का आदेश दे दिया।