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कर्दम ऋषि की 9 कन्याओं के जन्म की कथा, श्रीविष्णु ने भी लिया था पुत्र रूप में जन्म

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अनिरुद्ध जोशी

पुराणों अनुसार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र:- मन से मारिचि, नेत्र से अत्रि, मुख से अंगिरस, कान से पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ठ, अंगुष्ठ से दक्ष, छाया से कंदर्भ, गोद से नारद, इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन, सनतकुमार, शरीर से स्वायंभुव मनु, ध्यान से चित्रगुप्त आदि। आओ जानते हैं ऋषि कंदर्भ या कर्दम के बारे मं संक्षिप्त में जानकारी।
 
कर्दम ऋषि की कथा:
 
1. कर्दम ऋषि की उत्पत्ति छया से हुई थी। ये भी ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं। 
 
2. कर्दम ऋषि ने स्वयंभुव मनु की द्वितीय कन्या देवहूति से विवाह करके 9 कन्या तथा एक पुत्र की उत्पत्ति की।
 
3. कन्याओं के नाम कला, अनुसुइया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुन्धती और शान्ति तथा पुत्र का नाम कपिल था। 
 
4. कपिल को भगवान विष्णु के अवतार माना जाता है। वे 24 अवतारों के क्रम में शामिल हैं।
 
5. कर्दम ऋषि ने विवाह पूर्व सतयुग में सरस्वती नदी के किनारे भगवान विष्णु की घोर तपस्या की थी। उसी के फलस्वरूप भगवान विष्णु कपिलमुनि के रूप में कर्दम ऋषि के यहां जन्में।
 
6. कर्दम ऋषि विवाह नहीं करना चाहते थे परंतु भगवान विष्णु ने उन्हें देहहूति से विवाह करने को कहा। स्वायंभुव मनु एक दिन देवहुति को लेकर कर्दम ऋषि के आश्रम गए। स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा तो आसन पर बैठक गए परंतु देवहूति नहीं बैठी तो कर्दम ऋषि ने कहा कि देवी ये आपके लिए ही आसन बिछाया है आप यहां बैठे। देवहूति ने सोचा कि मैं अपने होने वाले पति के सामने उनके बिछाए आसन पर कैसे बैठ सकती हूं और नहीं बैठूंगी तो उनका अपमान होगा। यह सोचकर वह आसन पर अपना दाहिना हाथ रखकर आसन के पास बैठ गईं। यह देखकर कर्दम ऋषि ने सोचा कन्या विवाह योग्य है। इससे विवाह किया जा सकता है। इस तरह उनका विवाह हुआ। परंतु कर्दन ऋषि ने शर्त रखी थी कि पुत्र होने के बाद में ब्रह्मचर्य धारण करके संन्यास ले लूंगा। यह सुनकर भी देवहूति ने विवाह के लिए हां भर दी थी क्योंकि वह जानती थीं कि जिन ऋषि को भगवान विष्णु ने दर्शन दिए हैं उनके साथ कुछ समय रहना भी सौभाग्य है।
 
7. कर्दम ऋषि की नौ कन्याओं का जन्म और एक पुत्र का जन्म भी बड़ी विचित्र परिस्थिति में हुआ था। कहते हैं कि कर्दम ऋषि भूल ही गए थे कि उन्होंने विवाह किया है। वे आश्रम में रहकर संन्यासिरयों जैसा ही जी‍वन यापन करते थे। देवहूति उनकी सेवा करती थी। एक दिन कर्दम ऋषि ने कहा कि देवी मैं आपकी सेवा से प्रसन्न हूं, मांगों क्या मांगना चाहती हो। देवहूति ने कहा कि स्वामी! आप भूल गए कि आपने मुझे वचन दिया था पुत्र रत्न की प्राप्ति का। 
 
यह सुनकर कर्दम ऋषि ने योगबल से एक विमान का निर्माण किया जिसमें कई कमरे थे। सेवा करने के लिए कई दासियां भी थी। दोनों उसमें सवार होकर चल पड़े। विमान धरती का भ्रमण करता रहा। विमान में ही नौ कन्याओं का जन्म हुआ। तब कर्दम ऋषि ने कहा कि अब मैं संन्यास ले लूं। देवहूति ने कहा कि स्वामी! आपको संन्यास लेने से कौन रोक सकता है परंतु अभी भी आपका वचन पूरा नहीं हुआ है आपने पुत्र प्राप्त के बाद संन्यास लेने का कहा था और अब इन कन्याओं के विवाह भी तो करना है। इस तरह कर्दम ऋषि पुन: संसार में उलझ गए।
 
8. कहते हैं कि कला, अनुसुइया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुंधती तथा शान्ति का विवाह क्रमश: मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु, भृगु, वसिष्ठ तथा अथर्वा से सम्पन्न हुआ।

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