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आधुनिक भारत के वे 5 महान लोग जिन्हें मिली थी आसमानी सहायता

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अनिरुद्ध जोशी

आधुनिक भारत में यूं तो कई महान लोग हुए हैं जिनको किसी न किसी तरह से आसमानी अर्थात दैवीय सहायता प्राप्त होने के बात कही जाती है जिनके कारण वे महान बन गए। लेकिन हम यहां बताएंगे पांच ऐसे लोगों के बारे में जिन्होंने अध्यात्म की ऊंचाईया छूई थी।
 
 
1.महर्षि अरविंद घोष-
अरविंद महान योगी और दार्शनिक थे। वे बचपन से जवानी तक विदेश में ही पले बढ़े थे लेकिन जब भारत आए तो उनका जीवन बदल गया। पहले उन्होंने बंगाल में क्रांतिकारियों का साथ दिया और फिर खुद ही क्रांतिकारी बन गए जिसके चलते उन्हें 1908-09 में जेल हो गई। ऐसा कहा जाता है कि अरविन्द जब अलीपुर जेल में थे तब उन्हें साधना के दौरान भगवान कृष्ण के दर्शन हुए। कृष्ण की प्रेरणा से वह क्रांतिकारी आंदोलन को छोड़कर योग और अध्यात्म में रम गए।

 
2.जे. कृष्णमूर्ति-
अपने माता-पिता की आठवीं संतान के रूप में उनका जन्म हुआ था इसीलिए उनका नाम कृष्णमूर्ति रखा गया। कृष्णमूर्ति का जन्म 1895 में आंध्रप्रदेश के मदनापाली में मध्‍यवर्ग ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता थियोसौफिस्ट थे। उन्होंने कृष्णमूर्ति और उनके छोटे भाई नितिया को थियोसौफिकल सोसाइटी की अध्यक्ष डॉ. एनी बेसेन्ट को सौंप दिया था। एनी बेसेन्ट के एक सहयोगी डब्ल्यू लीडबीटर ने, जो दिव्य ‍दृष्टि वाले व्यक्ति थे, देखा की कृष्णमूर्ति में कुछ बात है ‍जो उन्हें सबसे अलग करती है तब कृष्णमूर्ति 13 वर्ष के थे। एनी बेसेंट ने उन्हें 'मुक्तिदाता' के रूप में चुना और फिर कृष्णमूर्ति पर प्रयोगथियोसॉफिकल सोसायटी द्वारा बुद्ध के अवतरण का एक प्रयोग किया गया जो कि असफल रहा। तब जे. कृष्णमूर्ति भारत के महान दार्शनिक बन गए।

 
3.रामकृष्ण परमहंस-
विवेकानंद के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस एक सिद्ध पुरुष थे। उन्हें कालीका माता साक्षात दर्शन देती थीं। हिंदू धर्म में परमहंस की पदवी उसे ही दी जाती है जो सच में ही सभी प्रकार की सिद्धियों से युक्त सिद्ध हो जाता है। उनका पूरा जीवन कठोर साधना और तपस्या में ही बीता। रामकृष्ण ने पंचनामी, बाउल, सहजिया, सिक्ख, ईसाई, इस्लाम आदि सभी मतों के अनुसार साधना की। बंगाल के हुगली जिले में स्थित कामारपुकुर नामक गांव में रामकृष्ण का जन्म 20 फरवरी 1836 ईस्वी को हुआ। 16 अगस्त 1886 को महाप्रयाण हो गया।

 
4.परमहंस योगानंद-
परमहंस योगानंद का जन्म 5 जनवरी 1893 को गोरखपुर (उत्तरप्रदेश) में हुआ। उनके माता-पिता महान क्रियायोगी लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे। लाहिड़ी महाशय एक सिद्ध योगी थे। परमहंस योगानंद 1920 में बोस्टन पहुंचे थे। उन्होंने लॉस एंजेलेस में ‘सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप’ की स्थापना की। उन्होंने प्रसिद्ध पुस्तक ‘ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी’ (एक योगी की आत्मकथा) लिखी। उनकी इस उत्कृष्ट आध्यात्मिक कृति हिंदी में 'योगी कथामृत' के नाम से उपलब्ध है। इस कृति की लाखों प्रतियां बिकीं और इसने सबसे ज्यदा बिकने वाली आध्यात्मिक आत्मकथा का रिकॉर्ड कायम किया है। इस पुस्तक में लिखा है कि उन्हे किस तरह दैवीय सहायताएं प्राप्त होती रही हैं।

 
5.श्रीराम शर्मा आचार्य-
शांति कुंज के संस्थापक श्रीराम शर्मा आचार्य ने हिंदुओं में जात-पात को मिटाने के लिए गायत्री आंदोलन की शुरुआत ‍की। जहां गायत्री के उपासक विश्वामित्र ने कठोर तप किया था उसी जगह उन्होंने अखंड दीपक जलाकर हरिद्वार में शांतिकुंज की स्थापना की। आपके एक सिद्ध गुरु हैं जो हिमालय में कहीं रहते हैं उन्हीं के सहयोग से श्रीराम शर्मा आचार्यजी ने बहुत महत्वपूर्ण कार्य संपन्न किए। शांतिकुंज, ब्रह्मवर्चस, गायत्री तपोभूमि, अखण्ड ज्योति संस्थान एवं युगतीर्थ आंवलखेड़ा जैसी अनेक संस्थाओं द्वारा युग निर्माण योजना का कार्य आज भी जारी है।
 
हालांकि और भी कई लोग हैं जिन्होंने दैवीय सहायता के बदल पर महान कार्य किए हैं- जैसे ओशो रजनीश, महर्षि महेश योगी, स्वामी प्रभुपादजी, एनी बेसेंट, स्वामी शिवानंद, स्वामी रामतीर्थ, दादा लेखराज, नीम करौली बाबा, आनंदमूर्ति, रमन महर्षि आदि।

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