मय दानव को मयासुर भी कहते हैं। यह बहुत ही शक्तिशाली और मायावी शक्तियों से संपन्न था। कहते हैं कि यह आज भी जीवित है। मय दावन के संबंध में 10 ऐसी रोचक बातें जिन्हें जानकर आप दंग रह जाएंगे।
1.अद्भुत वास्तुकार : विश्वकर्मा देवताओं के तो मय दानव असुरों के वास्तुकार थे। मय दानव हर तरह की रचना करना जानता था। मय विषयों का परम गुरु है। कहते हैं कि उस काल की आधी दुनिया को मय ने ही निर्मित किया था। ऐसा माना जाता है कि वह इतना प्रभावी और चमत्कारी वास्तुकार था कि अपने निर्माण के लिए वह पत्थर तक को पिघला सकता था।
2.महत्वपूर्ण निर्माता : मयासुर ने दैत्यराज वृषपर्वन् के यज्ञ के अवसर पर बिंदुसरोवर के निकट एक विलक्षण सभागृह का निर्माण कर प्रसिद्धि हासिल की थी। रामायण के उत्तरकांड के अनुसार रावण की खूबसूरत नगरी, लंका का निर्माण विश्वकर्मा ने किया था लेकिन यह भी मान्यता है कि लंका की रचना स्वयं रावण के श्वसुर और बेहतरीन वास्तुकार मयासुर ने ही की थी। महाभारत में उल्लेख है कि मय दानव ने पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नामक नगर की रचना भी की थी। यह भी कहा जाता है कि उसने द्वारिका के निर्माण में भी विश्वकर्मा का सहयोग किया था। उससे ही त्रिपुरासुर की नगरी का निर्माण किया था।
3. त्रिपुरासुकर को कर दिया था जिंदा : माया दानव ने सोने, चांदी और लोहे के तीन शहर जिसे त्रिपुरा कहा जाता है, का निर्माण किया था। त्रिपुरा को बाद में स्वयं भगवान शिव ने ध्वस्त कर दिया था। तारकासुर के लिए माया दानव ने इस तीनों राज्यों, त्रिपुरा का निर्माण किया था। तारकासुर ने ये तीनों राज्य अपने तीनों बेटों तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युनमाली को सौंप दिए थे। जब शंकर ने त्रिपुरों को भस्म कर असुरों का नाश कर दिया तब मयासुर ने अमृतकुंड बनाकर सभी को जीवित कर दिया था किंतु विष्णु ने उसके इस प्रयास को विफल कर दिया था।
4. इंद्र को सिखाई मायावी विद्या : ब्रह्मपुराण के अनुसार इंद्र द्वारा नमुचि (शुंभ और निशुंभ का भाई) का वध किए जाने के बाद मय ने इंद्र को पराजित करने के लिए घोर तपस्या करके असंख्य मायावी विद्याएं प्राप्त कर लीं। इससे इंद्र भयानकर तरीके से डर गया और वह ब्रह्मष का वेश बनाकर मय के पास पहुंच गया और छलपूर्वक मित्रता के लिए अनुरोध करने लगा और अंत में उसने अपना असली रूप प्रकट कर दिया। मित्रता से बंधे होने के कारण मय दानव ने इंद्र को अभयदान देकर उसे भी मायावी विद्याओं की शिक्षा दी।
5. अप्सराओं का पति और रावण पत्नी मंदोदरी का पिता : रामायण के उत्तरकांड के अनुसार माया दानव, कश्यप ऋषि और उनकी पत्नी दिति का पुत्र और असुर सम्राट रावण की पत्नी मंदोदरी का पिता था। इसकी दो पत्नियां- हेमा और रंभा थीं जिनसे पांच पुत्र तथा तीन कन्याएं हुईं। रावण की पत्नी मंदोदरी की मां हेमा एक अप्सरा थी और उसके पिता एक असुर। अप्सरा की पुत्री होने की वजह से मंदोदरी बेहद खूबसूरत थी, साथ ही वह आधी दानव भी थी।
6. खगोलविद मयदानव : मयासुर एक खगोलविद भी था। कहते हैं कि 'सूर्य सिद्धांतम' की रचना मयासुर ने ही की थी। खगोलीय ज्योतिष से जुड़ी भविष्यवाणी करने के लिए ये सिद्धांत बहुत सहायक सिद्ध होता है।
7. विमान और अस्त्र शस्त्र का मालिक : मय दानव के पास एक विमान रथ था जिसका परिवृत्त 12 क्यूबिट था और उस में चार पहिए लगे थे। इस विमान का उपयोग उसने देव-दानवों के युद्ध में किया था। देव- दानवों के इस युद्ध का वर्णन स्वरूप इतना विशाल है, जैसे कि हम आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों से लैस सैनाओं के मध्य परिकल्पना कर सकते हैं।
8. माया सभ्यता का जनक : मायासुर को दक्षिण अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता का जनक भी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो जानकारियां और विलक्षण प्रतिभा माया दानव के पास थी, वही माया सभ्यता के लोगों के पास भी थी। कहते हैं कि अमेरिका के प्रचीन खंडहर उसी के द्वारा निर्मित हैं। अमेरिका में शिव, गणेश, नरसिंह आदि देवताओं की मूर्तियां तथा शिलालेख आदि का पाया जाना इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि प्रचीनकाल में अमेरिका में भारतीय लोगों का निवास था। इसके बारे में विस्तार से वर्णन आपको भिक्षु चमनलाल द्वारा लिखित पुस्तक 'हिन्दू अमेरिका' में चित्रों सहित मिलेगा।
9. पांडवों को दिए थे दिव्यास्त्र : महाभारत में उल्लेख है खांडव वन के दहन के समय अर्जुन ने मय दानव को अभयदान दे दिया था। इससे कृतज्ञ होकर मय दानव ने इंद्रप्रस्थ के निर्माण के वचन के साथ ही वह अर्जुन एवं श्रीकृष्ण को एक खंडहर में ले जाकर देवदत्त शंख, मणिमय पात्र, पूर्वकाल के महाराजा सोम का दिव्य रथ, वज्र से भी कठोर रत्नजटित कौमुद की गदा, दैत्यराज वृषपर्वा का गांडीव धनुष और अक्षय तरकश को दिखाकर उसे पांडवों को भेंट कर देता है।
10. तलातक का राजा : राजा बलि रसातल तो मय दानव तलातल का राजा था। सुतल लोक से नीचे तलातल है। वहां त्रिपुराधिपति दानवराज मय रहता है। पुराणों अनुसार पाताल लोक के निवासियों की उम्र हजारों वर्ष की होती है।