महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के शेगांव में गजानन महाराज की समाधि है। समाधि स्थल पर प्रतिदिन लगभग 25 से 30 हजार लोग दर्शन करने आते हैं। मान्यता है कि भारत में एकमात्र ऐसा समाधि स्थल है जहां किसी भी वीआईपी के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं है। सभी को लाइन में खड़े रहकर ही दर्शन करना होंगे। शायद तभी वीआईपी लोग गजानन महाराज के दरबार में कम ही जाते हैं। आओ जानते हैं गजानन महाराज के बारे में 10 खास बातें।
1. संत श्री गजानन महाराज को पहली बार शेगांव में 23 फरवरी 1878 में बनकट लाला और दामोदर नामक दो व्यक्तियों ने देखा। एक श्वेत वर्ण का सुंदर बालक झूठी पत्तल में से चावल खाते हुए 'गं गं गणात बूते' का उच्चारण कर रहा था। 'गं गं गणात बूते' का उच्चारण करने के कारण ही उनका नाम गजानन पड़ा। हालांकि इस बार प्रकटोत्सव 13 फरवरी सोमवार 2023 को मनाया जाएगा।
2. गजानन महाराज का प्राकट्य- गजानन महाराज का जन्म कब हुआ, उनके माता-पिता कौन थे, इस बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं।
3. एक बार जब महाराज दिगंबर होकर तपस्या कर रहे थे तब एक स्त्री उन पर मोहित होकर उनके पास गई, लेकिन उसने देखा कि महाराज के तेज से नीचे रखी घास भस्म हो गई है। उस स्त्री को महाराज के प्रति गलत भाव रखने का बहुत पछतावा हुआ और उसने उनसे क्षमा मांगी।
4. गजानन महाराज के चित्र में उन्हें चिलम पीते हुए दिखाया जाता है। गजानन महाराज नियमित चिलम पीया करते थे, लेकिन उन्हें चिलम पीने की लत नहीं थी। माना जाता है कि वे अपने बनारस के भक्तों को खुश करने के लिए चिलम पीया करते थे।
5. गजानन महाराज चमत्कारी महापुरुष थे। उनके कई चमत्कारों को भक्तों ने प्रत्यक्ष देखा है।
6. एक बार महाराज आंगन कोट में भ्रमण कर रहे थे। तेज गर्मी के कारण उन्हें प्यास लगी। उन्होंने वहां से गुजर रहे भास्कर पाटिल से पानी मांगा, लेकिन उसने पानी देने से मना कर दिया। तभी महाराज को वहां कुआं दिखा, जो 12 वर्षों से सूखा पड़ा था। महाराज कुएं के पास जाकर बैठ गए और ईश्वर का जाप करने लगे। जाप के तप से कुआं पानी से भर गया। इस तरह बहुत से चमत्कार उनके भक्तों के बीच प्रसिद्ध है।
7. शेगांव के गजानन महाराज नाथ संप्रदाय के बहुत ही पहुंचे हुए दिगंबर संत थे। समाधि के करीब एक माह पूर्व उन्होंने पंढरपुर में श्रीविठ्ठल के समक्ष समाधि लेने का निर्णय लिया। समाधि लेने का विचार जब उन्होंने भक्तों को बताया तो उनके भक्तों में उदासी छा गई, लेकिन उन्होंने सभी को समझाया और समाधि का दिन नियुक्त किया।
8. गजानन महाराज ने अपनी समाधि का स्थान व समय अपने सभी भक्तों को बताया और उन्हें उपस्थित रहने को कहा। वह गणेश चतुर्थी का दिन था। उस पूरे दिन महाराज बहुत प्रसन्न थे और उन्होंने अपने भक्तों से बातें की और उन्हें समझाया कि वे सादा उनके साथ रहेंगे और अंत में बाळा भाऊ को अपने करीब बैठने के लिए कहा और 'जय गजानन' कहते हुए अंतिम सांस ली।
9. मान्यता अनुसार 8 सितंबर 1910 प्रात: 8 बजे उन्होंने शेगांव में समाधि ले ली। माना जाता है कि बाळा भाऊ की मृत्यु के उपरांत नंदुरगांव के नारायण के स्वप्न में महाराज ने दर्शन दिए और मठ की सेवा करने का आदेश दिया।
10. जहां बाबा ने समाधि ली थी वहां आज एक विशाल मंदिर है। यह मंदिर काफी विशाल परिसर में बना है तथा महाराज की सामधि के दर्शन करने के लिए लंबी कतर लगती है। मंदिर परिसर में गजानन महाराज की प्रतिमा के अलावा समाधि स्थान, पादुका, महाराज का चिमटा, औजार, चिलम पीने का स्थान (जो आज भी गर्म रहता है) और प्राचीन हनुमान प्रतिमा मौजूद है। मंदिर में व्यवस्था काफी अच्छी रखी गई है। बहुत से सेवक अनुशासनबद्ध तरीके से मंदिर की व्यवस्था को बनाए रखने में जुटे दिखाई देते हैं।
यहां पहुंचने के लिए : -
सड़क मार्ग : सड़क मार्ग से भी यह भारत के लगभग सभी बड़े शहरों से जुड़ा है।
रेल मार्ग : शेगांव में रेल्वे स्टेशन है। मध्य रेल्वे का यह रेल्वे स्टेशन मुंबई-कोलकाता रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है। महाराष्ट्र एक्सप्रेस, विधर्व एक्सप्रेस, नवजीवन एक्सप्रेस और हावड़ा-अहमदाबाद एक्सप्रेस कुछ खास ट्रेनें हैं जो शेगांव से होकर गुजरती है।
हवाई मार्ग : यहां के सबसे निकटतम हवाई अड्डा औरंगाबाद में है जहां से शेगांव लगभग 170 कि.मी दूर है।