भगवान श्रीकृष्ण और भीष्म पितामह दोनों ही में आश्चर्यजनक रूप से कुछ समानता है जिन्हें जानकर आप हैरान हो जाएंगे। हालांकि यहां यह कहना जरूरी है कि भगवान और इंसान की तुलना नहीं की जा सकती, यह तुलना नहीं बल्कि दोनों के ही जीवन की साम्यता की बातें हैं।
पहली समानता : दोनों ही अपने माता पिता की आठवीं संतान थे। भीष्म गंगा और शांतनु की तो श्रीकृष्ण देवकी और वसुदेव के आठवें पुत्र थे।
दूसरी समानता : दोनों ही सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे। श्रीकृष्ण के धनुष का नाम शारंग था। भीष्म के धनुष का नाम वायव्य था।
तीसरी समानता : प्रतिज्ञा के प्रति दोनों ही दृढ़ प्रतिज्ञ थे। श्री कृष्ण ने युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा ली थी। भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने और सिंहासन के प्रति समर्पित करने की प्रतिज्ञा ली थी।
चौथी समानता : दोनों ही का जीवन नदियों से जुड़ा हुआ है। भगवान श्रीकृष्ण का बचपन जहां यमुना किनारे बीता, वहीं भीष्म का जन्म गंगा किनारे हुआ था और वे गंगा के पुत्र थे।
पांचवीं समानता : दोनों की ही मृत्यु बाण से हुई थी। भीष्म पितापह के शरीर को जहां बाणों से छलनी कर दिया गया था वहीं भगवान कृष्ण को एक शिकारी ने पैर में बाण मार दिया था जिसके चलते उन्होंने देह छोड़ दी।
छठी समानता : दोनों को ही पांडव प्रिय थे। भगवान श्री कृष्ण को तो पांडव प्रिय थे ही साथ भीष्म पितामह को भी पांडव प्रिय थे। भीष्म पितामह भी युद्ध में पांडवों के जीत की कामना ही करते थे।
सातवीं समानता : दोनों ही एक दूसरे का बहुत सम्मान करते थे। एक और जहां भीष्म भगवान श्रीकृष्ण का बहुत सम्मान करते थे वहीं श्री कृष्ण के मन में भी भीष्म के प्रति सम्मान और आदर का भाव था।
आठवीं समानता : महाभारत में दोनों के ही संवादों को ज्ञान ग्रंथ की श्रेणी में रखा गया है। एक ओर जहां श्रीकृष्ण और अर्जुन संवाद को गीता कहा जाता है। वहीं, भीष्म और युद्धिष्ठिर संवाद को भीष्म नीति कहा जाता है।
नौवीं समानता : दोनों ही युद्ध में दो पक्षों के केंद्र में थे। एक और जहां भीष्म कौरवों की सेना के सर्वेसर्वा थे। वहीं, श्रीकृष्ण पांडवों की सेना का सर्वेसर्वा थे।